बदहाल यातायात व्यवस्था की यादें लेकर लौट रहे पर्यटक


वाराणसी(काशीवार्ता)। वैज्ञानिकों ने दुनिया के हर मर्ज की दवा खोज ली। यहां तक कि कोरोना की वैक्सीन इजाद हो गई, लेकिन बनारस की यातायात समस्या जिसे समस्या से ज्यादा बीमारी कहना ज्यादा उचित होगा, की अभी तक कोई कारगर दवा नहीं मिल पाई है। कहने को यह प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है और मुख्यमंत्री अपने दौरे का शतक पूरा कर चुके हैं, लेकिन बनारस की यातायात व्यवस्था न सुधरी ना ही उम्मीद दिखाई दे रही। शहर को कैसे स्मार्ट बनाया जाए, इसके लिए बकायदा एक स्मार्ट सिटी विभाग की स्थापना की गई है। यह विभाग नगर निगम के अधीन काम करता है। सैकड़ों करोड़ का बजट है, लेकिन यह विभाग भी यातायात जाम का हल निकालने में नाकाम रहा है। देखा जाए तो शहर की यातायात समस्या की तीन प्रमुख वजह गिनाई जा सकती है। पहला अतिक्रमण, दूसरा खराब सड़कें और तीसरी वाहनों के दिन प्रतिदिन बढ़ते दबाव के सापेक्ष शहर का विस्तार ना होना। इसके अलावा भी कई अन्य वजह भी है। जैसे शहर की सड़क पर बेहिसाब टेंपो- रिक्शा, बैलगाड़ी व पैडल रिक्शा की भरमार। मेला-ठेला, कथा-प्रवचन व समय-समय पर आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाएं पहले से जटिल समस्या को और जटिल बना रही हैं। जहां तक अतिक्रमण का प्रश्न है यह नगर निगम के कार्य क्षेत्र में आता है। याद नहीं आता कि पिछले एक दशक से शहर में कोई सुनियोजित अतिक्रमण हटाओ अभियान चला हो, हालांकि निगम ने पुराने फौजियों को इसी काम के लिए भर्ती किया है, लेकिन वह भी ठेला -गुमटी हटाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाये। कभी निगम या पीडब्ल्यूडी ने राजस्व नक्शे में सड़क की चौड़ाई के हिसाब से पक्के अतिक्रमण हटाने की जरूरत नहीं समझी। अंतिम बार तत्कालीन जिलाधिकारी प्रांजल यादव के कार्यकाल में राजस्व नक्शे के हिसाब से अतिक्रमण हटाया गया था। उसके पहले वीणा कुमारी, बीएएस भुल्लर व हरदेव सिंह जैसे अफसरों ने सुनियोजित तरीके से अतिक्रमण हटाकर शहर को जाम मुक्त कराने का हौसला दिखाया था। बाद के अफसर तो मानों सिर्फ अपना कार्यकाल पूरा करने और कुर्सी बचाने की जुगत में लगे रहे। जहां तक सड़कों का सवाल है, शहर की सड़कों को खोजने और बचाने का अभियान वर्षों से जारी है। कबीरचौरा से लहुराबीर तक एक लेन सड़क महीनों तक बंद रही। वजह सीवर लाइन थी। यही हाल लहुराबीर से नई सड़क की सड़क का है। शाही नाले की सफाई के लिए एक लाइन का काफी बड़ा हिस्सा बंद कर दिया गया। कहना न होगा कि विभागों में आपसी तालमेल न होने का खामियाजा शहर की जनता को भुगतना पड़ता है। पूछने पर हर विभाग एक दूसरे पर सिर्फ दोषारोपण करता है। शहर की बदतर यातायात का असर पर्यटन उद्योग पर पड़ रहा है। पर्यटक यहां से खट्टी यादें लेकर जाते हैं और बनारस के जर्जर यातायात की खबरें देश-विदेश तक पहुंचती है।