कहते हैं कि किसी को अपना गुलाम बनाना है तो उसके सिर्फ दो ही तरीके हैं। या तो उसे जंग के मैदान में मात तो या फिर उसे इतना कर्ज दो कि वो कभी लौटा ही न सके। चीन इसी नीति पर काम कर रहा है जिसे दुनिया विस्तारवाद कहती है। खास बात ये है कि चीन की इस चाल से लगभग पूरी दुनिया वाकिफ है लेकिन फिर भी पाकिस्तान या श्रीलंका जैसे कई देश ऐसे हैं जो या तो चीन के आर्थिक गुलाम बन गए या फिर बनने की तैयारी में है। एशिया के कई देशों को अपने कर्ज जाल में फंसाने के बाद चीन अफ्रीकी देशों को कर्ज बांटकर अपना आर्थिक गुलाम बनाना चाहता है।
खुद को दुनिया की ताकतवर देशों की लिस्ट में शुमार करने वाले सुपरपावर चुप क्यों बैठे हैं। वो चीन के पैसों से अपने यहां बुनियादी ढांचा खड़ा कर रहे हैं। कुछ देश सैन्य साजों सामान खरीदने पर जोर दे रहे हैं। जिम्बाब्वे भी चीन के फंड से उनका पार्लियामेंट यानी संसद तैयार किया गया है और कई सारे प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो अभी प्रोसेस में हैं। माउंट हैंपडन में बनी इस संसद को तैयार किया है चीन ने और इस पर उसने 140 मिलियन डॉलर खर्च कर डाले हैं। चीन का मकसद इस बिल्डिंग के जरिए इस क्षेत्र में अपना प्रभाव कायम करना है।
इस बिल्डिंग को तैयार करने में 500 चीनी टेक्निशियंस और 1200 स्थानीय मजदूरों को लगाया गया था। जिम्बॉब्वे में आलोचकों ने अब चीन की तरफ से तैयार इस बिल्डिंग पर चिंताएं जताई हैं। उनका कहना है कि चीन से मदद लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला जा रहा है। इसके साथ ही उन्होंने इथियोपिया में स्थित अफ्रीकन यूनिटी (एयू) के हेडक्वार्ट्स में चीन की जासूसी का आरोप लगाया है। हालांकि चीन ने इस बात से साफ इनकार कर दिया है।