समरसता का साक्षी बना विश्वनाथ धाम


वाराणसी(काशीवार्ता)। भले ही भारत के संविधान ने दलित समुदाय के मंदिर में प्रवेश की आजादी दी हो लेकिन कोई न उनको प्रेरित कर पाया और न ही उनका संकोच खत्म कर पाया। रामपंथ और विशाल भारत संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में भारत के इतिहास में समानता, बंधुत्व और प्रेम की क्रांति बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर से निकल कर पूरी दुनियां में गयी। मुसहर, धरकार के साथ अन्य दलित जातियों की महिलाओं ने पहली बार विश्वनाथ मंदिर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेता इन्द्रेश कुमार और रामपंथ के पंथाचार्य डा. राजीव के साथ प्रवेश किया। दलित बस्ती, मुसहर बस्ती में 15 दिन से महिलाएं दर्शन की तैयारी कर रही थीं। काशी के आस-पास के जिलों से भी आया दलित परिवार उत्साहित था। बाबा से मिलने के लिए 51 महिला-पुरुषों ने जब सुभाष भवन से हर हर महादेव और जय सियाराम का उदघोष करते हुए कूच किया तो नजारा देखने लायक था। दलित समाज की महिलाओं का नेतृत्व लक्ष्मीना देवी और मुसहर समाज का नेतृत्व किशन बनवासी ने किया। अल्पसंख्यक समाज का नेतृत्व नाजनीन अंसारी ने किया। दर्शन करने वालों में अर्चना भारतवंशी, नजमा परवीन, इली भारतवंशी, पूनम, सुनीता, अर्चना, प्रियंका, पार्वती, ऊषा, निर्मला, हीरामनी, लालती, सुमन, सविता, धनेसरा, नीतू, किशुना, श्यामदुलारी, विद्या देवी, प्रभावती, उर्मिला, गीता, सरोज, रमता, शीला, ज्ञान प्रकाश, सूरज चौधरी, राजेश आदि लोग शामिल रहे।
आजाद भारत की पहली घटना
यह आजाद भारत की पहली घटना है, जब इतनी बड़ी संख्या में पहली बार दलित एवं अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं ने इन्द्रेश कुमार के नेतृत्व में बाबा विश्वनाथ के मंदिर में प्रवेश किया। दलित समाज की महिलाओं ने कॉरिडोर देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना आशीर्वाद दिया और कहा कि मोदी जी ने इतना सुंदर मन्दिर बनवा दिया, उनकी उम्र बहुत लंबी हो। इस अवसर पर इन्द्रेश कुमार ने कहा कि सामाजिक समरसता और समानता की क्रांति की शुरूवात हो चुकी है। अब गांव-गांव से चलो विश्वनाथ दरबार का नारा गूंजेगा और दलित, जनजातीय समाज अयोध्या काशी और मथुरा की ओर दर्शन पूजन करने को निकलेगा और इस संस्कृति को दुनियां में प्रसारित करेगा।