काशी को नागपुर व गंगा घाटों को चौपाटी बनाने का षड़यंत्र चल रहा


वाराणसी (काशीवार्ता)।पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी ने कहा कि पिछली बार जब मैं आप लोगों से मुखातिब था तो आपके बहुत सारे प्रश्न थे जिसका स्पष्ट उत्तर मेरे पास नहीं था। आपके साथ पिछली प्रेसवार्ता में मैंने इस खबर की पुष्टि की थी कि मैंने कुछ परिस्थितियोंवश अपरिहार्य हो जाने से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से त्यागपत्र दिया है। हमने यह भी कहा था कि कांग्रेस की विचारधारा और संस्कृति हमारा संस्कार है और हम उससे दूर नहीं जा सकते। यही कारण है कि मैंने वाराणसी, मीरजापुर, चंदौली एवं प्रदेश के अन्य जनपदों के अपने सहयोगियों और साथियों की सलाह पर विगत सप्ताह ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। औरंगाबाद हाउस में रविवार को आयोजित प्रेसवार्ता में कहा कि जिन ताकतों से असहमत रहा उनसे समझौता संभव नहीं। मैं काशी की धरती का बेटा हूं और काशी की पहचान कभी राजसत्तात्मक नहीं। बल्कि जन संस्कृति के आदर्शों को जीने की रही है । इसलिए कांग्रेस छोड़ने का फैसला मेरे लिये पद और सत्ता की किसी सौदेबाजी के लिये उठाया गया कदम नहीं था । अन्य दूसरे विकल्प होने के बावजूद भी मैंने तृणमूल कांग्रेस का दामन थामा है , क्योंकि मैं उन ताकतों के साथ समझौता नहीं कर सकता जिनकी राजनीतिक विचारधारा से हमेशा असहमत रहा हूं। हमारा उद्देश्य साफ है कि हम गांधी, नेहरू की विचारधारा और अपने परदादा पं . कमलापति त्रिपाठी से मिले आदर्शों के माध्यम से जनसेवा की राजनीतिक भूमिका निभा सकें। ममता बनर्जी के नेतृत्व में यह कार्य बखूबी संभव है क्योंकि उन्होंने साम्प्रदायिक एवं लोकतंत्र विरोधी राजनीतिक शक्तियों से सीधा टकराने की मिसाल हम सबके सामने रखी है । तृणमूल कांग्रेस में हमारी सदस्यता की घोषणा के साथ ममता बनर्जी ने साफ कहा था कि गहरी धर्मनिष्ठा के साथ धर्मनिरपेक्षता का स्पष्ट विश्वास जीने वाले कमलापति त्रिपाठी हमारे लिये एक आदर्श राजनेता रहे हैं , जिन्होंने आजादी की लड़ाई और उसके बाद देश एवं कांग्रेस की महत्वपूर्ण सेवा की थी । इस दौरान हमने उन्हें काशी आने का निमंत्रण भी दिया। काशी और बंगाल का वही आध्यात्मिक रिश्ता है, जो शिव और शक्ति का है। जो तैलंग स्वामी और रामकृष्ण परमहंस का है। काशी अपने आप में पूरे देश की संस्कृति को समेटे हुए है। अखंड भारत की नींव रखने वाले चाणक्य की सामरिक नीति का केन्द्र काशी, भक्तिकाल के संतों द्वारा सींची गई तपोभूमि है काशी, महामना के तप से बनी आधुनिक भारत की सर्व विद्या की राजधानी है काशी। भिन्न – भिन्न संस्कृतियों के साथ अभिन्नता का संदेश है काशी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से काशी के स्वरूप को, काशी के मिजाज को बदलने की जो कोशिश हो रही है वह एक चिंता का विषय है। कई रसों से बने अपने इस शहर बनारस को एकरस किया जा रहा है। काशी को ‘ नागपुर ‘ और गंगा घाटों को चौपाटी बनाने का षड़यंत्र चल रहा है। इसका प्रतिरोध काशी को ही करना होगा और मुझे विश्वास है कि काशी के लोग काशी की कीमत पर हो रहे इस बदलाव को कतई स्वीकार नहीं करेंगे। एक बोलता हुआ शहर चुप नहीं रह सकता ।