ऐसे नींद से जागते हैं नाथों के नाथ विश्वनाथ


वाराणसी। जगाय हारी भोले बाबा ना जागे, गंगा जगावें, यमुना जगावें, त्रिवेणी जगावें लहर मारी, भोले बाबा ना जागे जगाय हारी यह वही गीत है, जिससे हर रोज नाथों के नाथ बाबा विश्वनाथ को नींद से जगाने के लिए सुनाया जाता है। द्वादश ज्योतिलिंर्गों में प्रमुख श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में हर रोज अर्चक भोर में होने वाली मंगला आरती की शुरूआत से पहले यह गीत अपने पालनहार को सुनाकर नींद से उठाते हैं। यूं तो बाबा विश्वनाथ पूरे विश्व के नाथ हैं और वह कभी भी विश्राम नहीं करते, मगर बनारस में भक्त भगवान के साथ वैसा ही व्यवहार और आचरण करते हैं, जैसा वे हर दिन अपने जीवन में अपनों के साथ करते हैं। इसी भाव से काशीवासी शयन आरती के वक्त बाबा विश्वनाथ को सुलाने आते हैं और फिर मंगला आरती में मंदिर के मुख्य अर्चक उन्हें गीत सुनाकर से उठाते हैं। बाबा को नींद से उठाने का यह अनोखा तरीका सैकड़ों सालों से निरंतर चला आ रहा है। भोर में 2 बजकर 45 मिनट से बाबा विश्वनाथ को जगाने का यह क्रम शुरू होता है। काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक श्रीकांत मिश्रा ने बताया कि सबसे पहले गर्भगृह में उनके रात के श्रृंगार को हटाया जाता है। उसके बाद उनके खड़ाऊ, पलंग को, दूध के पात्र को हटाया जाता है। फिर, जगाय हारी भोले बाबा ना जागे, गंगा जगावें यमुना जगावें, त्रिवेणी जगावें लहर मारी, भोले बाबा ना जागे, जगाय हारी के गीत से बाबा को प्रेम भाव से जगाया जाता है। उन्होंने बताया कि बाबा जब नींद से जगते हैं तो सबसे पहले उन्हें दूध का भोग लगाया जाता है। इसके बाद उन्हें जल, दूध, धी, दही, शहद और पंचामृत से स्नान कराया जाता है। षोडशोपचार विधि से पूरा पूजन होता है।
सुगन्धित फूलों से उनका श्रृंगार कर बाबा को प्रिय महाश्मशान की भष्म अर्पण कर फिर उनकी आरती की जाती है। तीन आचार्य इस काम को हर दिन करते हैं। मुख्य अर्चक ने बताया कि इस पूरी प्रकिया में करीब ढ़ाई घण्टे का वक्त लगता है। पुराने समय से चली आ रही इस परम्परा का आज भी वैसे ही निर्वहन हो रहा है, जैसा सालों पहले होता था। मंगला आरती के बाद बाबा का कपाट भक्तों के लिए खोल दिया जाता है। जिसके बाद नित्य दिन शिव भक्त बाबा का दर्शन, पूजन और जलाभिषेक करते हैं।
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