लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा में मंथन शुरु


(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। जिस मनोज सिन्हा को पार्टी ने चुनाव हारने के एक वर्ष के भीतर जम्मू एवं कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया था। उनके गृह बूथ मुहम्मदाबाद विधानसभा के मोहनपुरा में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। यहां के दोनों बूथ नंबर 52 और 53 पर कुल वोट भाजपा को 315, बसपा 140 और सपा को 510 वोट मिले थे। जबकि उपराज्यपाल बनने के बाद मनोज सिन्हा कई बार अपने गांव आए। उनके पुत्र अभिनव सिन्हा अब तक जेड श्रेणी की सुरक्षा में कई बार आ चुके हैं। अब सवाल उठता है कि जिस नेता ने अपने बूथ पर भाजपा की लाज नहीं बचा पाई। फिर कैसे उन्हें पार्टी 2024 में उम्मीदवार बनाए। इसके बाद भी उन्हें 2024 में गाजीपुर लोकसभा से उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा है। लोगों का कहना है कि विकास का एहसास जिले को मनोज सिन्हा ने ही दिलाया था। इसलिए उन्हें अफजाल अंसारी के खिलाफ एक बार फिर मैदान में उतारा जा सकता है।
2014 और 2017 के बाद लगातार भाजपा को 2019 और 2022 में सपा से शिकस्त ही मिलती जा रही है। यह चर्चा आम हो गई है कि क्या भाजपा एलजी मनोज सिन्हा को इस्तीफा दिलवाकर उनको गृहनगर गाजीपुर से 2024 की तैयारी के लिए भेजती है या फिर किसी नए चेहरे पर दाव लगाती है। नए चेहरों में दो बार से एमएलसी विशाल सिंह चंचल और सैदपुर के पूर्व विधायक सुभाष पासी के अलावा आजमगढ़ से लोकसभा
का चुनाव लड़ रहे निरहुआ का नाम सबसे ऊपर है। शेरपुर के रहने वाले और गृहमंत्री के करीबी संजय राय शेरपुरिया के नाम पर सियासी पंडित चुप नहीं हैं। उनका कहना है कि शेरपुरिया भी गाजीपुर के भविष्य के नेता हो सकते हैं, मगर जब भी यह सवाल शेरपुरिया के सामने आता है तो वह सीधे तौर पर इसे खारिज करते हैं। उधर ऐसा कहा जा रहा है कि मनोज सिन्हा को पार्टी गाजीपुर से वापस नहीं करती है तो बहुत ही सोच समझकर नए उम्मीदवार का नाम तय करेगी। जिसकी प्रोफाइल बड़ी होगी। यह भी चर्चा रही कि पूर्व सांसद राधेमोहन भाजपा में शामिल होंगे तो उसे भाजपा के दिग्गज सीधे तौर पर खारिज करते हैं। नए चेहरे और युवा को ही पार्टी तरजीह देगी। वैसे सिन्हा के लोगों की दलील है कि नेताजी ही अगला चुनाव लड़ेंगे। अगर सब कुछ ठीक रहा तो
दीपावली बाद गाजीपुर में जनसंपर्क कार्यालय खोलकर लोगों को रिझाने का काम उनके लोग करेंगे। फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों के नामों के चयन में मनोज सिन्हा की पसंद एवं नापंसद का पूरा ख्याल रखा गया था। यही वजह रही कि चुनाव आचार संहिता में एलजी के रूप में मनोज सिन्हा का काफिला उन दर्जनों मंदिरों में पहुंचा और उन्होंने खुद आशीर्वाद लिए। चुनाव परिणाम आए तो सातों विधानसभा सीटें भाजपा भारी अंतर से हार चुकी थी। भाजपा में हाहाकार मचा हुआ था। सियासत के जानकार कहते हैं कि 2019 में गाजीपुर संसदीय सीट पर सपा और बसपा गठबंधन ने भाजपा पर एक लाख 19 हजार 392 वोटों से लीड किया था, जबकि 2022 में यह लीड सपा और सुभासपा गठबंधन की बढ़कर एक लाख 31 हजार 59 वोटों तक पहुंच गई। ऐसे में मनोज सिन्हा अगर मैदान में आते हैं तो उन्हें अभी से कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।