मणिकर्णिका घाट पर लगेगा लकड़ी आधारित आधुनिक ऊर्जा शवदाह संयंत्र


वाराणसी(काशीवार्ता)। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सनातन धर्म की परंपराओं को संजोए हुए काशी को निरंतर प्रगति के पथ पर ले जा रही है। मोक्ष की नगरी काशी में मृत्यु भी उत्सव है। मणिकर्णिका घाट पर लकड़ी आधारित आधुनिक ऊर्जा शवदाह संयंत्र लगवा रही है। इस संयंत्र से परंपरागत तरीके से अंत्येष्टि होगी, जिससे समय, पैसे और पर्यावरण तीनों की बचत होगी। यहां परंपरागत तरीके के अलावा बिजली व सीएनजी से भी अंत्येष्टि की सुविधा है। नगर निगम के इलेक्ट्रिकल व मैकेनिकल विभाग के अधिशासी अभियंता अजय कुमार राम ने बताया कि लकड़ी का यह शवदाह संयंत्र मणिकर्णिका घाट पर लगेगा। इसके लगने से पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। वहीं अंत्येष्टि में समय भी कम लगेगा। उन्होंने बताया कि संयंत्र लगाने के लिए इसमें लगने वाली चिमनी के फाउंडेशन का काम हो गया है। बाढ़ का पानी कम होते ही आगे का काम शुरू हो जाएगा। लकड़ी आधारित ऊर्जा शवदाह संयंत्र बनाने वाली कम्पनी मेसर्स ऊर्जा गैसीफायर प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय कुमार जायसवाल ने बताया कि इस अत्याधुनिक ऊर्जा शवदाह संयंत्र से करीब 120 किलो लकड़ी से ही अंत्येष्टि हो जाती है। साथ ही डेढ़ घंटे में शव पूरी तरह जल जाता है। एक शवदाह संयंत्र बनाने में करीब 54 लाख का खर्च आता है। इस संयंत्र में एक खास तरीके की ट्रॉली होती है, जिसमें चिता सजाई जाती है। परंपरा के मुताबिक चिता की परिक्रमा करने की भी जगह होती है। शव के लगभग 90 प्रतिशत जल जाने के बाद कपाल क्रिया की जा सकती है। अंत्येष्टि के बाद 2 से 3 प्रतिशत राख इत्यादि शेष बचती है। जिसे अस्थि पूजा तथा अन्य जगहों पर प्रवाहित करने के लिए ले जाया जा सकता है। इसमें 100 फीट ऊंची चिमनी लगे होने से वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। बिजली न मिलने पर इसकी आवश्यकता सोलर पैनल से पूरी की जाती है। कोलकाता की हिंदुस्तान चैरिटी ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी कृष्ण कुमार काबरा ने नगर निगम को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा था। ये ट्रस्ट ही इस संयंत्र का खर्च वहन करेगी। इससे पेड़ कम कटेंगे तो हरियाली बढ़ेगी और वायुमण्डल भी प्रदूषित नहीं होगा। ये संयंत्र गया, मुम्बई, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, लखनऊ एवं नेपाल समेत कई जगहों पर लग चुका है।