…शायद किसी बड़े हादसे के इंतजार
में है नगर निगम


वाराणसी(काशीवार्ता)। नगर निगम प्रशासन की उदासीनता के कारण मंगलवार को जैतपुरा क्षेत्र के प्याले गढ़हा कच्चीबाग में एक जर्जर भवन धरासाई हो गया। इसमें पांच लोग घायल हो गए। शायद नगर निगम के अधिकारी इससे भी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं। सवाल है कि आखिर शहर के घोषित 403 जर्जर भवनों को क्यों नहीं गिराया जा रहा है। इस पर सभी अधिकारी चुप्पी साधे हैं। बता दें कि नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार 404 भवन जर्जर हो चुके हैं। इसमें सर्वाधिक कोतवाली जोन में 187 भवन जर्जर हाल में हैं। वहीं, सबसे कम 14 भवन भेलूपुर में जर्जर हैं। इन भवन स्वामियों को नगर निगम ने नोटिस जारी कर दिया है। इसमें सात भवनों को गिराया जा चुका है, जबकि 10 भवन ऐसे हैं जिनकी मरम्मत शुरू हो गई है। हालांकि इन भवनों की संख्या कम कर दी जाए तो भी जर्जर भवनों की संख्या 387 शेष रह जाती है। बीते वर्ष नगर निगम ने सर्वे कराया था तो जर्जर भवनों की संख्या 341 थी, जो इस वर्ष बढ़ गई है। कोतवाली क्षेत्र में जर्जर भवनों की संख्या अधिक होने की वजह गंगा किनारे दो सौ मीटर क्षेत्र में भवन निर्माण पर प्रतिबंध है। मरम्मत के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण ने नियम बनाए हैं लेकिन उसकी जटिलता ने जर्जर भवनों में इजाफा किया है। दूसरे नंबर पर दशाश्वमेध जोन में 143 भवन जर्जर हैं। इस जोन का बड़ा हिस्सा भी गंगा किनारे प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है। जर्जर कुल भवनों में 193 भवन ऐसे हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं।
प्रमाणित करते हैं इंजीनियर
नगर निगम का इंजीनियरिंग विभाग जर्जर भवनों को प्रमाणित करता है। अधिशासी अभियंता टीम के साथ मौके पर जाते हैं और रिपोर्ट मुख्य अभियंता को देते हैं, जो जर्जर होने का प्रमाण देते हैं। नगर आयुक्त के आदेश पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई होती है। कार्रवाई के दौरान जोनल अधिकारी व मजिस्ट्रेट के अलावा पुलिस फोर्स की मौजूदगी भी रहती है।
…तो आपका भवन
है जर्जर
गर्डर व पटिया के बने मकान की आयु जो 60 वर्ष से अधिक की हो। स्लैब लगे मकान की आयु जो एक सौ वर्ष से अधिक हो। छतों व दीवारों में पड़ी दरार, मकान के अंदर की नमी, स्टील व ईंट की गुणवत्ता आदि का आकलन करते हैं।
अधिकतर भवनों में संपत्ति विवाद
कोतवाली व दशाश्वमेध समेत अन्य जोन में जो भी पुराने व जर्जर भवन हैं उनमें बहुत से भवनों में किरायेदारी या परिवारीजनों के बीच विवाद है। कोर्ट में मामला लंबित होने से नगर निगम प्रशासन कार्रवाई से बचता है, जो वर्षा में हादसे की वजह बन जाता है।