सियासी संकट के बीच पवार उद्धव को रास्ता दिखा रहे, या सत्ता के साथ पार्टी को भी निपटा रहे हैं? खुद मोदी के भी खास और विपक्ष के भी महत्वपूर्ण नेता बने हुए हैं


उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे और शरद पवार महाराष्ट्र की सियासत में इस वक्त यह तीन किरदार धुरी बने हुए हैं। गुवाहाटी से मुंबई तक होने वाला हर सीन तीनों नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रहा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में शामिल होने के लिए मुंबई के शिवसेना भवन पहुंच चुके हैं। वहीम शिवसेना के बागी विधायक दीपक केसरकर ने कहा है कि शिंदे गुट बालासाहेब ठाकरे के नाम पर नई पार्टी बना सकता है। लेकिन महाराष्ट्र के पूरे सियासी खेल में तीसरे किरदार यानी शरद पवार व उनके कदम को लेकर सबकी निगाहें हैं। चर्चा ये भी तेज हो गई कि सियासी संकट के बीच उद्धव को पवार रास्ता दिखा रहे हैं। 

हिन्दुस्तान की राजनीति में शरद पवार को शतरंत का ऐसा खिलाड़ी माना जाता है जो दोनों ओर से बाजी खेलते हैं। कोई हारे या कोई जीते, शरद पवार हमेशा फायदे में रहते हैं। महाराष्ट्र में ढाई साल पहले हुए चुनाव में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला था, लेकिन शरद पवार की बातों में आकर उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से रिश्ते तोड़ लिए और खुद सीएम बन गए। सीएम बनने के दौरान पिछले ढाई साल में वो बीजेपी से भिड़ते गए और शरद पवार को अपना ‘गुरु’ मान लिया।  महाराष्ट्र क्राइसिस के दौरान साफ दिखा कि पवार की एनसीपी बिग ब्रदर के रोल में है। पवार के पिछले 3 दिनों की एक्टिंवनेस और अलर्टनेस पर गौर करें तो जैसे ही शिंदे ने बगावत का बिगुल बजाया, पवार ने उद्धव से बात की। सूत्रों के मुताबिक वर्षा बंगला खाली करने के दौरान पवार ने उद्धव से कहा कि अभी इस्तीफा देने की जरूरत नहीं। इसके बाद खुद पवार भी मीडिया के सामने उद्धव को सपोर्ट करने का एलान करते हैं। जब संजय राउत ने यह कहा कि अघाड़ी सरकार से समर्थन वापस लिया जा सकता है। उसके बाद पवार फिर एक्टिव हुए और संजय रावत से मुलाकात की। मीटिंग के बाद राउत के बयान बदले बदले नजर आए। अजीत पवार से लेकर एनसीपी की मंत्री विद्या चौहान ने उद्धव के समर्थन में होने के बयान भी दिया।

जिस तरह के वर्तमान हालात हैं ये साफ था कि पार्टी अब एकनाथ शिन्दे के हाथ में आ चुकी है और उद्धव को बूझ ही नहीं पड़ा कि क्या हो गया। विधायकों की मजबूरी ये है कि अगले चुनाव में एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के साथ लड़ने पर उनको हिन्दुत्व वाले वोट नहीं मिलेंगे और एनसीपी, कांग्रेस के वोट उनको शिफ्ट नहीं होंगे- शिवसेना की कट्टर छवि वोटरों के मन में तो है ही। उद्धव  सीएम तो बन गए, लेकिन बहुत बड़ी कीमत देकर। अब अगर लौटना भी चाहें तो लंबा सफर तय करना होगा। शरद पवार के तो जैसे दोनों हाथों में अभी भी लड्डू हैं, वो अभी भी मोदी के खास हैं और विपक्ष के भी महत्वपूर्ण नेता बने हुए हैं।