प्रशांत भूषण ने कहा, मैं एक रूपये का जुर्माना भरूँगा पर पुनर्विचार याचिका भी डालूँगा


जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने न्यायालय की अवमानना मामले में 1 रुपया जुर्माना देना स्वीकार कर लिया है पर साथ ही कहा है कि वो इसके ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका भी दायर करेंगे.

उन्होंने कहा कि वो पहले ही कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें जो सज़ा देगा वो उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस चीज़ (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के लिए उन्हें दोषी ठहराया है वो हर नागरिक के लिए सबसे बड़ा कर्तव्य है.

उन्होंने कहा, “वो न्यायापालिका का सम्मान करते हैं और उनके ट्वीट सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका का अपमान करने के लिए नहीं थे बल्कि इसलिए थे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के हाल के रिकॉर्ड थोड़े फिसल गए थे. यह मुद्दा नहीं है कि वो मेरे बनाम सुप्रीम कोर्ट का मामला है. सुप्रीम कोर्ट को जीतना चाहिए क्योंकि जब भी सुप्रीम कोर्ट जीतता है, स्वतंत्र होता है तो हर भारतीय जीतता है. सुप्रीम कोर्ट कमज़ोर होता है तो वो लोकतंत्र के हर एक नागरिक को कमज़ोर करता है.”

प्रशांत भूषण ने अपने समर्थन में खड़े हुए पूर्व जजों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम लोगों का शुक्रिया किया.

उन्होंने कहा, “यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मज़बूती देगा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को शक्ति मिलेगी, कई लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आधार समझा है. जो कुछ लोग हताश हो गए थे वो खड़े हो गए. इस देश में हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ लोगों को हिम्मत मिली है.”

उन्होंने अपने वकील राजीव धवन और दुष्यंत दवे का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि ‘इस देश में लोकतंत्र मज़बूत होगा, सुप्रीम कोर्ट मज़बूत होगा, सत्यमेव जयते.’

अवमानना की सज़ा एक रुपया

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जाने-माने वकील प्रशांत भूषण को अवमानना मामले में दोषी ठहराने के बाद एक रुपये का जुर्माना लगाया था.

फ़ैसले के बाद प्रशांत भूषण ने ट्वीट करके बताया कि उनके वकील राजीव धवन ने उन्हें जुर्माने की राशि के लिए एक रुपया दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया.

अदालत ने कहा था कि जुर्माना नहीं दिए जाने की स्थिति में उन्हें तीन महीने जेल की सज़ा हो सकती है और तीन साल के लिए क़ानून की प्रैक्टिस पर भी रोक लगाई सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा कि कोर्ट का फ़ैसला किसी प्रकाशन या मीडिया में आए विचारों से प्रभावित नहीं हो सकता.

अदालत ने कहा कोर्ट के विचार किए जाने से पहले ही प्रशांत भूषण के प्रेस को दिए बयान कार्यवाही को प्रभावित करने वाले थे.

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के दो ट्वीट्स को अदालत की अवमानना के लिए ज़िम्मेदार माना था.

कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि जनवरी 2018 में की गई सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेस भी ग़लत थी. न्यायाधीशों को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की अपेक्षा नहीं होती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी है लेकिन दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान करना चाहिए.

न्यायालय ने भूषण के ट्वीट्स का स्वत: संज्ञान लेते हुए उन्हें भारत के चीफ़ जस्टिस एस.ए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने का दोषी क़रार देने के बाद उनकी सज़ा पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.

भूषण ने यह कहते हुए अदालत से माफ़ी मांगने या अपनी टिप्पणी वापस लेने से इनकार कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रशांत भूषण के वकील ने तर्क दिया था कि कोर्ट को अपनी आलोचना स्वीकार करनी चाहिए. वहीं अटॉर्नी जनरल के.के वेणुगापोल ने सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण को सज़ा नहीं देने की अपील की थी.

मगर अवमानना मामले के तहत कार्रवाई करने की वजह को लेकर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जज अपना पक्ष रखने के लिए मीडिया का सहारा नहीं ले सकते.

क्या है पूरा मामला?

प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने दो ट्वीट्स को लेकर अवमानना का दोषी पाया था. 29 जून को किए गए इन ट्वीट्स में उन्होंने महंगी बाइक पर बैठे चीफ़ जस्टिस बोबडे की तस्वीर ट्वीट करते हुए टिप्पणी की थी.

दूसरे ट्वीट में उन्होंने भारत के हालात के संदर्भ में पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका पर अपनी राय प्रकट की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने इसी को लेकर प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी पाया था. बाद में जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने 25 अगस्त को सज़ा पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.

फ़ैसला सुरक्षित रखने के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि ‘अगर ग़लती की गई हो तो माफ़ी मांग लेने में कोई नुक़सान नहीं है.’

मगर भूषण की ओर से पेश वकील डॉक्टर राजीव धवन ने कहा कि भूषण कोर्ट का सम्मान करते हैं मगर पिछले चार चीफ़ जस्टिस को लेकर उनकी अपनी एक राय है.

उधर मोदी सरकार के सबसे बड़े वकील केके वेणुगोपाल ने अदालत में कहा था कि ‘हायर जूडिशरी में भ्रष्टाचार को लेकर कई मौजूदा और रिटायर्ड जजों ने टिप्पणी की है. ऐसे में भूषण अगर अपने शब्दों पर खेद प्रकट करते हैं तो उन्हें चेतावनी देकर छोड़ा जा सकता है.’