विश्वनाथ मंदिर विध्वंस का दाराशिकोह कनेक्शन


(शशिधर इस्सर)
मुगल बादशाह शाहजहां की सबसे प्रिय बेगम मुमताज महल से काफी मन्नतों के बाद जन्में बेटे दाराशिकोह (20 मार्च 1615-30 अगस्त 1659) और तीसरे बेटे औरंगजेब (3 नवंबर 1618-3 मार्च 1707) है। उनकी एक बेटी थी जिसकी मृत्यु हो गयी। ज्ञानवापी स्थित विश्वनाथ मंदिर ध्वंस औरंगजेब का सीधा संबंध है। एक ओर जहां शाहजहां ने अन्य बेटों को भारत के विभिन्न सूबों का गवर्नर बनाकर भेज दिया था, परन्तु दुलारे दाराशिकोह को सदैव अपने पास रखा और उसे भारत का भावी बादशाह घोषित कर दरबार में सदा अपने पास ही रखते थे। उसे पंजाब क्षेत्र का गवर्नर तो बनाया पर कभी वहां भेजा नहीं। वहीं औरंगजेब दक्कन का गवर्नर था और युद्ध कौशल में निपुण था। दूसरी ओर शहजादों ने जरूरी युद्धकला की तालीम तो ली, पर दारा किताबों में ही डूबा रहता। जहां औरंगजेब कट्टर मुस्लिम था, वहीं दारा बचपन से सूफी मत मानने लगा।


बतातें है कि साधु-संतों के विचारों, कुरान की किसी आयत ने उसे वेदों, उपनिषद आदि पढ़ने को प्रेरित किया था। उसने इनका गहन अध्ययन किया। जिसके बाद वह सन्यासी हो गया और विभिन्न धर्मों के साधु-संतों से मिलता रहा। कहते हैं कि वह दानशील था। खुद को जेबखर्र्च के रूप में सलाना मिलने वाले दो करोड़ रुपये को वह इन्हीं सब पर व्यय करता था। शायद इन्हीं वजहों से पूरी रियाया उससे बेहद प्यार करती थी। उसकी यही गहन सोच उसे काशी ले आयी। उसने संस्कृत सीख कर वेदों, उपनिषदों व गीता आदि का न केवल गहन अध्ययन किया, अपितु उनका अनुवाद अरबी, फारसी यहां तक लैटिन भाषा में करके यूरोप तक पहुंचाया।
उधर औरंगजेब कट्टर मुस्लिम बनता गया। दोनों भाइयों की कभी नहीं पटी। उसका कथन था कि अल्लाह का फैसला अलग है और मुल्लाओं का फैसला अलग। बताया जाता है कि दारा को संस्कृत आदि की शिक्षा उसे औरंगाबाद स्थित एक प्रतिष्ठित परिवार से मिली। विश्वनाथ मंदिर पहले ही विद्वान पंडितों का मिलन स्थल था। इसी बीच शाहजहां के गंभीर बीमार पड़ने पर औरंगजेब ने युद्ध में दाराशिकोह को हरा कर उसे न केवल बंदी बनाया बल्कि पैर में जंजीर बांधकर पूरी दिल्ली में जुलूस निकलवाया। जिस पर वह एक छोटे हाथी पर बैठा था। कहते हैं जुलूस के दौरान दारा ने रास्ते में एक भिखारी को अपनी शाल उतारकर दे दी थी।
अन्तत: औरंगजेब ने उसका सिर धड़ से अलग करवा दिया। बाद में एक तश्तरी में रखकर पिता शाहजहां के यहां भिजवा दिया, जिसे देखते ही वे बेहोश हो गये। मुस्लिम कट्टरता के कारण ही औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर सेना भेजी, परन्तु निर्वाणी अखाड़े के दशनामी नागा साधुओं ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक चले युद्ध में प्राण देकर विश्वनाथ मंदिर की रक्षा की।
देवमूर्तियों को पत्थर समझने वाले औरंगजेब ने 1669 मेें आलमागिरी फरमान जारी कर सभी संस्कृत पाठशालाओं, मंदिरों को ध्वस्त करने का फरमान जारी कर दिया। जिसमें काशी के प्रमुख मंदिर यानी काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करना भी शामिल था, लेकिन हिंदुओं को सबक सिखाने व नीचा दिखाने के लिए ही उसने मंदिर के पीछे की दीवार को पूरी तरह नहीं तोड़ा। उसने हिन्दुओं पर अपना धर्म अपनाने के लिए बहुत दबाव डाला। इस बारे में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान एक मुकदमें में कहा गया कि ज्ञानवापी परिसर प्रार्थना गृह है।
दाराशिकोह जीत जाता तो भारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं होता
इतिहासकारों का मत है कि यदि दाराशिकोह अपने भाई औरंगजेब को युद्ध में हरा कर बादशाह बन जाता तो इस्लाम सहित समस्त धर्मों में सामन्जस्य और धार्मिक एकता की नींव पड़ जाती। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर ऐसा होता तो भारत और पाकिस्तान का बंटवारा न होता।