क्या खास-क्या आम, खतरे में सबकी जान


(राजेश राय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। कुछ साल पहले जब सरकार ने देश और प्रदेश में फोर लेन और सिक्स लेन जैसे हाईवे का जाल बिछाना शुरू किया तो उद्देश्य था कि इससे नागरिक यातायात सुगम होगा, माल ढुलाई में भी आसानी होगी। उद्देश्य तो अच्छा था लेकिन किसी योजना को लागू करने से पहले अच्छी तरह होमवर्क करने की बुनियादी बात सरकार भूल गई। वह भूल गई कि सड़कें भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की बनाई जा रही हो परंतु सड़कों पर चलने वाले लोग देसी हैं। उन्हे हाईवे और एक्सप्रेस वे पर चलने की बुनियादी समझ ही नहीं है। जिन सड़कों पर वाहनों की स्पीड सौ किलोमीटर प्रति घंटा निर्धारित की गई है उस पर जरा सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है। अव्वल तो इन सड़कों पर चलने वालों को यातायात के नियमों की जानकारी नहीं। जिन्हे है भी वे इसका पालन नहीं करते उदाहरण स्वरूप सबसे दाईं लेन सिर्फ ओवरटेकिंग के लिए बनी होती है, लेकिन देखा गया है कि बसें और ट्रक इसी लेन में चलते हैं। फलस्वरूप पीछे से आने वाले वाहन बाईं लेन से ओवरटेक करने पर मजबूर होते हैं।यह काफी खतरनाक होता है। नियमों का पालन न करने की वजह से आए दिन सड़कों पर हादसे हो रहे हैं। इनमें मरने और घायल होने वाले आम और खास दोनो ही वर्ग के लोग हैं। प्रदेश के मंत्री दयाशंकर मिश्र दयालु कल वाराणसी गाजीपुर रोड पर सड़क हादसे का शिकार हो गए। वे भाग्यशाली थे कि चोट नहीं आई। अलबत्ता दो सरकारी वाहन जरूर क्षतिग्रस्त हो गए। पता चला कि एक टोटो अचानक उनके काफिले के सामने आ गया था। नियम है कि हाईवे और एक्सप्रेस वे पर धीमे चलने वाले वाहन जैसे टोटो आॅटो रिक्शा, ट्रैक्टर आदि वाहन नहीं चल सकते, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। न सिर्फ प्रतिबंधित वाहन धड़ल्ले से इन सड़कों पर दौड़ते हैं बल्कि यातायात के नियमों का पालन भी नहीं करते। गलत लेन में चलना अब आम बात हो गई है सड़कों पर हादसों का शिकार होने वालों में ज्यादातर मोटरसाइकिल सवार हैं। अगर पिछले एक महीने के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि अकेले बनारस और आसपास करीब दो दर्जन मोटरसाइकिल सवार या तो जान से हाथ धो बैठे या गंभीर रूप से घायल हुए। कई तो अपने परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य थे। हादसों में सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं होती बल्कि पूरा परिवार उजड़ जाता है। आमतौर पर देखा गया है कि ग्रामीण इलाकों से प्रतिदिन मोटरसाइकिल से बड़ी संख्या में लोग शहर आते हैं। इनमें मजदूर, ग्राहक और दवा इलाज कराने वाले लोग शामिल हैं। मोटरसाइकिल पर तीन सवारी बड़ी आम बात है। किसी चौराहे तिराहे पर पुलिस इन्हे नहीं रोकती। न तो ये हेलमेट लगाते हैं न रियर व्यू मिरर का इस्तेमाल करते हैं। बिना आगा पीछा देखे ये कहीं भी मुड़ जाते हैं। ऐसे में पीछे से आने वाले वाहन को तत्काल रुकना अत्यंत मुश्किल हो जाता है। बहुत दिनों से हाईवे पुलिस द्वारा ब्लैक स्पॉट चिन्हित करने की मांग हो रही है लेकिन सारी कवायद कागजों तक सीमित है। कायदे से हाईवे पर हलके के थानों को चेकिंग अभियान चलाना चाहिए। जो वाहन गलत लेन में चलते हों या जिन दुपहिया और चारपहिया पर निर्धारित से ज्यादा सवारियां हो उनका मौके पर ही चालान होना चाहिए। इससे दुर्घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। यह तभी संभव है जब पुलिस के उच्चाधिकारी खुद सड़कों पर उतरें। नहीं तो यूं ही कीड़े मकोड़े की तरह लोग सड़कों पर मरते रहेंगे।