‘2 साल से ज्यादा नहीं टिकेगा तालिबान का शासन, अफगानिस्तान में कई इलाकों में पकड़ पड़ी ढीली’


एम्स्टर्डम (नीदरलैंड) : अफगानिस्तान में तालिबान का शासन दो सालों से ज्यादा नहीं चल पाएगा और अभी से ही तालिबान की पकड़ देश के कई हिस्सों में ढीली पड़ती जा रही है। ये दावा किया है अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ ने। अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकार के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ मलाइज दाउद ने भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि, तालिबान ने जिस मकसद के साथ काबुल पर कब्जा किया था, वो मकसद पूरा नहीं हो पा रहा है और देश जिन संकटों में घिर गया है, उस हालत में वो दो सालों से ज्यादा वक्त तक देश पर कब्जा बरकरार नहीं रख सकता है।

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तालिबान पर भविष्यवाणी

पूर्ववर्ती अफगानिस्तान सरकार के आर्मी चीफ ने कहा है कि, युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान में संकट गहराता जा रहा है और इस संकट के वक्त तालिबान के नेताओं को समझ नगीं आ रहा है कि, देश पर अपना अधिकार बरकरार रखने के लिए वो क्या करे। गुरुवार को यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (EFSAS) के साथ एक साक्षात्कार में दाउद ने कहा कि, “यह बस समय की बात होगी… मेरे जैसे लोग भविष्यवाणी कर रहे हैं कि तालिबान दो साल से अधिक नहीं टिकेगा।” उन्होंने कहा कि, कई तालिबान पर्यवेक्षकों ने तो कहना शुरू कर दिया है कि, ज्यादा से ज्यादा 6 महीने में तालिबान की जड़ अफगानिस्तान से उखड़ जाएगी।

अफगानिस्तान की हालत खराब

दाउद ने कहा कि, तालिबान ने अफगानिस्तान को खोना शुरू कर दिया है। लोग सड़कों पर भूख से मर रहे हैं, छोटे-छोटे बच्चों को उनके परिवारवाले बेचने पर मजबूर हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि, कल एक लड़की को 500 डॉलर में बेचा गया था। और जो भी आईसआईएस में शामिल होगा, उसे 500 डॉलर मिलेगा। उन्होंने कहा कि, अगर कोई चरमपंथी आईएसआईएस में शामिल हो जाता है, तो फिर वो तालिबान के खिलाफ ही लड़ेंगे। आपको बता दें कि, 15 अगस्त को तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद से अफगानिस्तान में मानवीय संकट और गहरा गया है और अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकार के करीब सभी बड़े नेता और अधिकारी देश छोड़कर जा चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी

वहीं, यूनइटेड नेशंस की एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि, अफगानिस्तान में मानवीय संकट भयानक स्तर पर बिगड़ रहा है और देश के करीब 2 करोड़ लोगों को फौरन मानवीय सहायता की जरूरत है। यूनाइटेड नेशंस ने कहा है कि, अफगानिस्तान के लोगों को आपातकालीन स्तर पर मदद की जरूरत है, नहीं तो बड़े पैमाने पर लोगों की भूख से मौत शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही अफगानिस्तान में आने वाली सर्दी को लेकर और भी दिल दहला देने वाली आशंकाएं जताई गई हैं। आपको बता दें कि, पिछले हफ्ते अफगानिस्तान में भूख की वजह से 8 बच्चों को मौत हो गई है, वहीं स्वतंत्र पर्यवेक्षकों का कहना है कि, अभी तक दर्जनों बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है।

क्यों हारी अफगानिस्तान की सरकार?

तालिबान के हाथों अफगानिस्तान की सरकार और अमेरिका की हार पर बात करते हुए पूर्व अफगान सरकार के चीफ ऑफ स्टाफ दाउद ने कहा कि, “हमारे पास अफगानिस्तान में ‘राज्य संस्थान’ नहीं हैं। जब सोवियत संघ की बात आती है, तो उन्होंने एक आंदोलन के साथ भागीदारी कर ली, लेकिन वामपंथी और आंदोलनकारी एक दूसरे की हत्याएं करने के बाद भी आंदोलन को साथ देते रहे। और 1989 में आंदोलन खत्म होने के बाद भी जो छोटा हिस्सा बचा रहा, उन्होंने आंदोलन को जारी रखा। उन्होंने कहा कि, ” तालिबान ने लोगों की लामबंदी की, धार्मिक साहित्यों के आधार पर प्रोपेगेंडा फैलाया और उन्होंने उग्रवाद फैलाया।” उन्होंने अफगानिस्तान में सेना की हार पर कहा कि, ”हमें सिर्फ दिखावे के लिए 3 लाख की फौज दी गई, लेकिन असल में हमारे पास 50 हजार सैनिक भी नहीं थे और जो सैनिक थे, वो सिर्फ भाड़े के सैनिक थे और उनके पास कुछ और काम करने के लिए नहीं था, तो वो सेना में शामिल हो गये थे।”