भारत की महान सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है भारतीय हथकरघा। भारत का हर कोना इस स्वदेशी यंत्र की अलग किस्म की बुनाई और इस पर तैयार पहनावे की कहानी कहता है। हमारे यहां करीब 60 तरह के बुनाई के पैटर्न हैं जो सिर्फ ग्रामीण भारत से आते हैं।
यहां सामान्य रूप से दिखने वाली गोटा-पट्टी, हाफ-साड़ी, सजीले घाघरों और चादरों से आगे भी बहुत कुछ बढ़िया है, जिसके बारे में हम बात करेंगे। 77 सालों की विरासत वाली कंपनी ग्रीनवे के मैनेजिंग पार्टनर अक्षय जैन ने उन पांच राज्यों को चिन्हित किया है, जहां से आप उम्दा किस्म की पांच गज वाली साड़ियां खरीद सकते हैं।
सोआलकुची, असम : अपनी गोल्ड टोन और शानदार कढ़ाई के लिए जानी जाने वाली मूंगा सिल्क एक समय सिर्फ राजशाही परिवारों के लिए होती थी। एंथेरा असमेंसिस नाम के ये सिल्कवर्म सोम और सोआलु नामक पेड़ पर पलते हैं और इनसे जो रेशमी धागे प्राप्त होते हैं, वे काफी मजबूत होते हैं। इससे बने कपड़े की चमक हर धुलाई के बाद और बढ़िया होती रहती है।
कांचीपुरम, तमिलनाडु : एक कहावत के अनुसार, कांची सिल्क के जुलाहा ऋषि मरक डेय के रिश्तेदार हैं जो भगवान के जुलाहे कहे जाते हैं। वे कमल की डंठल के रेशों से कपड़ा बनाते थे। ये मलबरी सिल्क कहलाते हैं, जो दक्षिण भारत और गुजरात से संबंध रखता है। इसके बने बॉडर्र की शेड और पैटर्न इसे बाकी सबसे अलग बनाता है। कांचीपुरम सिल्क इसके विषम बॉर्डर पर बनीं पट्टियां और फूलों की कढ़ाई इसे सबसे खास बनाती है।
कोटा, राजस्थान : जब भारत के सुंदर कपड़ों और साड़ियों की बात की जाती है तो मैसूरिया मलमल और कोटा डोरिया इसकी डिजाइन की वजह से पहचाना जाता है, जिसे खत कहते हैं। शुद्ध कॉटन और सिल्क साड़ियों की इतनी रेंज हर किसी के दिल में खास जगह बनाती है। कोटा डोरिया हथकरघा साड़ी को इसकी बनावट इसे दूसरे करघों पर तैयार साड़ियों से अलग पहचान देती है।