हरे पेड़ों की जगह उपले से बनायी होलिका


वाराणसी (काशीवार्ता)। एक तो शहरों में वैसे ही हरियाली सिमटती जा रही है और उस पर से तीज-त्योहारों की मार भी पेड़ों को झेलनी पड़ती है। तेजी से कम हो रहे पेड़ों के बीच मिंट हाउस क्षेत्र के नागरिकों ने होलिका पर अनूठी पहल की है। उन्होंने होली के मौके पर उपले की होलिका जलाने का फैसला किया है। यह न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है बल्कि इससे प्रदूषण पर भी काफी हद तक अंकुश लगता है। हर साल होली के मौके पर शहर में दर्जनों स्थानों पर होलिका गाड़ी जाती है। मुहल्ले के लड़के आसपास से पेड़ों की टहनियां काटकर होलिका में डालते रहते हैं। यह सिलसिला तकरीबन एक महीने तक चलता है। इसमें ज्यादातर हरे पेड़ों की बलि ली जाती है। जिन पेड़ों को काटा जाता है उनके स्थान पर नये पेड़ लगाने की कभी कोशिश नहीं होती। होली की पूर्व संध्या पर चन्द मिनटों में ही सैकड़ों पेड़ शहीद हो जाते हैं। मान्यता व आस्था से वशीभूत होकर अपने-अपने घरों से शरीर का मैल व अनाज डालते हैं। मान्यता है कि होलिका में समस्त बुराई, अहंकार व नकारात्मकता जल जाती है। आदिकाल से चली आ रही इस पौराणिक मान्यता को प्रतीकात्मक रुप से भी मनाया जा सकता है, परन्तु पहल करने को कोई तैयार नहीं है। उम्मीद है शहर के अन्य क्षेत्रों के लोग भी मिंट हाउस होलिका दहन से प्रेरणा लेंगे और पेड़ों की बलि चढ़ाने के बजाय उपले की होलिका जलायेंगे। वैसे भी सरकार व अदालतें पर्यावरण बचाने की दिशा में पहले से ज्यादा सक्रिय हैं। गंगा में मूर्ति विसर्जन पर रोक इसी दिशा में किया गया सराहनीय प्रयास है। इसी प्रकार पाण्डेयपुर व भोजूबीर क्षेत्र में भी स्थानीय लोगों ने उपले की होलिका लगाकर नजीर पेश किया।