भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोविड का संक्रमण बढ़ता जा रह है लेकिन एक छोटा एशियाई द्वीप इस पूरी महामारी में सबसे सुरक्षित देश की तरह सामने आया है.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में सिंगापुर ने न्यूज़ीलैंड को पीछे छोड़कर पहला स्थान प्राप्त किया है. न्यूज़ीलैंड कई महीने से पहले स्थान पर था. इस लिस्ट कई मानकों को ध्यान में रखकर बनाई गई है जिनमें कोविडकेस से लेकर घूमने की आज़ादी तक शामिल हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक सिंगापुर का टीकाकरण प्रोग्राम इसे पहले स्थान पर पहुंचाने की मुख्य वजहों में से एक है. न्यूज़ीलैंड में टीकाकरण की गति धीमी है.
तो महामारी के इस दौर में एक ऐसे देश में रहना कैसा लगता है जहां सबकुछ क़रीब क़रीब सामान्य जैसा है.
क़रीब क़रीब सामान्य ज़िंदगी
ये सच है, सिंगापुर में जिंदगी अच्छी है, हालांकि इसमें कई चेतावनियां शामिल हैं.
हाल के दिनों में संक्रमण के कुछ मामले सामने आए जिन पर काबू पा लिया गया. किसी पूरे इलाके में संक्रमण फैला हो, ऐसे मामले तो नहीं के बराबर आए.
कहीं जाने को लेकर कड़े नियम है, सीमा पर सुरक्षा कड़ी है. बाहर से आने वाले हर सामान की जांच होती है और तुरंत किनारे भेज दिया जाता. पिछले साल दो महीने के लॉकडाउन के अलावा फिर लॉकडाउन लगाने की नौबत नहीं आई.
जिंदगी क़रीब क़रीब सामान्य है. मैं अपने परिवार और दोस्तों से कभी भी मिल सकती हूं, डिनर पर या किसी रेस्त्रां में. हालांकि एक साथ आठ से ज़्यादा लोग एक बार में नहीं मिल सकते. मास्क पहनना ज़रूरी है, आप उन्हें खाने या कसरत करने के दौरान निकाल सकते हैं.
हम में से कई लोग अपने काम पर वापस लौट चुके हैं, हालांकि ऑफिस में सामाजिक दूरी का ध्यान रखा जाता है. आप सिनेमा देखने या शॉपिंग करने जा सकते हैं, बस ज़रूरत है मास्क की और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एप की.
स्कूल भी खुले हैं और वीकेंड पर मैं अपने बच्चों को बाहर भी ले जा सकती हूं लेकिन क्योंकि हर जगह कम ही लोगों को इजाज़त होती है इसलिए कहां जाना है, ये फ़ैसला करना किसी जंग लड़ने से कम नहीं है.
15 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण
क़रीब 15 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन की पूरी डोज़ मिल चुकी है. शायद ये इसलिए भी मुमकिन हुआ क्योंकि हमारी आबादी सिर्फ 60 लाख है. लेकिन इसके लिए बेहतर प्रक्रिया, सरकार और वैक्सीन पर भरोसा ने भी अहम भूमिका निभाई.
इसलिए हम सुरक्षित हैं, लेकिन इसके साथ ही लोगों को ये लगने लगा है कि हम दुनिया की सबसे अच्छी जगह पर रह रहे हैं, लेकिन सैकड़ों प्रवासी कामगारों के लिए ऐसा नहीं है.
वो अभी भी अपने काम करने की जगहों या डॉरमेट्री तक ही सीमित रहने पर मजबूर हैं. ये फ़ैसला पिछले साल संक्रमण के बाद उन जगहों के लिए लिया गया था जो बहुत साफ़ सुथरे नहीं हैं.
उन्हें अपनी डॉरमेटरी छोड़ने के लिए कंपनी से इजाज़त लेनी होती है और मिलने-जुलने के लिए सरकारी जगहें तय कर दी गई हैं.
ये सब देश के बाकि के हिस्सों को सुरक्षा देने के लिए क्योंकि सरकार के अनुसार संक्रमण फैलने का “एक बड़ा ख़तरा” है. लेकिन ये उस कड़वे सच की तरफ़ इशारा है कि समानता की बातों के बीच सिंगापुर अभी भी एक रूढ़िवादी देश है.
आप्रवासियों के हक के लिए आवाज़ उठाने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि ये “शर्मनाक और भेदभाव से भरा” है.
“न्यूज़ीलैंड भी इस लिस्ट मे ऊपर ही है लेकिन उन्होंने लोगों के अधिकार नहीं छीने. ये सिर्फ नतीजों के बारे में नहीं है, हम वहां तक कैसे पहुंचे ये भी ज़रूरी है.”
गरीबों के लिए ये महामारी बहुत बुरी साबित हुई है. सरकार ने अर्थव्यवस्था को ठीक करने और ज़रूरतमंद परिवारों की मदद के लिए लाखों डॉलर खर्च कर दिए और बेरोज़गारी की दर कम है.
लेकिन आँकड़े सही कहानी नहीं बताते. कई लोगों की पगार कम हो गई है. कई लोग जिनकी नौकरियां चली गई वो खाना डिलीवरी या ड्राइवरी जैसे काम कर रहे हैं.
समाजिक कार्यकर्ता पैट्रिक वी के मुताबिक, “ये बहुत बड़ी समस्या है, ये भी नही पता होना कि आप दिनभर में कितना कमा लेंगे, बहुत तनाव देता है. उनकी जगह कोई भी आसानी से ले सकता है, इसलिए नौकरी जाने का भी डर लगा रहता है.”
एक सुनहरी जेल
वो लोग जिन्हें आज़ादी का अनुभव हो रहा है, जिन्हें तय वेतन मिलता है, उनके लिए भी समस्याएं हैं. एक ऐसे देश में जहां हर जगह कैमरे लगे हैं, वहां जो थोड़ी बहुत निजता थी, महामारी में वो भी ख़त्म हो गई है.
हमने ये मान लिया है कि हम जहां भी जा रहे हैं हमें एक ऐप या टोकन का इस्तेमाल करना ही है और हम किस से मिल रह हैं, ये जानकारी हमसे ली जा रही है. हालांकि सरकार का दावा है कि इस डेटा से आपकी पहचान नहीं की जा सकती.
कोविड- 19 ने जैसे प्राइवेसी की डिबेट को ख़त्म कर दिया है, कई लोग सरकार की बात से सहमत हैं कि इस माहौल में इसकी ज़रूरत है लेकिन कई लोगों ने इस डेटा के गलत इस्तेमाल को लेकर आगाह किया है.
लेकिन यात्रा और क्वारंटीन के कड़े नियमों को लेकर कई लोग इसे सुनहरा जेल मानने लगे हैं. इसका मतलब है आप दूसरे देश में रहने वाले परिवार या दोस्त से नहीं मिल सकते हैं.
एक भीड़भाड़ वाली जगह जो कटी हुई है, वहां के लोग वीकेंड पर या घूमने के लिए इंडोनेशिया के द्विपों पर या मलेशिया के बॉर्डर पर बसे शहरों में जाया करते थे.
ये अब मुमकिन नहीं है, इसलिए हज़ारों लोग अब उन क्रूज़ जहाजों पर चढ़ते हैं, तो कहीं नहीं जा रही होतीं. मोटरसाइकिल या कार से घूमने वाले लोग जो मलेशिया के हाइवे पर नज़र आते थे, अब इस द्वीप का चक्कर लगाते रहते हैं.
देश को खोलना पड़ेगा
सिंगापुर के हॉन्ग कॉन्ग के साथ ट्रैवल बबल खुलने की खबर से कई लोग खुश हैं. पिछले साल भी एक ऐसी कोशिश हुई थी लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली थी.
सुधीर थॉमस वडाकेथ, जिसका परिवार भारत में रहता है और परेशान है, वो एक अजीब दौर से ग़ुजर रहे हैं.
वो कहते हैं, “कई देशों में हालात बहुत ख़राब हैं और हम यहां ट्रैवल बबल की बात कर रहे हैं, मुझे ये सही नहीं लग रहा कि हम बंद होकर अपनी ज़िदगी मज़े से काट रहे हैं और दूसरे देशों में हालात इतने ख़राब हैं.”
“सिंगापुर ने ग्लोबलाइज़ेशन के बाद से बहुत तरक्की ही है. दूसरे देशों से हमारे संबंध को देखते हुए मुझे लगता है हमारी उनके प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है.”
सिंगापुर में कई लोग इस मामले में खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि वो अभी तक बचे हुए हैं. लेकिन हालात बहुत दिन तक ऐसे नहीं रहेंगे.
सिंगापुर की सरकार ने लगातार इस बात पर ज़ोर दिया है कि अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए हमें देश को खोलना होगा. इसकी शुरुआत चीन और ऑस्ट्रेलिया के साथ हो चुकी है, जहां कई प्रतिबंधों के साथ यात्रा की जा सकती है.
सिंगापुर एक दिन बाकी दुनिया के साथ फिर से चलना शुरू करेगा, और तभी हमारी कोविड की असली परीक्षा शुरू होगी.