हिंदुओं के लिए पवित्र माने जाने वाले शहर वाराणसी और उसके आस-पास के इलाके कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं.
इस क्षेत्र के नाराज़ लोग अब ये सवाल पूछ रहे हैं कि उनके सांसद और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज़रूरत के वक़्त कहां पर हैं.
वाराणसी में स्वास्थ्य सुविधाएं बुरी स्थिति में हैं. मरीज़ों को हॉस्पिटल में बेड नहीं मिल रहे हैं, ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है, ऐम्बुलेंस सेवाओं की दिक्कत है और एक कोरोना टेस्ट कराने में लोगों को हफ़्तों इंतज़ार करना पड़ रहा है.
पिछले दस दिनों में ज्यादातर दवा दुकानों के पास विटामिंस, ज़ींक और पारासिटामोल जैसी बुनियादी दवाओं का स्टॉक ख़त्म होने लगा है.
शहर में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, “हॉस्पिटल बेड या ऑक्सीजन की मदद को लेकर हमारे पास ढेरों फोन कॉल आ रहे हैं. बुनियादी दवाओं की किल्लत महसूस हो रही है, हालात ऐसे हो गए हैं कि लोग मजबूरी में एक्सपायर्ड मेडिसिन तक ले रहे हैं. लोग कहते हैं कि ये भले ही कम असर करेगी लेकिन कुछ तो असर करेगी.”
कोरोना संक्रमण कैसे बेकाबू हुआ?
शहर के लोगों का कहना है कि मार्च में ही मुसीबत की आहट मिलने लगी थी. दिल्ली और मुंबई में अधिकारियों ने पाबंदियां लगानी शुरू कर दी और मजबूर होकर प्रवासी मजदूर अपने गांव-शहर की ओर लौटने लगे. वाराणसी और उसके आस-पास गांवों में भीड़ से लदी ट्रेन, बस और ट्रक पहुंचने लगी.
कई लोग तो होली के लिए लौटे थे. होली 29 मार्च को थी. कुछ पंचायत चुनाव में वोट देने के लिए आए थे. विशेषज्ञों की सलाह के ख़िलाफ़ जाकर ये चुनाव 18 अप्रैल को कराए गए.
पत्रकारों का कहना है कि चुनाव ड्यूटी पर तैनात किए गए 700 से ज़्यादा शिक्षकों की मौत कोरोना संक्रमण के कारण हो गई और चुनाव के कारण बीमारी तेजी से फैली.
वाराणसी के अस्पताल बहुत जल्दी भर गए और लोगों को उनके हाल पर छोड़ा जाने लगा. पच्चीस वर्षीय ऋषभ जैन पेशे से बिज़नेसमैन हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि उनकी 55 वर्षीय चाची की तबियत खराब हो गई थी.
ऋषभ अपनी चाची के लिए हर रोज़ 30 किलोमीटर का सफर तय करके ऑक्सीजन सिलिंडर भराने जाते थे. जहां उन्हें पांच घंटे लाइन में लगना पड़ता था.
वो बताते हैं, “हमारी जान अटक जाती थी जब उनका ऑक्सीजन लेवल 80 से नीचे चला जाता था. हम अस्पताल में बेड का इंतज़ाम नहीं करवा पाए, इसलिए हमारा परिवार ऑक्सीजन सिलिंडर के इंतजाम में लग गया. हमने 25 लोगों को फोन किया होगा. आख़िरकार सोशल मीडिया और ज़िला प्रशासन की मदद से हम सिलिंडर का इंतजाम करवा पाए. अब वो ठीक हो रही हैं.”
इन हालात में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 19 अप्रैल को वाराणसी समेत चार अन्य शहरों में हफ्ते भर के लिए लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था.
लेकिन राज्य सरकार ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. राज्य सरकार की दलील थी कि उसे जीवन और आजीविका दोनों को ही बचाना है. हालांकि आलोचकों का कहना है कि सरकार दोनों ही बचाने में नाकाम रही है.
राज्य में ज़िला प्रशासन साप्तहांत में कर्फ़्यू लागू कर रहे हैं जिसके डर से ज्यादातर व्यापारिक प्रतिष्ठान और दुकानें बंद हैं. हज़ारों लोगों की रोजी रोटी छिन रही है और वायरस अभी भी फैल रहा है.
आंकड़ों को लेकर उठते सवाल
वाराणसी में अब तक कोरोना संक्रमण से 70,612 लोग संक्रमित हो चुके हैं. इस महामारी से यहां 690 लोगों की जान भी गई है. हालात की गंभीरता का अंदाज़ इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक अप्रैल के बाद 65 फीसदी यानी 46,280 केस रजिस्टर हुए हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वाराणसी में हर रोज लगभग 10 से 11 लोगों की मौत कोरोना के कारण हो रही है.
रविवार को सरकारी आंकड़ों में ये संख्या 16 थी. लेकिन आप वाराणसी में जिससे भी बात करें, लोग इन आंकड़ों को कपोल कल्पना कहकर खारिज कर देते हैं.
हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट के पास के इलाके में रहने वाले एक पुराने शहरी ने बताया कि इन दोनों घाटों पर पिछले महीने लगातार लाशें जल रही हैं.
उन्होंने बताया कि इससे पहले इन दोनों घाटों पर हर रोज 80 से 90 चिताएं जला करती थीं लेकिन पिछले महीने से यहां तकरीबन 300 से 400 चिताएं जल रही हैं.
वे पूछते हैं, “लाशों का अचानक आना कैसे बढ़ गया है. आप इसे क्या कहेंगे. ये लोग किसी वजह से तो मर रहे हैं. ज्यादातर रिपोर्टों में ये कहा जा रहा है कि उनकी मौत हृदय गति रुक जाने से हुई है. अचानक इतने सारे लोग कैसे दिल का दौरा पड़ने से मरने लगे. उनमें नौजवान लोग भी शामिल हैं.”
वाराणसी के एक व्यक्ति ने हाल ही में एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें एक पतली सी गली के दोनों किनारों पर शव कतार में रखे थे और ये लाइन तकरीबन एक किलोमीटर लंबी थी.
प्रशासन ने दस दिन पहले ही एक शवदाह स्थल शुरू किया है लेकिन लोगों का कहना है कि वहां भी दिन-रात चिताएं जल रही हैं.
गांवों में फैलता वायरस
कोरोना की त्रासदी केवल वाराणसी तक ही सीमित नहीं है. महामारी की दूसरी लहर राज्य के दूरदराज़ के शहरों और गांवों को अपनी गिरफ्त में ले रही है.
चिरईगांव ब्लॉक में 110 गांव हैं और इसकी आबादी 230,000 के करीब होगी. सुधीर सिंह पप्पू यहां के प्रखंड प्रमुख हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि पिछले दिनों हर गांव में पांच से दस लोगों की मौत हुई है. कुछ गांवों में तो ये संख्या 15 से 30 के करीब रही है.
वो बताते हैं, “ब्लॉक में कोई अस्पताल नहीं है, ऑक्सीजन नहीं है, दवाएं नहीं हैं. सरकारी अस्पतालों में जगह नहीं है. प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज को भर्ती करने से पहले दो लाख से पांच लाख रुपये जमा करने के लिए कह रहे हैं. हमारे पास जाने के लिए कोई ठिकाना नहीं है.”
ऐधे गांव के कमलकांत पांडेय कहते हैं कि उनके गांव की हालत शहर से बदतर हो गई है.
वो कहते हैं, “अगर आप मेरे गांव के 2700 लोगों का टेस्ट कराएं तो कम से कम आधे लोग का रिजल्ट पॉजिटिव आएगा. बहुत से लोगों को कफ, बुखार, पीठ दर्द, कमज़ोरी, स्वाद और गंध महसूस न होना जैसी समस्याएं हैं.”
कमलकांत पांडेय खुद भी बीमार थे लेकिन अब ठीक हो गए हैं.
वे कहते हैं, “ऐधे गांव में जो लोग मर रहे हैं, उनका जिक्र सरकारी आंकड़ों में नहीं मिलेगा क्योंकि यहां कोई टेस्टिंग नहीं हो रही है.”
“कल्पना कीजिए कि ये हाल प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र का है और हमारी सांसें छूट रही हैं.”
‘मोदी छुप गए हैं’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ही वाराणसी, उसके लोगों और गंगा नदी के प्रति अपने विशेष लगाव का जिक्र करते रहे हैं.
लेकिन जब ये शहर कोरोना की तबाही से जूझ रहा है और यहां की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा गई हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र से दूरी बनाकर रखी है.
शहर के लोगों ने देखा कि उनके सांसद ने फरवरी से अप्रैल के बीच पश्चिम बंगाल का 17 बार दौरा किया.
मोदी वहाँ विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए जा रहे थे जहां उनकी पार्टी बुरी तरह से चुनाव हार गई.
एक नाराज़ रेस्तरां मालिक ने कहा कि पंचायत चुनाव से एक दिन पहले 17 अप्रैल को वाराणसी के कोविड संकट पर उनका समीक्षा बैठक करना दरअसल मज़ाक था.
रेस्तरां मालिक ने कहा, “प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री छुप गए हैं. उन्होंने वाराणसी के लोगों को उसके हाल पर छोड़ दिया है. बीजेपी के स्थानीय नेता भी सामने नहीं आ रहे हैं. उन्होंने अपने फोन स्विच ऑफ़ कर लिए हैं. ये वो वक्त है जब लोगों को हॉस्पिटल बेड या ऑक्सीजन सिलिंडर की ज़रूरत है लेकिन यहां पूरी तरह से अराजकता है. लोग बहुत नाराज हैं.”
कांग्रेस के नेता गौरव कपूर कहते हैं कि इसकी ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री पर आती है.
वाराणसी के एक डायग्नोस्टिक सेंटर के मालिक ने मुझे बताया कि “डॉक्टरों का कहना है कि उनके पास ऑक्सीमीटर तक नहीं हैं, मरीज का ऑक्सीजन लेवल कम होता है और वो नींद में ही मर जा रहा है.”
“जब मेरी पत्नी और बच्चे संक्रमित हुए तो हमने अपने डॉक्टर को फोन किया और उनकी सलाह पर अमल किया. लेकिन जो लोग पढ़ लिख नहीं सकते, जिनके पास डॉक्टर तक पहुंच नहीं है. आप जानते हैं कि वे कैसे रहते होंगे. वो बस भगवान भरोसे है.”
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