एक स्टडी में दावा किया गया है कि कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड (Covishield) ने कोवैक्सीन (Covaxin) की तुलना में अधिक एंटीबॉडी बनाई. भारत में की गई इस स्टडी में डॉक्टर और नर्स शामिल थे, जिन्होंने इन दोनों वैक्सीन में से किसी एक की डोज ले रखी थी.
डॉ एके सिंह और उनके सहयोगियों द्वारा की गई इस स्टडी में कहा गया है कि दोनों वैक्सीन ने मानव शरीर में एक अच्छी एंटीबॉडी का निर्माण किया. हालांकि, इस स्टडी का डाटा प्रकाशित नहीं किया गया है. इस डाटा के मुताबिक, कोविशील्ड की पहली डोज लेने के बाद ये 70 प्रतिशत प्रभावी पाई गई.
स्टडी के मुताबिक, 515 हेल्थ वर्कर्स (305 पुरुष, 210 महिला) में से, 95 प्रतिशत ने दोनों वैक्सीन की दो डोज ली थी. सबकी बॉडी में हाई एंटीबॉडी का निर्माण हुआ. इनमें 425 लोगों ने कोविशील्ड और 90 लोगों ने कोवैक्सीन लगवाई थी. कोविशील्ड में लगवाने वालों में 98.1 प्रतिशत एंटीबॉडी और कोवैक्सीन लगवाने वालों में 80 प्रतिशत एंटीबॉडी का निर्माण हुआ.
इस स्टडी से पता चला है कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों ने दो डोज के बाद अच्छी एंटीबॉडी का निर्माण करने में बड़ी भूमिका निभाई. लेकिन कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड लेने वालों में अधिक एंटीबॉडी विकसित होती दिखाई दी.
स्टडी में कोविशील्ड के मामले में 5.5 प्रतिशत संक्रमण का जोखिम पाया गया है, जबकि कोवैक्सीन के लिए यह प्रतिशत 2.2 है. जबकि लिंग, बॉडी मास इंडेक्स, ब्लड ग्रुप आदि में कोई अंतर नहीं देखा गया. हालांकि, 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों या टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में उच्च एंटीबॉडी बनने की दर काफी कम थी, जो कि कम एंटीबॉडी बनने का संकेत है.
कुल मिलाकर, इस स्टडी से पता चलता है कि दोनों वैक्सीन काम कर रही हैं. ऐसे में टीकाकरण का विस्तार कर कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर को रोकने पर फोकस करना होगा. क्योंकि, वर्तमान में भारत की कुल आबादी के चार प्रतिशत से भी कम लोगों को दोनों में से किसी भी वैक्सीन की खुराक मिली है, जबकि 15 प्रतिशत से कम ने अभी एक डोज ही लगवाई है.