कुएं जो कभी बुझाते थे प्यास अब जीर्णोद्वार की है आस


वाराणसी (काशीवार्ता)। किसी जमाने में जो कुँए प्यास बुझाने का एक मात्र विकल्प थें।आज मानव समाज की उदासीनता के कारण वो खुद प्यासे हो चुके है। प्राचीन समय मे राजा महाराजाओं द्वारा तालाबों-कुओं का निर्माण कराकर परोपकारी कार्य करते हुए जीवन मे पुण्य लाभ अर्जित करते थे। जिनसे उनका समाज में भी मान बढ़ता था लेकिन इन कुओं की वर्तमान स्थिति देखकर परलोक में बैठे पूर्वजों राजाओं महाराजाओं को भी रोना आता होगा।जी हां, वाराणसी के अनेकों क्षेत्रों में ऐसे तमाम कुँए आपको दिखाई पड़ेगे जो अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा रहे है।किसी-किसी में जल मिलेंगे लेकिन वह पीने योग्य नहीं, तो किसी में बस कूड़े और करकट तो कुछ को पटियों से ढक ही दिया गया है।इनके संरक्षण की न तो किसी ने सुध ली और न ही किसी को इनकी चिंता है।शायद यह समाज आधुनिकता में इतना डूब चुका है कि वह अपनी मानवता भी भूल चुका है।

हमारें पूर्वजों ऋषि मुनियों की दुरदृषि ही थी।इसलिए तो उन्होंने कुओं तालाबों को पूजीत बताते हुए इनके संरक्षण की बातें जन जन को बतलाई।आज भी कई स्थानों पर कुओं पर स्थानीय महिलाएं पूजन के लिए जाया करतीं हैं।लेकिन समय बदला उपयोगिता बदली आज समर सिबल पम्प, मोटर पम्प, एक्वा गार्ड, मिनरल वॉटर का जमाना आ गया है।तभी तो प्यास बुझाने वाले इन कुओं के प्रति आभार प्रकट करना तो छोड़िए लोगों ने तो इन्हें पाट कर अपने मकान तक बना डाले हैं।
कई कुओं को संरक्षित करने की है आवश्यकता
बढ़ती जनसंख्या के कारण लोगों ने कई कुओं को पाटकर मकान बना डालें हैं।लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में कई कुँए ऐसे हैं जिनको संरक्षित करने की आवश्यकता है।जिनमे शुद्ध जल भी है और उपयोगी भी।इनकी उपयोगिता समाज को मिलनी ही चाहिए।समाज को भी इनके प्रति उदारता दिखाते हुए जीर्णोद्धार की चिंता करनी चाहिए। नमामि गंगे महानगर सहसंयोजक शिवम अग्रहरि ने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय नई दिल्ली को इन कुओं के जीर्णोद्धार के लिए अवगत कराया जाएगा। जिससे जीवनोपयोगी कुओं का अस्तित्व बचाया जा सके।साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर भी लोगों से बातचीत कर इनकी देख रेख सुनिश्चित की जाएगी। सन 2005 से उ.प्र. में 10 जून को विश्व भूगर्भ जल दिवस मनाया जाता है।इसे मनाने का एकमात्र औचित्य यही है कि लगातार गिरते जा रहे भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाये रखने का सार्थक प्रयास प्रारम्भ हो।इसी क्रम में विशेष उद्देश्य के साथ भूगर्भ जल के प्रमुख स्रोतों जैसे- नदीं, तालाबों, पोखरों, कुओं आदि का संरक्षण व संवर्धन करना साथ ही वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना।