वाराणसी (काशीवार्ता)।शीतली प्राणायाम का शरीर और मन पर शांत और ठंडा प्रभाव पड़ता है। ये गर्मियों में विशेष रूप से उपयोगी हैं जब कई लोग गर्मी के कारण बेचैनी का अनुभव करते हैं। इन प्राणायामों का अभ्यास करने से न केवल शरीर का मुख्य तापमान शांत होता है, बल्कि मन भी शांत महसूस करता है। ये पूरे शरीर पर बहुत स्फूर्तिदायक, सुखदायक, आराम और शीतलन प्रभाव डालते हैं। ये प्राणायाम पेट की अम्लता और रक्तचाप को कम करने में भी मदद करता है। योगाचार्य गणेश प्रसाद सोनकर का कहना है कि शीतली प्राणायाम का उल्लेख योग ग्रंथ और घेरंड संहिता में मिलता है। शीतली प्राणायाम आमतौर पर अन्य आसनों के अभ्यास करने के बाद किया जाता है। शीतली शब्द संस्कृत शब्द “शीतल” से बना है जिसका अर्थ ठंड है । नाम से स्पष्ट हो जाता है कि इस प्राणायाम को करने से व्यक्ति के पूरे शरीर पर ठंडा प्रभाव पड़ता है। इस प्राणायाम का अभ्यास मन के साथ-साथ शरीर को भी शांत करने के किया जाता है। शीतली प्राणायाम करने की विधि -शीतली प्राणायाम में जीभ एक नली आकृति जैसी हो जाती है दूसरे शब्दों में ” स्ट्रॉ ” की तरह जो की ठंडा पेय पीने की लिए उपयोग होता है । कुछ लोगों के लिए जीभ को मोड़ना मुश्किल हो सकता है, वे शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास वैकल्पिक की तरह कर सकते, जो समान लाभ देता है। किसी भी एक आरामदायक मुद्रा में बैठें और अपनी आँखें बंद करें । अपना मुंह खोलें और जीभ को बाहर लाएं और एक नली आकृति में रोल करें। यदि आपको यह मुश्किल लगता है, तो बस अपनी जीभ से अंग्रेजी का शब्द “ड” बनाएं। जीभ के माध्यम से एक लंबी साँस अंदर को ले और अपने फेफड़ों को हवा से भर ले । साँस लेना के अंत में, जीभ को अंदर खींचें, मुंह बंद करें और नाक से धीरे धीरे साँस छोड़ें। साँस को अंदर लेते समय चूसने वाली ध्वनि उत्पन्न करनी चाहिए, जिसे जीभ, मुंह और गले पर ठंड का अहसास होगा। लाभ :वैदिक ग्रंथों के अनुसार, इस प्राणायाम का रोजाना अभ्यास करने से पित्त की बढ़ी हुई विकारों से संबंधित समस्याओं से राहत मिल सकती है। इस प्राणायाम का रोजाना अभ्यास करने से भूख और प्यास को नियंत्रित करने की शक्ति मिलती है। शीतली प्राणायाम पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियों में मदद करता है।