दिल्ली में हिंसा


हाल ही में एक बंदूकधारी नौजवान शाहीन बाग के धरने में घुसता हुआ पकड़ा गया था, लेकिन अब तो पड़ोस में गोली ही चल गई। एक तमंचेबाज किशोर ने गोली चलाई और जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी के एक छात्र के हाथ पर लगी। वह जख्मी हुआ और एम्स में आॅपरेशन के बाद उपचाराधीन है। स्थिति खतरे के बाहर बताई गई है। कैसी विडंबना है और हिंसक हरकत है कि अहिंसा के देवदूत महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर यह गोलीकांड किया गया। यह किशोर भी नाथूराम गोडसे की नई जमात हो सकता है। गोडसे ने 30 जनवरी,1948 को गांधी पर तीन गोलियां चलाईं और सब कुछ राम-राम कर दिया। यह किशोर उस जहरीली प्रवृत्ति की देन भी हो सकता है, जो आजकल बोई जा रही है और नौजवान ही ज्यादातर उसके शिकार हो रहे हैं। दरअसल जामिया के छात्र गांधी के समाधि-स्थल राजघाट तक विरोध मार्च निकालना चाहते थे। हालांकि उन्हें प्रशासन और पुलिस की अनुमति नहीं थी। विरोध-प्रदर्शन वाली भीड़ में से ही वह किशोर बाहर आया और प्रदर्शनकारियों की तरफ पिस्तौल तान ली। काफी देर तक वह विरोधियों को धमकाता रहा, पिस्तौल हवा में लहराता रहा और खुद कूदता रहा, लेकिन पीछे खड़े पुलिसकर्मी न तो उसके हथियार को छीन पाए और न ही उसे दबोच पाए। शायद वे उसकी अंतिम कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहे थे! या पुलिस को ऐसा ही कोई आदेश होगा! तमंचेबाज को तब पकड़ा गया, जब वह गोली चला चुका था और मास कम्युनिकेशन का एक छात्र घायल हो चुका था। शुक्र है कि अनहोनी और आपदा यहीं तक सीमित रही। अलबत्ता कुछ भी हो सकता था। यह टकराव शाहीन बाग की परिणति हो सकता है। गोलीबाज की फेसबुक के जो पोस्ट सामने आए हैं, उनमें लिखा गया था-शाहीन बाग खेल खत्म।तुम्हें आजादी दे रहा हूं।.हिंदुस्तान में रहना है, तो वंदे मातरम कहना होगा।..मेरी अंतिम यात्रा में जय श्रीराम बोलना। ऐसी टिप्पणियां उस तमंचेबाज ने की थीं या किसी और ने.यह जांच के बाद ही स्पष्ट होगा। इन नारों के आधार पर ही उसे किसी संगठन विशेष से जोड़ा नहीं जा सकता। हालांकि फेसबुक प्रोफाइल में उसने बजरंग दल का सदस्य बताया है। वह खुद को महाराणा प्रताप का अनुगामी भी मानता है। उसकी उम्र 18 साल भी पूरी नहीं हुई है। यह 10वीं का प्रमाण पत्र और आधार कार्ड देखने के बाद पुलिस ने घोषित किया है कि वह नाबालिग है। इसकी पुष्टि भी जांच के दौरान ही होगी। उसने अपने नाम के आगे रामभक्त विशेषण जोड़ा हुआ है। बहरहाल ऐसे कांडों के बाद अब लगता है कि देश की राजधानी नफरत, उन्माद, अराजकता और उकसावे की हिंसा की स्थली बन गई है। बापू गांधी के हिंदुस्तान के इस महानगर में अहिंसा गायब है। माहौल और परिवेश इतने उग्र और उत्तेजित हो गए हैं कि अब बंदूक की संस्कृति आम हो गई है। इससे कौन निजात दिलाएगा? बेशक शाहीन बाग का धरना और विरोध-प्रदर्शन भी अवैध और असंवैधानिक हैं। वह बीते 46 दिनों से निर्बाध जारी है। नफरत और हिंसा उसके भीतर भी है, क्योंकि कवरेज करने गए कुछ पत्रकारों और कैमरा टीमों को मारा-पीटा गया है। उनके कैमरे तोड़े गए हैं। आखिर इसे संबोधित करने और समाधान निकालने की जिम्मेदारी किसकी है? एक तो ऐसा संवेदनशील और घृणास्पद माहौल है और ऊपर से भाजपा के मंत्री और सांसद भड़काऊ भाषण देते हुए गोली मारने के नारे लगवाते हैं। लो, एक सिरफिरे ने गोली भी चला दी!
आखिर प्रधानमंत्री मोदी कब तक ह्यशेर की सवारीझ् करते रहेंगे। वह इस देश के शासक हैं, सरकार हैं, प्रथम और बुनियादी जिम्मेदारी उन्हीं की है कि जो जहर देश के विभिन्न हिस्सों में बोया जा रहा है, उसे अभी नष्ट करें। यह गोलीकांड उसी जहर का नतीजा हो सकता है, जो फिजाओं में घोला जा रहा है। ये गतिविधियां कई स्तरों पर की जा रही हैं। लिहाजा राजधानी दिल्ली भी बदल रही है। अब सड़कों पर हाथों में पिस्तौल या कोई भी हथियार लिए असंख्य चेहरे सरेआम घूमते हैं। नतीजतन हररोज कई ह्यगांधीझ् मारे जा रहे हैं। अब यह देश धीरे-धीरे उस ह्यमहात्माझ् को भी भूलने लगेगा, जिसने करीब 30 सालों तक करोड़ों लोगों का नेतृत्व किया और देश को आजाद कराने में सबसे पहली भूमिका निभाई। अब तो गली-गली गांधी के पुतले बनाकर उन पर गोलियां चलाई जा रही हैं, मानो गोलीबाज ह्यगोडसेझ् हों! देश के लिए यह त्रासद स्थिति है। सोचिए, जिन्हें सोचना और फिर कोई कार्रवाई करनी है।