(राजेश राय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। पड़ोस के मिजार्पुर जनपद के विंध्याचल में रोपवे का लोकार्पण तो कर दिया गया। बताया गया है इससे श्रद्धालुओं को काफी सहूलियत होगी। देखा जाय तो विंध्याचल के मुकाबले वाराणसी आस्था ,पर्यटन और संस्कृति का बड़ा केंद्र है। यहाँ एक ही साथ हिन्दू,बौद्ध जैन आदि अनेक धर्मो के प्रमुख धर्मस्थल हैं जहाँ देश विदेश से हर साल लाखों धर्मावलंबियों यहां आना होता है। बढ़ती आबादी, अतिक्रमण व सिकुड़ती सड़कों के चलते काफी समय से वैकल्पिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की चर्चा चल रही है ताकि पर्यटकों के साथ साथ स्थानीय निवासियों को सुविधा हो।लेकिन वाराणसी में मेट्रो और रोपवे की चर्चा कुछ-कुछ मौसमी बुखार की तरह हो चली है। पिछले 5 सालों में लगभग एक डेढ़ दर्जन बार इस पर गंभीर चर्चा हुई पर वह अंजाम तक नहीं पहुंच सकी। इसकी फिसिबिलिटी जांचने और सर्वे पर अब तक लगभग 7 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इतनी भारी भरकम राशि खर्च होने के बाद क्या हासिल हुआ बताने वाला कोई नहीं। क्योंकि यह पैसा व्यक्तिगत तो था नहीं। यह तो जनता की गाढ़ी मेहनत की कमाई थी जो टैक्स के रूप में सरकार को अदा की गयी थी।
कभी हैवी मेट्रो तो कभी लाइट मेट्रो की योजना बनायी गयी। फिर एक समय ऐसा भी आया जब कहा गया दोनों ही मेट्रो शहर के लिये उपयुक्त नहीं है। इसकी जगह रोपवे ज्यादा मुफीद होगा। फिर क्या था रोपवे की फिसिबिलिटी जांचने के नाम पर 81 लाख खर्च कर दिये गए। इसके पहले साढ़े 5 करोड़ मेट्रो के सर्वे के नाम पर खर्च किये गए। मेट्रो और रोपवे की योजना लागू करने का जिम्मा वीडीए को सौंपा गया था।कभी कहा गया कि आधी मेट्रो जमीन के अंदर तो आधी बाहर चलेगी। फिर कहा गया कि एक मेट्रो एयरपोर्ट से सीधे शहर को चलेगी। कई रूट पर चर्चा चली। कभी लंका तो कभी गोदौलिया और कभी मैदागिन तक कागज पर मेट्रो दौड़ाई गयी। लेकिन कोई रुट फाइनल नहीं हुआ। होता भी कैसे।जब बाहरी ऐजेंसी को शहर के इतिहास भूगोल की जानकारी ही नही थी तब सर्वे क्या खाक होता। जब आधे शहर में जमीन के नीचे मोटी मोटी सीवर और पेयजल की पाइप का जाल बिछा हो और अतिक्रमण के चलते सड़कें गलियों में तब्दील हो गयी हों तो मेट्रो क्या चलेगी, रिक्शा चल जाय तो बहुत बड़ी बात होगी।
ऐसा नहीं है बनारस में मेट्रो चल ही नहीं सकती। बखूबी चल सकती है। लेकिन इसके लिये विश्वनाथ धाम जैसा दृढ़ निश्चय और हरदेव सिंह वीणा कुमारी , बीएस भुल्लर जैसा अधिकारी चाहिये। विश्वनाथ धाम तो प्रधानमंत्री के दिल के करीब है। दुर्भाग्य से मेट्रो और रोपवे न तो किसी की प्राथमिकता की सूची में है न किसी के दिल के करीब। कहने को शहर में दो मंत्री और जिले में सत्तारूढ़ दल के 7 जनप्रतिनिधि हैं।लेकिन वीआईपी की अगवानी और फोटो खिंचवाने के अलावा पिछले 5 साल में कुछ नहीं हुआ। जो कुछ भी हुआ दिल्ली के स्तर पर ही हुआ।चुनाव नजदीक है।देखने वाली बात होगी कि स्थानीय जनप्रतिनिधि अपने खाते की कुछ उपलब्धि भी जनता के सामने लाते हैं या प्रधानमंत्री का ही गुणगान करते रहेंगे।
7000 करोड़ का था मेट्रो प्रोजेक्ट
उत्तरप्रदेश मेट्रो रेल कारपोरेशन ने वाराणसी में मेट्रो चलाने की योजना बनाई थी जिसके लिये राइट्स को सर्वे की जिम्मेदारी सौंपी गयी। राइट्स ने मेट्रो के लिये दो रूट तय किये। पहला भेल से बीएचयू दूसरा बेनियाबाग से सारनाथ। डीपीआर के मुताबिक कुल 26 स्टेशन बनने थे। जिसमें 80 प्रतिशत अंडरग्राउंड थे।20 स्टेशन अंडरग्राउंड तो 6 स्टेशन एलिवेटेड बनने थे।लगभग 30 किलोमीटर लंबी और 7 हजार करोड़ कीइस परियोजना की सन 2015 में डीपीआर तैयार हुई जिसे 2016 में यूपी कैबिनेट ने फिर इसी साल केंद्र ने भी मंजूरी दे दी।लेकिन सन 2017 आते आते इस योजना पर इस आधार पर ब्रेक लग गया कि मेट्रो को ज्यादा यात्री नहीं मिलेंगे और यह घाटे का सौदा होगा।
424 करोड़ से बनी थी रोप-वे चलाने की योजना
वीडीए के तत्कालीन वीसी राहुल पांडेय ने बताया था कि रोप-वे का प्रस्ताव शासन के जरिए भारत सरकार को भेजा जाएगा जहां से मंजूरी मिलने के बाद कैंट स्टेशन से गोदौलिया तक रोप-वे चलेगा। 424 करोड़ की इस योजना को आकार दिया जाएगा। पांडेय ने बताया था कि रोप-वे से रोजाना 72 हजार यात्री ढोए जाएंगे। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसे कैंट, रथयात्रा होते हुए गोदौलिया तक संचालित किया जाएगा।