वॉशिंगटन, : जलवायु संकट को खत्म करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी करना अब तक वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण लक्ष्य था और दुनियाभर की सरकारें कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए थोड़ी-बहुत कोशिश कर रही थीं…लेकिन, पहली बार, संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट ने एक अधिक खतरनाक गैस को लेकर अत्यधिक खतरनाक चेतावनी दिया है और कहा है कि ये गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना ज्यादा धरती के वातावरण को गर्म कर रही है और इंसान इससे कैसे बचेगा, ये सबसे बड़ा सवाल है। वैज्ञानिकों ने मीथेन गैस को लेकर बेहद गंभीर चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अदृश्य और गंधहीन मीथेन गैस…पूरी दुनिया की सेहत को काफी खतरनाक तरीके से प्रभावित कर रही है।
साइबेरिया ने पूरी दुनिया को खतरे में डाला, जहरीली गैस निकलने से लाखों लोगों की जिंदगी पर खतरा
8 लाख साल बाद सबसे बड़ा खतरा
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल के अनुसार वातावरण में मीथेन की सांद्रता कम से कम 8 लाख सालों में इंसानों के ऊपर सबसे ज्यादा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि 2040 इस्वी तक पृथ्वी के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो जाएगा और इसमें सबसे बड़ा योगदान मीथेन गैस का है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मीथेन उत्सर्जन को तेजी से कम करने की आवश्यकता है। आईपीसीसी रिपोर्ट के प्रमुख लेखक चार्ल्स कोवेन ने कहा कि यह मीथेन गैस अविश्वसनीय तरीके से धरती के वातावरण को गर्म कर रहा है। वहीं कुछ वैज्ञानिकों ने कहा है कि अमेरिका और कनाडा में इस साल गर्मी से सैकड़ों लोग मारे गये हैं और इस गर्मी के पीछे मीथेन गैस ही जिम्मेजार है।
पृथ्वी पर सबसे बड़ा खतरा
आईपीसीसी रिपोर्ट के प्रमुख लेखक चार्ल्स कोवेन ने कहा कि ”मीथेन गैस उत्सर्जन को काफी कम करके हम जलवायु परिवर्तन को कम करने में कामयाब हो सकते हैं”। चार्ल्स कोवेन ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि ”अगर इंसानों ने आज से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम कर दिया तो भी अगले कई सालों तक वायुमंडलीय तापमान में कमी नहीं आएगी, क्योंकि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस लंबे वक्त तक मौजूद रहती है, लेकिन अगर हम मीथेन गैस के उत्सर्जन में कमी करते हैं तो अगले कुछ सालों में ही वायुमंडलीय तापमान में कमी होना शुरू हो जाएगा।” उन्होंने कहा कि अगले 10 वर्षों में वैश्विक तापमान का रास्ता बदलने के लिए मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करना ही एकमात्र विकल्प है”। आपको बता दें कि ”मीथेन, प्राकृतिक गैस का मुख्य घटक है, जिसका उपयोग हम अपने स्टोव को ईंधन देने और अपने घरों को गर्म करने के लिए करते हैं”।
बढ़ रहा है मीथेन का ग्राफ
2000 के दशक की शुरुआत में मंदी के बाद से वायुमंडलीय मीथेन सांद्रता पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ी है, और पिछले पांच सालों में मीथेन गैस का उत्सर्जन और ज्यादा खतरनाक तरीके से बढ़ा है। इस प्राकृतिक गैस को “पुल ईंधन” के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, जो अमेरिका को नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तित करेगा क्योंकि यह कोयले की तुलना में अधिक कुशल है और जलने पर कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। उद्योग के लिए महत्वपूर्ण रूप से, प्राकृतिक गैस दुनिया भर में प्रचुर मात्रा में आपूर्ति में है और जमीन से निकालने के लिए कम खर्चीला है।
कहां से निकलती है मीथेन गैस ?
मीथेन तेल और प्राकृतिक गैस के कुओं, प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों से काफी मात्रा में निकलती है। यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में प्राकृतिक गैस के लिए हजारों सक्रिय कुएं हैं। वहीं लाखों तेल के ऐसे कुएं हैं, जहां से तेल का उत्पादन तो नहीं होता, मगर गैस काफी निकलती है। वहीं, अमेरिका में लाखों गैस के कुओं से मीथेन गैस निकलती है, जबकि करीब 20 लाख मील की प्राकृतिक गैस पाइपलाइन और कई रिफाइनरियां हैं, जिनसे मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। अमेरिका के अलावा, चीन, रूस और खाड़ी देशों से भी भीषण मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु को काफी तेजी से गर्म करता है और इंसानों की जिंदगी पर काल की तरफ मंडराता है।
विश्व में मीथेन गैस का उत्सर्जन
दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन, कृषि और कोयला खनन से मीथेन उत्सर्जन आसमान छू रहा है। लेकिन, इनका उत्पादन कम होने के बजाए और बढ़ाया जा रहा है। उत्तरी अमेरिका में कुल मीथेन उत्सर्जन का 14% तेल और गैस उत्पादन से होता है। जिसके बाद पशुधन से 10% मीथेन गैस का उत्पादन होता है। वहीं चीन में कोयला खनन से सबसे ज्यादा मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो कुल उत्सर्जन में 24% है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि दुनिया भर के तेल और गैस उद्योग पहले से उपलब्ध तकनीक का उपयोग करके मीथेन गैस का उत्सर्जन 75% तक कम कर सकते हैं। यह भी अनुमान है कि 40% उत्सर्जन को बिना अतिरिक्त लागत के कम किया जा सकता है, लेकिन दुनिया के देश इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं और ये इंसानों के लिए तबाही के समान मुंह खोल रही है।