गाजीपुर (काशीवार्ता)। जिले से सांसद रहे एवं मौजूदा समय में जम्मू एवं कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से भाजपाइयों का प्रेम कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। इसकी मुख्य वजह आगामी विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की उम्मीदवारी बताई जा रही है। अक्सर जिले के नेताओं का राजभवन से फोटो भेजना और एलजी से मिलना चर्चा का विषय बना हुआ है। अब सवाल उठता है कि क्या इस बार भी 2017 की तरह ही उम्मीदवारों का नाम तय करते समय भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सिन्हा से राय लेगा। इसको लेकर सत्ता के गलियारों में काफी चर्चा है।
गाजीपुर लोकसभा का चुनाव हारने के कई माह बाद मनोज सिन्हा को जम्मू एवं कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया गया था। वहां पर वह मुख्यमंत्री का भी कामकाज देख रहे हंै। साथ ही उनकी हमेशा मीडिया में भी कवरेज देखने को मिलती है। मनोज सिन्हा एलजी बनने के बाद एक बार जिले में आए तो उन्होंने भावुक भाषण देकर सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया था। उनके भाषण से ऐसा लगा कि वह 2024 का चुनाव लड़ेंगे। हालांकि 2024 आने से पहले 2022 में यूपी विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में जब वह पिछले दिनों वाराणसी आए तो भाजपा जिलाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह के साथ ही महामंत्री और कोषाध्यक्ष भी उनका स्वागत करने एयरपोर्ट पर पहुंचे थे। इस दौरान कुछ ऐसे लोग भी भाजपा के थे, जो 2022 में चुनाव लड़ना चाहते हैं। जिसमें जमानियां, सदर के साथ ही कुछ अन्य विधानसभाओं के नेता शामिल थे। अब सवाल उठता है कि क्या एलजी बनने के बाद यूपी के साथ ही जिले की सियासत में उनके दखल को भाजपा स्वीकार करेगी। भाजपा का एक गुट मानता है कि अगर 2024 में मनोज सिन्हा को चुनाव लड़ना है तो उन्हें अपने विधायक भी बनाने होंगे।
इसलिए उनका भी अनुरोध पत्र पैरवी के साथ मोदी सरकार में गृहमंत्री अमित शाह के पास जाना चाहिए। जबकि दूसरे गुट की अलग ही राय है। वे लोग कहते हैं कि अब एलजी साहब की उतनी नहीं सुनीं जाएगी, जितनी पहले सुनीं जाती थी। क्योंकि भाजपा का पूरा ध्यान आगामी विधानसभा चुनाव पर है। एक वर्ष से अधिक समय से मनोज सिन्हा जिले की सियासत से दूर हैं। इसलिए उनकी पैरवी उतनी प्रभावशाली नहीं होगी, जितनी पहले थी। गौर करने वाली एक बात और होगी कि भाजपा को चेयरमैन के साथ ही 11 ब्लाक प्रमुख विजयी बनाकर देने वाले एमएलसी विशाल सिंह चंचल की भी सियासी हैसियत किसी से छिपी नहीं है। सियासी पंडित मानते हैं कि भले ही शीर्ष नेतृत्व चंचल की बात न माने, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक अपनी पसंद वाले प्रत्याशियों के नाम चंचल वहां तक भेजने में कामयाब होंगे। सीधे तौर पर इसे ऐसे कहा जाए कि चंचल को दरकिनार करके भाजपा जिले में कुछ ऐसा नहीं करेगी कि जिससे संदेश गलत जाए। क्योंकि भाजपा यह जानती है कि जमीनी पकड़ वाले नेता के तौर चंचल इस बार उभरे हैं, जब मनोज सिन्हा की जिले में सियासी रूप से उपस्थिति नहीं थी। मगर उन नेताओं को इस बात का भरोसा है कि एलजी मनोज सिन्हा जिले की सियासत में अपने मन वाली कराने में सफल होंगे। इसको लेकर उनके लोग उत्साहित हैं। एक बात गौर करने वाली होगी कि तीनों विधायकों में कुछ ऐसी भी विधायक हैं जिन्हें अब एलजी उतना पसंद नहीं करते जितना पहले करते थे। उनके लोग यह मानते हैं कि चुनाव हारने में उनकी भी भूमिका संदिग्ध थी।