पेरिस, : परमाणु पनडुब्बी डील को लेकर यूरोपीय देश फ्रांस और अमेरिका के बीच विवाद काफी बढ़ता जा रहा है और नाराज फ्रांस ने अब अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को तत्काल वापस बुला लिया है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच परमाणु पनडुब्बी को लेकर डील किया गया है, जिसके बाद से फ्रांस बुरी तरह से बिफरा हुआ है और उसने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के ऊपर दोस्त बनकर दगाबाजी करने के आरोप लगाए हैं।
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बुरी तरह से गुस्से में है फ्रांस
फ्रांस ने शुक्रवार देर रात कहा कि वह अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को तुरंत वापस बुला रहा है। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी के साथ निर्मित परमाणु पनडुब्बी को लेकर समझौता कर उसने फ्रांस के साथ पारंपरिक पनडुब्बी खरीद को रद्द कर दिया है और ऑस्ट्रेलिया का ये कदम दो देशों के बीच के समझौते का उल्लंघन है और फ्रांस ने कहा है कि अमेरिका ने एक दोस्त बनकर उसके पीठ में छुरा घोंपा है। फ्रांस के विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने एक लिखित बयान में कहा कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन का अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से राजदूतों को वापस बुलाने का फैसला बिल्कुल सही है। उन्होंने बुधवार को ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच परमाणु पनडुब्बी को लेकर हुए डील को ‘सहयोगी देशों के बीच अस्वीकार्य व्यवहार’ बताया है।
अमेरिका-फ्रांस में बढ़ तनाव
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में परमाणु पनडुब्बी को लेकर हुए डील के बाद से ही फ्रांस की तरफ से काफी कड़ी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। फ्रांस के एक राजनयिक ने इस डील को अमेरिका-फ्रांस संबंधों के बीच एक क्राइसिस बताया है। फ्रांसीसी राजनयिक ने कहा कि ‘अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की बीच हुए इस डील के बाद फ्रांस के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक सवाल खड़े हो गये हैं’। वहीं, अभी तक फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की तरफ से अभी तक अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया डील को लेकर कई टिप्पणी नहीं की गई है। इसके साथ ही इंडो- पैसिफिक में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच बनाए गये नये गठबंधन ‘ऑकस’ को लेकर भी कोई टिप्पणी नहीं की है, जबकि इंडो-पैसिफिक से फ्रांस का हित भी जुड़ा हुआ है। ऑपको बता दें कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए परमाणु पनडुब्बी डील से फ्रांस को करीब 100 अरब डॉलर का सौदा गंवाना पड़ा है, जिससे फ्रांस बुरी तरह से बौखलाया हुआ है।
ऑस्ट्रेलिया ने रद्द किया फ्रांस से डील
फ्रांसीसी राजनयिक ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रपति मैक्रों को बुधवार सुबह ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का एक पत्र मिला जिसमें पनडुब्बी सौदे को रद्द करने की घोषणा की गई थी। फ्रांसीसी अधिकारियों ने तब अमेरिकी प्रशासन से संपर्क करने का फैसला किया और पूछा कि “यह क्या चल रहा है,”। उन्होंने कहा कि बाइडेन की सार्वजनिक घोषणा से ठीक दो से तीन घंटे पहले वाशिंगटन के साथ चर्चा हुई। फ्रांसीसी विदेश मंत्री ने तो यहां तक कहा कि, ”अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया का ये कदम वास्तव में पीठ पर छूरा जैसा है। हमने ऑस्ट्रेलिया के साथ भरोसे की बुनियाद पर रिश्ता कामय किया था, लेकिन हमारे साथ धोखा हुआ है। यह सहयोगियों के बीच नहीं किया जाता है।” आपको बता दें कि, फ्रांस ने भारत और चीन से लेकर जापान और न्यूजीलैंड तक फैले इंडो पैसिफिक क्षेत्र में आर्थिक, राजनीतिक और रक्षा संबंधों को बढ़ावा देने के लिए यूरोपीय रणनीति के लिए कई वर्षों तक जोर दिया है। यूरोपीय संघ ने इस सप्ताह इंडो-पैसिफिक के लिए अपनी योजना का खुलासा किया।
अमेरिका पर भड़का फ्रांस
फ्रांस के विदेश मंत्री ने अमेरिका पर भी अपने गुस्से का इजहार किया है और कहा है कि, ”यह एकतरफा, अचानक और अप्रत्याशित निर्णय डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा फैसलों की याद दिलाता है।” दरअसल, फ्रांस के विदेश मंत्री ले ड्रियन ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का जिक्र करते हुए ये बता कही, जिन्होंने कई अप्रत्याशित फैसले लिए थे, जिससे यूरोप काफी ज्यादा परेशान हुआ था। ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस की नौ-सेना ग्रुप के साथ, जिसमें फ्रांस की आंशिक हिस्सेदारी थी, उसके साथ पारंपरिक रूप से संचालित पनडुब्बियों का निर्माण करने के लिए करार किया था। ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के बीच 2016 में करीब 100 अरब डॉलर में करार किया गया था। और अब ये डील रद्द होने के बाद फ्रांस को बहुत बड़ा झटका लगा है और ये झटका उसके ही दोस्त देशों ने दिया है। जिससे फ्रांस तिलमिलिया हुआ है।
चर्चा में था ऑस्ट्रेलिया के साथ करार
फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच जब ये करार किया गया था, उस वक्त फ्रांस के विदेश मंत्री ले ड्रियन ने इस डील को फ्रांस के नौसैनिक यार्ड के लिए “सदी का अनुबंध” कहा था। और जब उनसे इस बाबत आज सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ”वाशिंगटन ने पेरिस को “धोखा” दिया है। फ्रांस के विदेश मंत्री ने रेडियो से कहा कि, “स्थिति का आपका विश्लेषण कमोबेश सही है।” उन्होंने कहा कि फ्रांस और उसके सहयोगी बीजिंग की बढ़ती क्षेत्रीय ताकत के सामने “सुसंगत और संरचित हिंद-प्रशांत नीति” पर काम कर रहे हैं।