वॉशिंगटन, दुनिया में कई ऐसे ऑपरेशंस को अंजाम दिए गये हैं, जिनके बारे में उस वक्त पता नहीं चलता, जब उसे अंजाम दिया जाता है, बल्कि उसका पता कई सालों के बाद तब पता चलता है, जब उस ऑपरेशन में शामिल कोई एजेंट या कोई अधिकारी उसका खुलासा करे। एक ऐसे ही खतरनाक ऑपरेशन का खुलासा किया गया है न्यूयॉर्क टाइम्स के द्वारा। ये खुलासा तीन देशों के खुफिया अधिकारियों से लगातार बातचीत के आधार पर किया है और कई अधिकारियों के इंटरव्यू के बाद पता चला है कि आखिर कैसे अमेरिका और इजरायल ने ईरान के सबसे बड़े परमाणु वैज्ञानिक का कत्ल किया था। इस ऑपरेशन का एक-एक हिस्सा हैरतअंगेज कारनामों से भरा हुआ है।
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अमेरिका-इजरायल का सीक्रेट मिशन
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अमेरिका, इजरायल और ईरान के दर्जनों खुफिया अधिकारियों से बात करने के बाद आधार पर ईरान के न्यूक्लियर वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह, जिन्हें ईरान का ‘फादर ऑफ एटोमिक प्रोग्राम’ भी कहा जाता है, उनकी हत्या का खुलासा किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक को मारने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और कई कैमरों से जुड़े मशीन गन का इस्तेमाल किया गया था, जो एक मिनट में 600 गोलियां दागने में सक्षम है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मशीन गन को रोबोटिक टेक्नोलॉजी से तैयार किया गया था और एक हजार मील की दूरी से रिमोट कंट्रोल के जरिए इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के स्नाइपर ने निशाना लगाया था। यानि, एक हजार मील की दूरी से बैठकर एक स्नाइपर ने ईरान के न्यूक्लियर साइंटिस्ट की हत्या की थी।
इजरायल का था स्नाइपर
ऑपरेशन से जुड़े अमेरिकी-इजरायली अधिकारियों ने बताया कि ईरान के परमाणु वैज्ञानिक की हत्या करने के लिए बकायदा काफी दिनों तक प्लानिंग की गई थी और इजरायल की खुफिया एजेंसी के स्नाइपर ने करीब एक हजार मील की दूरी से उनपर हमला किया था। अधिकारियों ने खुलासा किया कि मोसाद के स्नाइपर ने रिमोट कंट्रोल के जरिए मशीन गन का ट्रिगर खींचा था। अधिकारियों ने कहा कि इजरायली स्नाइपर एक हजार मील की दूरी पर था और वो लगातार सैटेलाइट तस्वीरों को देख रहा था। अधिकारियों ने हमले के बार में विस्तृत खुलासा करते हुए कहा कि, जिस घातक बंदूक से ईरानी वैज्ञानिक के ऊपर चलाया गया था, उसे एक पिकअप ट्रक में रखा गया था, जो टार्गेट के इंतजार में था।
कैसे दिया ऑपरेशन को अंजाम?
अधिकारियों ने खुलासा किया है कि कैमरे लगे मशीन गन को एक पिकअप ट्रंक में रखकर टार्गेट का इंतजार किया जा रहा था। ये मशीन गन ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से जुड़ा हुआ था और इसमें काफी हाइटेक कैमरे लगे हुए थे। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को इस तरह से प्रोग्राम किया गया था कि, ईरान और अज्ञात जगह पर मौजूद स्नाइपर की जगह के बीच 1.6 सेकेंड्स का समय अंतराल था, उसकी समस्या को भी खत्म किया गया। इसके साथ ही बंदूक से गोली निकल जाने से लेकर कार में बैठे ईरानी वैज्ञानिक को गोली लगने तक की हलचल को वो रिकॉर्ड कर सके। कितनी सटीकता से मोसाद के स्नाइपर ने ऑपरेशन को अंजाम दिया, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जब ईरान के वैज्ञानिक को एक हजार मील की दूरी से गोली मारी गई थी, उस वक्त उस कार में वैज्ञानिक की बगल वाली सीट पर उनकी पत्नी बैठी थीं, फिर भी वैज्ञानिक की पत्नी को खरोंच तक नहीं आई।
जासूसी कार से जानकारी
ऑपरेशन में शामिल अधिकारियों ने खुलासा किया है कि एक जासूसी कार की मदद से ईरान वैज्ञानिक की कार की स्पीड को कम किया गया था। अधिकारियों के मुताबिक, ईरान वैज्ञानिक अपनी कार को एक मोड़ से यू-टर्न लेने वाले थे और इस जगह पर कैमरों से लैस एक जासूसी कार को सेट किया गया था, ताकि ईरानी वैज्ञानिक की ना सिर्फ शिनाख्त की जा सके, बल्कि उनकी कार की स्पीड को भी कम किया जा सके। कैमरे से देखा जा रहा था कि वैज्ञानिक कार में किस सीट पर बैठे हैं और वो क्या कर रहे हैं। खुफिया अधिकारियों ने कहा कि उस कार के जरिए हम ये भी पुष्टि करना चाहते थे कि हमारा मिशन कामयाब हुआ या नहीं।
कई सालों से चल रही थी तैयारी
ईरान के न्यूक्लियर वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह को बेहद सीक्रेट रखा जाता था और उन्हें उनके अड्डे से बाहर निकालने के लिए इजरायल ने कई साल पहले ही प्लान तैयार कर लिया था और उन्हें उनके सीक्रेट अड्डे से बाहर लाने के लिए मोसाद के एजेंट ने कई प्लॉट तैयार किए थे। इजरायल को पक्की जानकारी थी कि मोहसिन फखरीजादेह कुछ ही सालों में ईरान के लिए न्यूक्लियर हथियार बनाने में कमयाब हो जाएंगे, जो उसके लिए खतरा होगा। लिहाजा मोसाद के एजेंट्स ने ऐसे-ऐसे प्लॉट तैयार किए थे, कि वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह को सीक्रेट अड्डे से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा, और मोसाद के एजेंट इसी ताक में बैठे हुए थे। रिपोर्ट के मुताबिक, पहले ये ऑपरेशन धीरे-धीरे चल रहा था, लेकिन जब ये तय होने लगा कि डोनाल्ड ट्रंप फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं चुने जाएंगे, तो फिर इस ऑपरेशन को और ज्यादा तेज कर दिया गया। इजरायल के अधिकारियों का मानना था कि अगर जो बाइडेन सत्ता में आते हैं, तो वो ईरान के साथ परमाणु हथियारों को लेकर फिर से समझौता कर लेंगे, ऐसे में इजरायल ने डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में ही ईरानी परमाणु वैज्ञानिक को मारने की पूरी प्लानिंग तैयार कर ली।
ड्रोन की जगह मशीन गन
इजरायली अधिकारियों ने हमले को अंजाम देने के लिए ड्रोन की जगह पर मशीन गन को चुना। इसके पीछे वजह ये थी कि ड्रोन का पता लगाना काफी आसान होता है, जबकि मशीन को आसानी से छिपाया जा सकता था। एक खुफिया अधिकारी ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि चुनी गई बंदूक बेल्जियम निर्मित एफएन एमएजी मशीन गन का एक विशेष मॉडल थी जिसे तब एक हाईटेक रोबोटिक मशीन से जोड़ा गया था। उन्होंने कहा कि यह एस्क्रिबानो के सेंटिनल 20 मॉडल के समान था। एक एजेंट के मुताबिक, तस्करी के जरिए इजरायल ने उस बंदूक को ईरान पहुंचाया था। रिपोर्ट के मुताबिक, इस बंदूक को कई हिस्सों में बांटा गया था और एक एक हिस्से को कई महीनों में उस जगह पर पहुंचाया गया था, जहां से गोली चलाई जानी थी। एजेंट ने कहा कि जब मशीन गन को ईरान में पहुंचाने के बाद जोड़ा गया, तो उसका वजन करीब एक टन था। मशीन गन को तब नीले निशान ज़मायद पिकअप ट्रक के पीछे फिट किया गया था, जो सड़क के किनारे तैनात था। मशीन गन को छिपाने के लिए एक तिरपाल का इस्तेमाल किया गया था।
पिकअप वैन में भी लगे थे कैमरे
ईरान में मौजूद मोसाद के एजेंट्स इस सेटअप को तैयार कर रहे थे। पिकअप वैन में भी कैमरे लगाए गये थे, ताकि पूरे इलाके की तस्वीरें लगातार मिल सकें। पिकअब वैन और मशीन गन में जो कैमरे लगे थे, उसकी तस्वीरों को सैटेलाइट के जरिए स्नाइपर को भेजा जाना था और इस पूरी प्रक्रिया में 1.6 सेकेंड्स की देरी हो रही थी। लिहाजा समय को मिलाने के लिए भी अलग से काम किया गया, क्योंकि 1.6 सेकेंड में टार्गेट की गाड़ी काफी आगे बढ़ चुकी होती। इसके साथ ही हर राउंड की फायरिंग के साथ ही पिकअप ट्रक में भी हलचल पैदा होता, लिहाजा गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी। 1.6 सेकेंड्स के इस अंतर को खत्म करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद ली गई थी।
ऑपरेशन के बाद सबूत मिटाना
पूरा सेटअप तैयार करने के बाद सबूतों को मिटाने की भी जरूरत थी और सबसे बड़ा सबूत पिकअप वैन में ही लदा हुआ था, करीब एक टन का मशीन गन और कैमरे। लिहाजा, मिशन को अंजाम देने के बाद सबूतों को मिटाने के लिए पिकअप वैन को विस्फोट के जरिए उड़ाने की प्लानिंग की गई थी। लिहाजा पिकअप वैन में विस्फोटक को भर दिया गया था। इसके बाद ईरानी वैज्ञानिक के कार की स्पीड को कम करने के लिए एक यूटर्न के पास कार खड़ी थी, जिसे ईरानी वैज्ञानिक की कार के पास से कुछ इस तरह निकलना था, ताकि वैज्ञानिक को अपनी कार की स्पीड कम करना पड़े। इसके साथ ही कार में लगे कैमरे वैज्ञानिक की मौजूदगी की पहचान कर सके। इस कार को टूटी हुई कार के तौर पर दिखा गया था।
हमले वाला दिन
हमले वाले दिन ऑर्डर मिलने के बाद तय सेटअप के तहत ईरानी वैज्ञानिक को मोसाद के एजेंट्स ने उनके सीक्रेट अड्डे से निकलने के लिए मजबूर कर दिया। ईरानी वैज्ञानिक अपनी काली निशान गाड़ी से अपनी पत्नी के साथ रोस्तमकला में अपने घर से निकले। उन्होंने अपनी यात्रा को काफी गुप्त रखा था और उनकी सुरक्षा में सिर्फ एक ही पुलिस की गाड़ी चल रही थी। उन्होंने यात्रा करने के लिए अपनी ही गाड़ी को चुना था, जबकि इससे पहले वो बख्तरबंद गाड़ी में बाहर निकलते थे। कहा जाता है कि ईरानी वैज्ञानिक को घर से बाहर निकालने के साथ साथ ऐसा माहौल बनाया गया था कि वो सिर्फ अपनी पत्नी के साथ ही घर से बाहर निकलें। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे उनकी कार फिरोजकौह रोड के साथ उस बिंदु पर पहुंच गई, जहां उनकी कार ने यू टर्न लिया और फिर वहां मौजूद एजेंट्स की कार ने वैज्ञानिक की तस्दीक कर दी।
एक हजार मील से मारी गई गोली
अधिकारियों ने कहा कि ‘निश्चित प्वाइंट पर पहुंचते ही स्नाइपर ने एक साथ कई गोलियां दाग दीं, जो सीधे आकर वैज्ञानिक के कार के शीशे में छेद करते हुए उन्हें एक के बाद एक जाकर लगी।’ रिपोर्ट के मुताबिक, गोली लगने के बाद वैज्ञानिक अपनी कार से बाहर निकल आए, जिसके बाद स्नाइपर ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से खुद को री-पॉजिशन कर लिया और फिर से गोलियां दागीं, जो ईरानी वैज्ञानिक के कंधों पर जाकर लगी। कार से बाहर निकलने के बाद स्नाइपर ने उन्हें तीन और गोलियां मारीं। अधिकारियों ने कहा कि ईरानी इंजीनियर को स्नाइपर ने एक हजार मील की दूरी से 15 गोलियां मारी थीं और कहा जा रहा है कि उनकी पत्नी की बाहों में उन्होंने दम तोड़ दिया। कहा जाता है कि गोली कहां से मारी गई, इसका पता ईरान को कई महीनों तक नहीं चल पाया और ईरान लगातार कहता रहा कि किसी रोबोट के जरिए पास से गोली मारी गई। लेकिन, बाद में जाकर वो पिकअप गाड़ी मिल गई, जिसमें मशीन गन को रखा गया था। विस्फोट के बाद भी उसमें इतने सबूत मिल गये, जिससे खुलासा हो गया कि ईरानी वैज्ञानिक को कैसे मारा गया था।