(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, रामअचल राजभर सरीके दर्जनों नेताओं को बसपा से निकालने में तनिक भी देर नहीं करने वाली मायावती आखिर गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी को लेकर इतनी असहज स्थिति में क्यों हैं। उनके भाई बसपा से सपा में चले गए, लेकिन मायावती कुछ नहीं कर पाई। जी हां यह सच है कि अफजाल अंसारी ने इस कदर बसपा को अपने सियासी जाल में उलझाया है कि दोनों एक दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते। अफजाल सिर्फ इसलिए बसपा नहीं छोड़ रहे हैं कि पार्टी छोड़ेंगे तो सदस्यता चली जाएगी। मायावती अगर पार्टी से निकालती हैं तब भी उनकी सदस्यता बच जाएगी।
बसपा सांसद अफजाल अंसारी के सियासी पन्नों को अगर पल्टा जाए तो अफजाल का हर एक राजनीतिक कदम संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने 1985 में सीपीआई के टिकट पर मुहम्मदाबाद विधानसभा में 29816 वोट पाकर सियासत में कदम रखा और विधायक बने। अफजाल ने उस दौर के मजबूत कांग्रेसी नेता अभयनरायन राय को हराया था। जब अफजाल को 1985 में विधानसभा का चुनाव लड़ना था तो वह कांग्रेस के टिकट पर ही मैदान में उतरना चाहते थ, लेकिन उस जमाने में सियासत के मजबूत स्तंभ रहे स्व. सरजू पांडेय ने अफजाल को रोका और बोले, तुम हमारी पार्टी से सीपीआई से चुनाव लड़ जाओ, इसका भविष्य भी है। उस दौर में यह जिला कम्युनिस्टों का गढ़ था। इसी पार्टी से सांसद विधायक हुआ करते थे। अफजाल ने सरजू पांडेय की बात मान ली और वह मुहम्मदाबाद से 1985, 1989,1991 और 1993 से 1996 तक विधायक रहे, लेकिन तब तक समाजवादी पार्टी का शोर सुनाई देने लगा था। पिछड़े समाज के लोग जाग चुके थे। अफजाल ने सियासी हवा का रूख भांप लिया और मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी का दामन थामा और वह पांचवीं बार विधायक होने में कामयाब रहे। 1996 में हुए चुनाव में अफजाल को 63468 वोट मिले थे। उन्हें पोलिंग का कुल 41.96 प्रतिशत वोट मिला। इस बीच हिन्दुओं में अपनी मजबूत पहचान बनाने वाले कृष्णानंद राय की लोकप्रियता करईल में चरम पर पहुंच चुकी थी। इसको अफजाल नहीं भांप पाए, उन्हें लगा कि सब कुछ ठीक रहेगा। जब 2002 में चुनाव हुआ तो भाजपा के कृष्णानंद राय ने पांच बार विधायक रहे अफजाल अंसारी को 7772 वोटों से पराजित करके मुहम्मदाबाद में पहली बार भगवा झंडा पहरा दिया। अफजाल इस हार से सदमे में चले गए, लेकिन सपा ने अफजाल का सम्मान करते हुए 2004 के लोकसभा चुनाव में गाजीपुर से उम्मीदवार बनाया और उन्होंने रिकार्ड मतों से जीतकर मनोज सिन्हा को हराया। 29 नवम्बर 2005 में मुहम्मदाबाद के विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की हत्या ने पूरे प्रदेश को हिला दिया। इस हत्याकांड में मुख्तार अफजाल सहित अंसारी बंधुओं के परिवार को मुल्जिम बनाया गया और कई वर्षों तक मुकदमा चला, लेकिन साक्ष्य के अभाव में सीबीआई कोर्ट ने अंसारी परिवार को बरी कर दिया। कई बार सपा और बसपा से निकाले गए अफजाल ने अपनी पार्टी भी बनाई। हमेशा सेकुलर छवि बनाने की कोशिश करने वाले अफजाल ने 2019 में विकास पुरूष रहे मनोज सिन्हा को हराकर दूसरी बार सांसद बने। पांच बार विधायक एवं दो बार सांसद अफजाल अंसारी ने एक बार फिर तुरूप के पत्ते पर सियासी चाल चली और उन्होंने अपने भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को बसपा से सपा में शामिल कराकर एक तरह से मायावती को ही चुनौती दे दी। अंसारियों के बसपा में गए एक माह हो चुके हैं लेकिन अभी तक बसपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। सियासत के जानकार मानते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में यदुंवशियों के कर्ज को चुकता करने के लिए ही अफजाल ने सपा में अपने परिवार की इंट्री कराई।