व्रती महिलाएं कल देंगी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य


वाराणसी। लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ के तीसरे दिन व्रती महिलाएं कल अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगी। वहीं अगले दिन प्रात: उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण होगा। 36 घंटे का यह अत्यंत कठिन व्रत आज रात से ही शुरू हो जायेगा। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाने के छ: दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को इस पर्व को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है। यह चार दिनों का त्योहार है और इसमें साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। इस त्योहार में गलती की कोई जगह नहीं होती। इस व्रत को करने के नियम इतने कठिन हैं, इस वजह से इसे महापर्व और महाव्रत के नाम से संबोधित किया जाता है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।
घाटों पर जमा है मिट्टी, कैसे होगी छठ पूजा
वाराणसी (काशीवार्ता)। लोक आस्था का पर्व डाला छठ पर इस बार घाटों पर मिट्टी जमा होने से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कार्तिक मास मे गंगा के जलस्तर में वृद्धि होने के कारण इस बार घाटों पर काफी मात्रा में मिट्टी जमा हो गया है । सबसे बड़ी बात यह है कि यह जमा मिट्टी पूरी तरह से गीली और दलदली है जिसके कारण पूजा पाठ करने में परेशानी श्रद्धालुओं को हो सकती है। डाला छठ के पूजा में अब मात्र एक दिन ही शेष रह गया हैं । वाराणसी में डाला छठ का मुख्य पूजन बुधवार की शाम और गुरुवार की सुबह है लेकिन मिट्टी जमा होने के कारण लोगों को इस बार काफी परेशानी झेलनी पड़ सकती है। घाट पर मिट्टी जमा होने के कारण अस्सी घाट, तुलसी घाट पर जगह काफी सीमित मात्रा में रह गया है और पूजन अर्चन के लिए हजारों की भीड़ उमड़ती है ऐसे में इस बार पूजन अर्चन करने में भी काफी दिक्कत हो सकती हैं जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा प्रयास तो किया जा रहा हैं व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने की लेकिन समयाभाव के कारण यह होना यह संभव दिखाई नहीं देता है।
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।

वो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीघार्यु होने का आशीर्वाद मिलता है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।ं