(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। भदोही से तीन बार सांसद रहे बलिया लोकसभा के भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त की गिनती भाजपा के सीनियर नेताओं में की जाती है। उन्हें गंभीर एवं किसानों का नेता कहा जाता है। मगर यह सवाल उठता है कि चौथी बार सांसद हुए मस्त आखिर विकास पुरूष क्यों नहीं बन पा रहे हैं। जिस तरह से अन्य भाजपा के सांसद काम कर रहे है वहीं अंदाज मस्त का भी है। जबकि जहूराबाद के साथ ही मुहम्मदाबाद और बलिया की तीन विधानसभाओं की जनता चाहती है कि सांसद बलिया को ऐसा कुछ करना चाहिए, जिससे उन्हें विकास पुरूष होने का तगमा मिल सके। वहीं विकास के मामले में पिछड़ने पर यहां के लोग एक बार फिर मनोज सिन्हा को याद करते हैं। लोंगों का कहना था कि मनोज सिन्हा ने अपने सांसद कार्यकाल एवं मंत्री रहते विकास की खूब बैटिंग की। कई ऐसी परियोजनाएं लेकर आए तो उनको विकास पुरूष लोग कहने लगे। अब यही अपेक्षा मस्त से भी जनता कर रही है।
वीरेंद्र सिंह के सियासी सफरनामे पर चर्चा की जाए तो उनका जन्म 21 अक्तूबर 1956 में बलिया के दोकटी गांव में हुआ। वीरेंद्र सिंह के नाम के साथ मस्त मुनेश्वरा नंद खपरिया बाबा ने जोड़ दिया। वीरेंद्र सिंह मस्त ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति में पैर रखा। पहली बार वीरेंद्र सिंह मस्त 1991 में भदोही से 10वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1998 में दूसरी बार और 2014 में मोदी लहर में भी भाजपा ने भरोसा जताया और वीरेंद्र सिंह तीसरी बार सांसद बनने में कामयाब हो गए। मस्त 2019 में बलिया लोकसभा से चुनाव लड़े और सपा बसपा के गठबंधन के बाद भी जीत दर्ज किए और चौथी बार सांसद बने। वीरेंद्र सिंह जब सांसद बने तो जहूराबाद और मुहम्मदाबाद के लोगों में विकास की एक नई आस जगी। विकास शून्य जहूराबाद एवं मुहम्मदाबाद में कोई ऐसा बड़ा कार्य सांसद ने तीन वर्ष में नहीं कराया, जिसे जनता याद करती। सिधागरघाट कासिमाबाद मार्ग बदहाल था। जब जनता कष्ट सह ली तो उसे पीडब्ल्यूडी बना रहा है। कताई मिल बंद पड़ी है। उसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। अगर यह मिल चलती तो हजारों मजदूरों को रोजगार मिलता। पूरे विधानसभा की अधिकांश सड़कें चलने योग्य नहीं है। यहां पर भाजपा का विधायक नहीं होने से जनता और परेशान है।
हर तरह से लाचार जनता ने जब सांसद मस्त की तरफ मुखातिब हुई तो पता चला कि वह बैरिया रहते हैं और कासिमाबाद से उसकी दूरी 110 किलोमीटर है। दूरी अधिक होने और बलिया सांसद की जगह उनके प्रतिनिधि ही जनता से बात करते हैं। इसलिए अब यहां के लोग उनसे भी उम्मीद छोड़ दिए हैं। सब कुछ भगवान भरोसे। हमारे संवाददाता ने जब वीरेंद्र सिंह मस्त के प्रतिनिधि अमन सिंह से बात की और पूछा कि सांसद जी से बात हो जाएगी तो उन्होंने कहा कि अभी वह कसरत कर रहे हैं। बोला कि बात करा दीजिएगा। फिर जब साढ़े 11 बजे फोन किया गया तो बोले, कि अभी जिला योजना की बैठक में हैं। दो बार फोन मिलाने के बाद उनके प्रतिनिधि भी खुद बात नहीं करा पाए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के लोगों के लिए सांसद कितने सुलभ हैं। जनता से सांसद की यह दूरी अब यहां के लोगों को खल रही है। लोगों का कहना है कि भाजपा अपने जनप्रतिनिधियों को जनता के बीच जाने को कह रही है और सांसद आखिर किस वजह से लोगों से दूर हैं। यह दूरी कहीं विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए भारी न पड़ जाए। यही हाल अन्य विधानसभाओं में भी है।