वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पीएम के हाथों लोकार्पण के लिए पूरी तरह से तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर को इसका लोकार्पण करने वाराणसी आ रहे हैं। इस मौके पर श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के 54 हजार वर्ग फीट दायरे को 70 टन फूलों से सजाया जाएगा। यह फूल यूपी के वाराणसी, मिजार्पुर के अलावा कोलकाता और बिहार से मंगाए जा रहे हैं। श्री काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील वर्मा ने बताया कि सजावट के लिए जिन फूलों के आर्डर दिए गए हैं उनमें सुगंधित कुंद, रजनीगंधा, आॅरेंज ग्लेडी अस्टर शामिल हैं। इसके अलावा बनारसी गेंदा और गुलाब भी मंगाए गए हैं, जो मंदिर परिसर को महका देंगे। 33 बड़े और प्रमुख चौराहे भी फूलों से सजेंगे।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देगा विश्वनाथ धाम
वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ धाम अब अपने भव्य, दिव्य और अलौकिक स्वरूप में लौटने की आगे बढ़ रहा है। बाबा विश्वनाथ व गंगा एक बार फिर से एकाकार हो रही है। वही अब बाबा का आनंद वन फिर से पेड़ पौधों से गुलजार होगा। बाबा के आंगन में उनके प्रिय पौधे लगाए जा रहे है । मंदिर परिसर से लेकर मंदिर चौक और गंगा किनारे तक ये वृक्ष हरियाली रखेंगे । इसके लिए गुलाबी पत्थरों के बीच में विशेष प्रबंध किया गया है। बाबा विश्वनाथ धाम के आंगन में गुलाबी पत्थरों की आभा के बीच हरियाली का भी ध्यान रखा गया है। महादेव के प्रांगण में ऐसे पौधे लगाए जा रहे है, जो देवाधिदेव को अत्यंत प्रिय है। मंडलायुक्त व काशी विश्वनाथ मंदिर कार्यपालक समिति के अध्यक्ष दीपक अग्रवाल ने बताया कि श्री काशी विश्वनाथ धाम में महादेव को सबसे प्रिय पौधा रुद्राक्ष लगाया जा रहा है। इसके अलावा पारिजात, अशोक, बेल के पौधे भी बाबा के आंगन में हरियाली रखेंगे। माँ गंगा में श्रद्धा के गोते लगाकर श्रद्धालु जब जल लेकर बाबा के दरबार की तरफ आस्था के कदम बढ़ाएंगे तब उनको दोनों तरफ हरियाली का अहसास होगा जो पर्यावरण संरक्षण में मददगार भी होगा। पौधों को लगाने के लिए विशेष प्रबंध व तकनीक अपनाई गई है । मार्बल, ग्रेनाइट और चुनार के गुलाबी पत्थरों के बीच जमीन में चार फीट व्यास के गड्ढे बनाए गए हैं। जो सीधे नीचे मिट्टी के संपर्क रहेंगे। पौधों को हवा और पानी पहुंचाने के लिए अंदर ही अंदर पाइप लगाया गया है। इन गड्ढों में छह से पंद्रह फीट तक के पेड़-पौधे लगाए जा रहे है ।
बनारसी गेंदा का जोड़ नहीं
फीनिशिंग और टिकाऊ पन को लेकर बनारसी गेंदे का कोई तोड़ नहीं है। गंगा की तराई में खेती, पर्याप्त नमी और धूप मिलने की वजह से बनारसी गेंदा सुगंध में कोलकाता के गेंदा फूल को पीछे छोड़ देता है। विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण में स्थानीय मंडी को फूल के आॅर्डर दिए जाने से लोकल किसान भी खुश हैं।
यहां से चुनकर आएगा गेंदा-गुलाब
बनारस में फूलों की खेती प्राचीन समय से होती आ रही है। लोकल फूलों की गुणवत्ता भी कई मानकों पर खरा उतरती है। इसके चलते यहां के फूलों की डिमांड पूर्वांचल, बिहार और नेपाल के काठमांडू तक होती है। जिले के राजातालाब, बाबतपुर, जयापुर, कैंथी, जाल्हुपुर, कपसेठी, चंदौली, सैय्यदराजा और मानिकपुर सानी में आला किस्म के गेंदे के फूलों का उत्पादन किया जाता है।