वाराणसी(काशीवार्ता)। वो जो मुसाहिब साहब बने गद्दे पर मसनद के सहारे तने बैठे हैं। वे इस गद्दी और इस मकान के मालिक नहीं महज किराएदार हैं। यह शेर बेसिक शिक्षा विभाग पर सटीक बैठता है। दरअसल इस विभाग द्वारा बार-बार नगर के सुप्रतिष्ठित कान्वेंट स्कूलों को बेबुनियाद शिकायतों के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है। उसके पीछे धौंस यही है कि येन केन अपने चेहेतों के बच्चों को यहां प्रवेश दिलवा सके। कुछ वर्ष पूर्व ही इसी विभाग व इसके तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी ने बरास्ता अपने निचले स्तर के अधिकारियों व र्क्लकों को सेंट जॉन्स स्कूल के प्रधानाचार्य के पास एक लंबी-चौड़ी सूची लेकर भेजा। जिसमें बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत तुरंत प्रवेश दिये जाने का जिक्र था। प्राचार्यों द्वारा नियमानुसार इस पर असमर्थता व्यक्त करने पर उन्हें गिरफ्तार करने तक की धमकी दी गई। इसको लेकर अभिभावकों में रोष था कि गुरुजनों के साथ इस प्रकार का अशोभनीय व्यवहार ठीक नही है। इस बारे में तत्कालीन जिला प्रशासन के अधिकारी से भी वार्ता की गई, उन्हें शिक्षा के अधिकार के तहत माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रति दी गई। जिसमें लिखा था अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षण संस्थाओं पर उपरोक्त निर्देश लागू नहीं होता। यह कान्वेंट स्कूल उसी अल्पसंख्यक मिशनरी संस्था (डायोसिस) ईसाई धर्म प्रांत के हैं। हालांकि जिले के आला अधिकारी को समझ में आ गया कि भयंकर गलती हुई है। तथा तत्कालीन आयुक्त नितिन रमेश गोकर्ण ने प्राचार्यों को सादर आमंत्रित कर उनसे माफी मांगी और तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी को फटकार लगाई। कुछ इसी तरह की कहानी एक बार फिर बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा दोहराने का प्रयास किया गया।
इस संबंध में अभिभावकों का कथन है कि शहर के नामी-गिरामी स्कूलों में मनमानी फीस व अन्य शुल्क लिये जाते हैं, परंतु उनके ऊपर विभाग कोई कार्रवाई नहीं करता। जबकि मिशनरी स्कूलों की फीस वैसे ही काफी कम है। स्मरणीय है कि पूर्व में भी ‘काशीवार्ता’ ने ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रति प्रकाशित कर सच का साथ दिया और आज फिर सच के साथ खड़ा है।