(राजेश राय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। सन् 2022 के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। वाराणसी की आठों विधानसभा में 7 मार्च को वोट डाले जाएंगे। इस आठों विधानसभा में जिस सीट पर सबकी निगाहें लगी होंगी वह कैंट विधानसभा क्षेत्र। इसकी वजह भी है सन 1991 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जब यह सीट कब्जा की तो उसके बाद मुड़कर नहीं देखा। यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले 7 विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से एक ही परिवार को टिकट दिया जाता रहा। जहां सन 1991 और सन 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर ज्योत्सना श्रीवास्तव ने जीत हासिल की तो सन 1996 के चुनाव में उनके पति और जनसंघ काल में पार्टी से जुड़े हरिश्चंद्र श्रीवास्तव हरीश जी पर भाजपा ने भरोसा जताया। हरीश जी ने जहां सन 1996 और 2002 के चुनाव में विजय श्री हासिल की तो पुन: भाजपा ने 2007 और 2012 में ज्योत्सना श्रीवास्तव पर दांव आजमाया। दोनों ही चुनाव में ज्योत्सना विजयी रहीं। इसके बाद सन 2017 के चुनाव में ज्योत्सना ने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ा और अपने पुत्र सौरभ श्रीवास्तव के लिए टिकट मांगा। राजनीति में परिवारवाद का हमेशा विरोध करने वाली भाजपा ने आश्चर्यजनक रूप से सौरभ को टिकट दे दिया। मोदी लहर में सौरभ प्रचंड वोटों से विजई हुए। लेकिन इस बार की परिस्थितियां थोड़ी भिन्न है। एक तरफ कोरोना की मार है तो दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर लोगों की नाराजगी। जिस दौरान वाराणसी में चुनाव होगा उस समय कोरोना पीक होगा। ऐसे में भाजपा के परंपरागत शहरी मतदाता घर से बाहर निकलेंगे या नहीं यह देखने वाली बात होगी। यह भी देखने वाली बात होगी कि भाजपा पुन: हरीश जी के परिवार पर ही दांव आजमाती है या फिर किसी नए को चुनावी रण में उतारती है। पिछले दिनों खांटी समाजवादी व कैंट से चार बार विधायक व प्रदेश में मंत्री रह चुके शत रूद्र प्रकाश की भाजपा में एंट्री न सिर्फ भाजपा बल्कि कैंट विधानसभा क्षेत्र में भी उत्तल पुथल मचा सकती है।
इस विधानसभा से कौन कब जीता
कैंट विधानसभा में 349472 वोटर हैं जिसमें 194781 पुरुष तो 154674 महिला वोटर हैं। अगर इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो सन 1967 में जनसंघ के वरमेश्वर पांडेय ने विजयश्री हासिल की थी। 1969 में कांग्रेस के लाल बहादुर ने जीत हासिल की थी। इसके बाद सन 1974, 1977 में लगातार दो बार शतरुद्र प्रकाश ने जीत दर्ज की। सन 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने पुन: वापसी की और मांडवी प्रसाद यहां से जीते। इसके बाद सन 1985 और 1989 में पुन: शत रुद्र पर जीत का सेहरा बंधा।