राय परिवार में विरासत संभालने को लेकर महासंग्राम


गाजीपुर (काशीवार्ता)। मुहम्मदाबाद की भाजपा विधायक अलका राय के परिवार में इस समय सियासी वारिश को लेकर महासंग्राम मचा हुआ है। विधायक अलका राय चाहती हैं कि उनके पुत्र पीयूष राय ही उनकी विरासत को संभालें, जबकि उनके भतीजे एवं स्व. कृष्णानंद राय के साथ 1996 से साथ रहने वाले आनंद राय मुन्ना चाहते हैं कि 2022 में भाजपा उन्हें मुहम्मदाबाद विधानसभा से प्रत्याशी बनाए। इसको लेकर दोनों के रिश्ते तल्ख हो चुके हैं। पिछले वर्ष नवम्बर माह में स्व. कृष्णानंद राय के शहादत दिवस पर दोनों में सियासी रार ने यहां के भूमिहार वोटरों को असमंजस में डाल दिया है।

आनंद राय मुन्ना ने एलान किया है कि अगर विधायक ने चुनाव लड़ने से इंकार किया तो वह खुद मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं। देखा जाए तो स्व. कृष्णानंद राय की हत्या 2005 के बाद जब विधानसभा के उपचुनाव हुए तो उनकी पत्नी अलका राय विधायक निर्वाचित हुईं। मगर 2007 और 2012 के चुनाव में अंसारी परिवार का ही कब्जा रहा। यहां पर कुछ ऐसे वोट हैं जिस पर 40 प्रतिशत अंसारी परिवार हमेशा मजबूत रहा है। जब 2017 में विधानसभा चुनाव हुए तो एक बार फिर उनकी पत्नी अलका राय विधायक बनीं।

इस दौरान भी भांवरकोल की ब्लाक प्रमुख पति एवं स्व. कृष्णानंद राय के भतीजे आनंद राय मुन्ना ने ही 2017 के चुनाव को लीड किया। वही पूरा चुनावी मैनेजमेंट देखते रहे। अचानक ब्लाक प्रमुख चुनाव से पहले राय परिवार एवं आनंद राय में सियासी तल्खी बढ़ गई। हालत यह हो गई कि दोनों में बातचीत भी बंद है। हालांकि इसी बीच आनंद राय अपनी पत्नी श्रद्धा राय को ब्लाक प्रमुख बनाने में कामयाब रहे। इसके बाद उनका पूरे विधानसभा क्षेत्र में फोकस रहा। कई गाड़ियों के काफिले के साथ वह भ्रमण करके यहां के गरीबों के रहनुमा बन गए। उन्होंने बातचीत के दौरान सीधे तौर पर कहा कि चाची यानि विधायक अलका राय चुनाव लड़ेंगी तो उनकी जीत के लिए पूरी ताकत लगाएंगे। और अंसारियों को धूल चटाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। अगर वह नहीं लड़ी तो वह खुद चुनाव लड़ेंगे। देखा जाए तो इधर करीब दो वर्षों से विधायक पुत्र पीयूष राय ही पूरा काम देख रहे हैं। एक तरह से वह पूरी विधानसभा को लीड कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में मुहम्मदाबाद में अजीब सियासी हालात उत्पन्न हो गए हैं। सूत्रों की मानें तो इस चुनाव में अलका राय अपने बेटे पीयूष की ताजपोशी चाहते हैं, लेकिन आनंद राय के अड़ंगा लगाने के कारण वह इसे मूर्त रूप नहीं दे पा रही हैं। वैसे वर्ष 2016 में उन्होंने अपने पति के शहादत दिवस पर एलान किया था कि अगला चुनाव आनंद राय मुन्ना ही लड़ेंगे। उस दौरान यह मीडिया की सुर्खियां बनी थी। सियासी पंडितों का कहना है कि राय परिवार के इस सियासी रार का फायदा चुनाव में अंसारियों को मिल सकता है। इसलिए दोनों युवराज को अपनी तल्खी समाप्त करके मिशन 2022 को फतह करने में ताकत झोंकनी चाहिए।