बीते चीन-चार दिनों से उत्तर प्रदेश से एक के बाद एक इस्तीफे की खबर आ रही है। इस्तीफा देने वाले ज्यादातर नेता पिछड़ी जातियों से हैं। ऐन चुनाव से पहले उनका एक साथ बीजेपी को छोड़कर समाजवादी पार्टी की तरफ जाना जाहिर तौर पर योगी सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। वो बीजेपी जो लगातार सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास की बात करती रही उस बीजेपी से एक खास तबके के लोग ये इल्जाम लगाते हुए निकल जाएं कि पार्टी में कोई पिछड़ों, दलितों और वंचितों की बात कोई सुनता नहीं है। ऐसे में अब ओबीसी समाज को साथ लाने के लिए बीजेपी अपने काउंटर प्लान को लेकर एक्टिव हो गई है।
ओबीसी मोर्चा को दी गई जिम्मेदारी
बीजेपी के ओबीसी मोर्चा ने इसके लिए एक खास तरह की रणनीति बनाई है। मोर्चा की तरफ से सोशल मीडिया और छोटे ग्रप्स के जरिये बीजेपी के विधायकों के पार्टी छोड़ने के पीछे की मंशा बता रहे हैं। जो पार्टी छोड़कर जा रहे हैं वो पिछड़े समाज के लिए कुछ करने के लिए नहीं बल्कि अपने पर्सनल एजेंडे के तहत जा रहे हैं। उनका पर्सनल एजेंडा है जिसके तहत वो बीजेपी में शोषण की बात कर रहे हैं।
यूपी का जातिय समीकरण
सवर्ण- 17-19 %
दलित- 21 %
मुस्लिम- 19 %
ओबीसी- 42 %
केशव मौर्य को आगे करेगी
पिछड़े समुदाय से संबंधित नेताओं के पार्टी छोड़ सपा की ओर रुख किए जाने के बाद माहौल को दुरुस्त करने के लिए बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी नेता के तौर पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, अपना दल (एस) की अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद जैसे नेताओं को आगे करके मैदान में मोर्चा संभालने की रणनीति बनाई है। दिल्ली में बीजेपी कोर कमेटी की बैठक के बाद केशव प्रसाद मौर्य ही पत्रकारों को संबोधित करने के लिए आगे आए थे।
स्वतंत्र देव सिंह ने ट्विटर पर चलाया अभियान
उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल की बात करें तो 23 मंत्री पिछड़ी जातियों से आते हैं। इसमें जाट, सैनी, कुशवाहा, यादव, राजभर, बिंद हैं। ये सभी मंत्री अलग-अलग इलाकों से आते हैं। जबकि अगर दलित मंत्रियों की बात की जाए तो इनकी संख्या भी अच्छी-खासी है। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह दोनों ओबीसी समुदाय से आते हैं। स्वतंत्र देव सिंह ने तो ट्विटर पर ये अभियान भी छेड़ रखा है कि उनकी सरकार ने ओबीसी को क्या और कितना दिया ।