(आलोक श्रीवास्तव)
वाराणसी (काशीवार्ता)। रोहनियां पुलिस को सोमवार की देर शाम एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी जब मुठभेड़ में लगभग 3 दर्जन से अधिक मुकदमों में वांछित गोलू यादव पुलिस के हत्थे चढ़ गया। गोलू यादव काफी समय से फरार चल रहा था जो जनपद की पुलिस के साथ ही पूर्वांचल के लिए सरदर्द बना हुआ था। पुलिस का दावा है कि अभियुक्त के पास 315 बोर का तमंचा व कारतूस सहित चोरी की एक बाइक बरामद हुई है। पुलिस की कहानी के अनुसार उसके साथ बाइक पर पीछे बैठा बदमाश मुठभेड़ में अंधेरे व कोहरे का फायदा उठा कर भाग निकला। गिरफ्तार गोलू यादव के पकड़े जाने की पुलिस की कहानी भी अजीब लगती है विगत डेढ़ वर्ष से जिस मुजरिम की तलाश पुलिस कर रही थी वो अखरी बाईपास तिराहे के पास किसी घटना को अंजाम देने की फिराक में था। सूचना पर पुलिस का जाबांज दरोगा मनोज तिवारी एक नामचीन अपराधी को पकड़ने के लिए अपने कुछ सिपाहियों संग निकल पड़ा। नामचीन अपराधी की घेराबंदी एक दरोगा व कुछ सिपाहियों द्वारा किये जाने की बात किसी के गले नहीं उतर रही है। पुलिसिया कहानी को मानें तो बाइक सवार बदमाशों को आते देख वाराणसी की सीधी-साधी पुलिस ने उसे रोकने का इशारा किया तो बदमाशों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की। बदमाशों की चलाई गोली पुलिस के किसी जाबांज कर्मी को न तो लगी और ना ही जाबांज पुलिस द्वारा चलाई गोली किसी अपराधी को। यह कहानी किसी फिल्म की शूटिंग से ज्यादा और कुछ नजर नहीं आती। इससे भी बड़ा ड्रामा यह कि 3 दर्जन से अधिक मुकदमे में वांछित अपराधी पुलिस से बिना प्रतिकार किये उनके हत्थे चढ़ गया। वहीं दूसरा अपराधी फिल्मों की तरह अंधेरे का फायदा उठा कर सूनसान रास्तों पर गुम हो गया। सूत्रों की मानें तो शातिर अपराधी गोलू यादव को पुलिस द्वारा दोपहर में ही पकड़ लिया गया था। जिसको देर रात पुलिस मुठभेड़ में मार दिया जाता। लेकिन इसी दौरान गोलू यादव के गिरफ्तारी की सूचना उसके कुछ सफेदपोश आकाओं को लग गई और उसे बचाने की जुगत शुरू हो गई। यही कारण रहा कि देर शाम पुलिस ने हल्की मुठभेड़ दिखाते हुए गिरफ्तारी का नाटक रचा।
हर मुठभेड़ में अपराधी अंधेरे का फायदा उठाकर फरार हो जाते हैं?
पुलिस की कहानी में जब भी कभी मुठभेड़ होती है तो एक अपराधी अंधेरे का फायदा उठा फरार हो जाता है। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है जब कई थानों के जाबांज इंसेक्टर, क्राइम ब्रांच के तेज तर्रार जाबांज इंस्पेक्टर व सिपाही अपराधी को पकड़ने के लिये मुस्तैद रहते हैं। ऐसे में पुलिस की कहानी कि बाइक पर पीछे बैठा अपराधी अंधेरे का फायदा उठाकर फरार हो गया। समझ से परे है। क्या पुलिस के पास उस वक्त हथियार नहीं होता है या उन्हें अपना निशाना चूक जाने का डर सता रहा होता है? वहीं दूसरी ओर अपराधी अपने बचाव में पुलिस पर गोली चलाता हुआ भागता है। क्या पुलिस की कहानी फिल्मी नहीं लगती है ? आखिर कब तक इस प्रकार पुलिस अपनी नाकामियों पर पर्दा डालती रहेगी और जनता को झूठी कहानी सुनाकर वाहवाही लूटती रहेगी।