धारा 80 सी के तहत छूट की सीमा बढ़ाने की गुहार


(युगल किशोर जालान)
वाराणसी(काशीवार्ता)। विधानसभा चुनाव के बीच आगामी एक फरवरी को केन्द्रीय वित्त मंत्री संसद में वर्ष 2022-23 का केन्द्रीय आम बजट प्रस्तुत करेंगी। बजट प्रस्तावों के माध्यम से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन वर्ष 2022-23 के दौरान केन्द्रीय सरकार की अनुमानित आय और व्यय का लेखा-जोखा चर्चा के लिए पेश करेंगी। मध्यम आय वर्ग के आयकरदाताओं ने अधिनियम की धारा 80सी के तहत छूट की समग्र सीमा को बढाने की गुहार लगाई है। उद्योग-व्यापार जगत की शीर्ष संस्थाएं कर योग्य आय सीमा में अधिक छूट, कटौती, मूल सीमा बढ़ाने और कर की दरों में कमी का सुझाव और अपेक्षाएं वित्त मंत्री से की हैं। टीडीएस प्रावधान से वेतनभोगी वर्ग कहीं से भी आयकर के चंगुल से बच नहीं पाता। वेतनभोगी को आयकर अधिनियम की धारा 16 (आईए) के तहत मानक कटौती के अलावा कोई विशेष रियायत नहीं मिलती है। इसमें भी यदि कोई वेतनभोगी नई कर व्यवस्था का विकल्प चुनता है तो वह किसी भी मानक कटौती का हकदार नहीं होता। विधानसभा चुनाव के बीच संसद में आम बजट प्रस्तुत होने से आमतौर पर सभी को कराधान में राहत की उम्मीद है, इसलिए वित्त मंत्री के लिए संतुलन बनाना आसान नहीं होगा।
वेतनभोगी वर्ग ने मानक कटौती की अधिकतम सीमा पचास हजार से बढाकर एक लाख बीस हजार करने का सुझाव केन्द्रीय वित्त मंत्री को दिया है। इस वर्ग का कहना है कि ईमानदारी को बढावा देने के लिए सरकार को टेक होम सेलरी बढानी होगी। सेलरी बढाने का प्रावधान बजट में नहीं होता इसलिए वित्त मंत्री को मानक कटौती में वृद्धि पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80 सी के तहत आयकर रिटर्न भरने वाला बचत और निवेश के जरिये टैक्स का बोझ कम करता है। इस प्रावधान के तहत करदाता जीवन बीमा, जीपीएफ, ईपीएफ, यूलिप, एनएससी सहित विभिन्न निवेश से टैक्स में बचत करता है। वर्तमान में इस धारा के तहत अधिकतम कटौती डेढ लाख तक है। मध्यम वर्ग का कहना हे कि धारा 80सी की सीमा बढाने का देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव दिखेगा। इससे मध्यमवर्ग पर टैक्स का बोझ घटेगा और बुढापे के लिए बचत करने के लिए प्रेरित होगा। जब बचत बढती है तो मुद्रास्फीति पर भी लगाम लगती है। इस प्रकार के निवेश से सरकार को भी कम लागत का फण्ड उपलब्ध होता है। व्यापार जगत का कहना है कि बच्चों पर खर्च बहुत बढ गया है। शिक्षा और स्वास्थ्य खर्च काफी बढ़ चुका है। आयकर की धारा 10(32) के अनुसार नाबालिग बच्चे की आय माता या पिता की आय (जिसकी आय अधिक है) में जोडी जाती है। केवल 1500 प्रति बच्चा कटौती होती है। लोगों का कहना है कि यह कटौती 1500 से बढ़ाकर प्रत्येक नाबालिग बच्चे के लिए
पन्द्रह हजार होनी चाहिए। उद्योग-व्यापार जगत ने स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) की सीमा बढाने की भी केन्द्रीय वित्त मंत्री सै मांग की है। तर्क यह दिया जा रहा है कि जीएसटी के बाद कागजी कार्रवाई काफी बढ गई है। वर्तमान में व्यक्तिगत लेनदेन का भुगतान 30 हजार रुपए है तो
टीडीएस काटने की बाध्यता है। कारोबारियों का कहना है कि मुद्रास्फीति को देखते हुए टीडीएस के लिए तीस हजार की सीमा को पचास हजार किया जाना चाहिए।