आजादी का इतिहास कुर्बानियों से लिखा गया


वाराणसी(काशीवार्ता)। आजादी के बाद कांग्रेस ने भले ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इतिहास को खत्म करने का प्रयास किया हो, लेकिन भारतीय जनमानस में नेताजी का कद किसी भगवान से कम नहीं। आज भी देश की जनता मानती है कि देश को नेताजी सुभाष ने ही आजादी दिलायी और नेताजी होते तो देश नहीं बंटता। नेताजी सुभाष की 125वीं जयंती के अवसर को यादगार बनाने के लिए विशाल भारत संस्थान ने लमही स्थित सुभाष भवन में 6 दिवसीय सुभाष महोत्सव का आयोजन किया। महोत्सव के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार ने सांकेतिक सुभाष मार्च का नेतृत्व किया। कोविड नियमों का पालन करते हुए सुभाष मार्च सुभाष भवन से कुछ ही कदम पर स्थित उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के स्मारक स्थल तक गया, जहां इन्द्रेश कुमार ने प्रेमचन्द की प्रतिमा को माल्यार्पण कर वापस सुभाष मंदिर लौटे और नेताजी सुभाष को माल्यार्पण एवं दीपोज्वलन कर सुभाष महोत्सव को प्रारम्भ करने की घोषणा की। सुभाष मार्च में शामिल लोगों के हाथ मे जय हिन्द, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसे नेताजी के नारे लिखे हुए थे। आजाद हिन्द फौज के बलिदान को सुभाष मार्च में जीवंत कर दिया गया। 6 दिवसीय आयोजन में कविता पाठ, चित्रकला प्रतियोगिता, लघु नाटिका, सुभाष सम्मान और सुभाष की महाआरती शामिल है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि इन्द्रेश कुमार ने कहा कि “आजादी का इतिहास कुर्बानियों से लिखा गया है। जन्मभूमि को न बाँटा जा सकता है और न ही बदला जा सकता है। जन्मभूमि के लिये मरने वालों का सम्मान सदैव रहता है। देशभक्तों की कथा सुनने वालों को और सुनाने वालों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। यही सुभाष के जीवन का चरित्र है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 30 दिसम्बर 1943 को पहला स्वतंत्रता का झण्डा फहराया। देशप्रेम का अर्थ है समाजसेवा। सुभाष चन्द्र बोस जब जीवित थे कांग्रेस के चुनाव में बापू ने अपनी हार मानी तब भी सुभाष ने बापू का सम्मान करते हुए कांग्रेस से इस्तिफा दिया। मार्च में अर्चना भारतवंशी, नजमा परवीन, नाजनीन अंसारी, डा. मृदुला जायसवाल, डा. निरंजन श्रीवास्तव, दिलीप सिंह, डा. भोलाशंकर, मो. अजहरूद्दीन, खुशी रमन भारतवंशी, इली भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, डी०एन० सिंह, सूरज चौधरी, ज्ञान प्रकाश आदि लोगों ने भाग लिया।