गाजीपुर (काशीवार्ता)। भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनाव में 2017 की सियासी तस्वीर पेश करके राजनीतिक पंडितों को सोचने पर विवश कर दिया है। जंगीपुर से भाजपा उम्मीदवार रामनरेश कुशवाहा की उम्मीदवारी पर जहां वोटरों में तनिक भी आकर्षण नहीं देखने को मिल रहा है, वहीं इलाकाई नेताओं को एकजुट करना भी भाजपा को मुश्किल होगी। क्योंकि यहां के नेताओं की अपनी ढफली अपना राग ही भाजपा को कमजोर कर रहा है। इसके साथ ही बसपा ने युवा एवं विदेश से पढ़े लिखे कारोबारी के पुत्र डा. मुकेश सिंह को मैदान में उतारकर सीधे तौर पर राजपूत वोटरों पर निशाना साधकर भाजपा की नींद उड़ा दी है। इस समय यह फैक्टर सियासतदानों को परेशान कर रखा है। जिन विधानसभाओं में भाजपा ने टिकट का बंटवारा किया है उसको देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि इस बार भी टिकट बंटवारे में तत्कालीन मंत्री मनोज सिन्हा की पसंद एवं नापसंद का ख्याल रखा गया है। जिन नामों पर भाजपा ने मुहर लगाई है उससे यह साफ संकेत मिल रहा है कि एलजी साहब भी 2024 की सियासी तस्वीर जनता के सामने लाने के मकसद से काम रहे हैं। उन्हें 2019 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार अफजाल अंसारी ने करारी शिकस्त देकर भाजपा की सभी रणनीति पर पानी फेर दिया था। जंगीपुर में रामनरेश कुशवाहा के मैदान में आने से यह चर्चा रही कि उनसे भी कई कुशवाहा समाज में युवा और वोटरों को आकर्षित करने वाले चेहरे हैं। अब सवाल उठ रहा है कि आखिर रामनरेश को ही क्यों मैदान में उतारा गया। तब भाजपाइयों ने इस पर अपनी सफाई पेश की।
कहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में रामनरेश महज 3239 वोटों से ही सपा प्रत्याशी डा. वीरेंद्र से पराजित हुए थे। इसलिए उनके चेहरे पर वोटों की अच्छी बारिश भाजपा के पक्ष में होगी। जबकि रामनरेश के विरोधी यह बता रहे हैं कि इस बार के चुनाव में भाजपा की स्थिति रामनरेश के नाम पर 2017 से भी खराब होने जा रही है। क्योंकि यहां के टिकट मांगने वाले एक दर्जन से अधिक भाजपा नेता अंदर ही अंदर रामनरेश के नाम पर एकजुट होने को तैयार नहीं है। वहीं भाजपा नेता एवं टिकट के दावेदार योगेश सिंह कहते हैं कि पार्टी ने जिसे भी टिकट दिया है, हम एकजुट होकर एक बार फिर भाजपा की सरकार बनाएंगे। 2017 की हार का बदला इस बार हम लोग सपा से लेंगे। कहीं भी बसपा लड़ाई में नही है। यह सिर्फ वोटरों में भ्रम फैलाया जा रहा है। एक तरह से यह कहा जाए कि राजपूतों ने अगर चुनाव में हाथी की सवारी की तो भाजपा को सवर्ण वोटों के धु्रवीकरण को रोकना बड़ी चुनौती होगी।