अब की चुनाव में मनोज सिन्हा की कमी खलेगी


(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। मटर खाने पर सियासी रूप से बीमार चल रहे सांसद अफजाल अंसारी के बाद अब उनके धूर विरोधी एवं जम्मू कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा भी संवैधानिक पद पर बैठने के कारण विधानसभा चुनाव प्रचार से दूर रहेंगे। यह दुर्लभ संयोग दोनों नेताओं के साथ चार दशक बाद पहली बार आ रहा है। सियासत के यह दोनों अखाड़िए चुनाव में एक दूसरे को पटखनी देने के लिए हर दांव आजमाते थे। मगर दोनों सियासी कारणों से दूर रहकर लहुरीकाशी के चुनाव प्रचार को कम रोचक बना दिए हैं। हालांकि दोनों पर पर्दे के पीछे सियासत करने के आरोप लगते रहे हैं।
मुहम्मदाबाद विधानसभा के मोहनपुरा गांव निवासी एवं जम्मू एवं कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा बीएचयू से एमटेक की पढ़ाई की है। वहां की छात्र राजनीति से निकल कर सीधे गाजीपुर पहुंचे मनोज सिन्हा 1984 में पहला चुनाव लड़ा। इसके बाद 1989 में और फिर 1991 का चुनाव लड़े और हारे।लेकिन 1996 में मनोज सिन्हा की किस्मत पलटी और वह गाजीपुर से सांसद बनने में कामयाब रहे। उस समय जहूराबाद एवं मुहम्मदाबाद गाजीपुर लोकसभा में शामिल हुआ करती थी। लेकिन दो वर्ष बाद मध्यावधि चुनाव 1998 में हुए और मनोज सिन्हा सपा के ओपी से चुनाव हार गए। फिर 1999 में एक वर्ष बाद चुनाव हुए तो उन्होंने ओपी से हार का बदला लिया और दूसरी बार सांसद बने। जब मनोज दूसरी बार सांसद बने तो उन्हें ईमानदार सांसद का भी खिताब मिला। 2004 में यूपी में सपा की सरकार थी। मनोज सिन्हा को दो लाख से अधिक वोटों से अफजाल अंसारी ने लोकसभा में हराया। हार से घबराए मनोज सिन्हा 2009 में बलिया चले चले। जब 2014 का लोकसभा चुनाव आया तो अफजाल बलिया में थे और मनोज सिन्हा गाजीपुर आए। उस समय मोदी लहर पूरे देश में थी। मनोज सिन्हा तीसरी बार सांसद बनने में कामयाब हो गए। 2019 में फिर उनकी मुलाकात अफजाल से हुई और अफजाल ने एक लाख से अधिक वोटों से हराकर मनोज सिन्हा के विकास को कमजोर कर दिया। लेकिन मनोज सिन्हा की भी सियासी किस्मत कुछ और कह रही थी। हारने के एक वर्ष बाद उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर के उपराज्यपाल पद की शपथ लेकर गाजीपुर का नाम पूरे विश्व में चर्चा में ला दिया। वैसे चर्चा है कि एलजी साहब लोगों से मिलने के लिए 25 फरवरी को आ रहे हैं। अगर वह आते हैं तो चुनाव में एक बार फिर गुलाबी ठंडी देखने को मिलेगी।
1984 से सक्रिय हैं मनोज सिन्हा
मुहम्मदाबाद विधानसभा के मोहनपुर गांव निवासी एवं जम्मू एवं कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा बीएचयू की छात्र राजनीति से निकल कर सीधे गाजीपुर पहुंचे और पहला चुनाव 1984 में लड़ा। उस समय भाजपा की जगह जनसंघ थी। मनोज सिन्हा ने पहला चुनाव अपना लोगों से परिचय बनाने में बिताया।
मोदी लहर में पलटी किस्मत
वर्ष 2004 से 2014 पूरे दस वर्षों तक मनोज सिन्हा बिना किसी पद पर रहे। 2014 का लोकसभा चुनाव उनके सियासी कैरियर में एक तरह से टर्निंग प्वाइंट बनकर आया। इस चुनाव के बाद उनका नाम देश स्तर पर हुआ। उन्हें पीएम मोदी ने दो दो मंत्रालयों का केंद्रीय मंत्री बनाया। और उन्होंने गाजीपुर में विकास की गंगा बहाई। बीस हजार से अधिक करोड़ का विकास कराया।
1989 में ही मनोज बन जाते सांसद
1989 में लोकसभा चुनाव हुआ तो पूरे देश में एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ लहर थी। राष्ट्रीय स्तर पर जनता दल के सौजन्य से एक मोर्चा बना। उस समय वीपी सिंह को लेकर नारा चला था कि राजा नहीं फकीर है देश का तकदीर। इस नारे का कमाल हुआ कि जनता दल सत्ता में आ गई। उस समय भाजपा भी इस मोर्चे में शामिल हो गई थी। यह तय हुआ कि यह गाजीपुर की लोकसभा सीट जनसंघ लड़ेगा। मगर मनोज सिन्हा का सिंबल रेवतीपुर के एक राय साहब देर से लेकर पहुंचे। इस कारण से मनोज सिन्हा पर्चा नहीं भर पाए और निर्दल चुनाव लड़ रहे जगदीश कुशवाहा के चुनाव चिंह मछली पर पूरे जिले ने झूमकर वोट दिया और उन्होंने जैनुल बशर को चुनाव हरा सांसद बने। यहां पर एक बात कहना होगा कि मनोज सिन्हा 1989 में ही सांसद बन जाते। लेकिन उनके खिलाफ साजिश हुई। जिन्होंने साजिश रची वो सियासत के निचले पायदान में राजनीतिक सिस्कियां ले रहे हैं।