दुद्धी (सोनभद्र)। सूबे के अंतिम विधानसभा क्षेत्र 403 में अनवरत परचम लहराना किसी एक पार्टी के लिए आसान नही रहा।इसलिए आज तक इस सीट को किसी पार्टी विशेष का गढ़ होने का दर्जा भी नहीं मिला। आजादी के बाद से हुए तमाम बदलाव एवं उलट पुलट के साथ यहां की जनता ने भी भरोसे पर खरा न उतरने वाले नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया है। हां इतना जरुर कह सकते हैं कि कांग्रेस के कद्दावर आदिवासी नेता रामप्यारे पनिका ने इस आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से अपने शिष्य के रूप में एक नायाब हीरा तराशकर निकाला था।जिन्हें पूर्व मंत्री विजय सिंह गोंड़ के नाम से जाना जाता है। समय के साथ वो हीरा तो चमकता गया, लेकिन उन्हें चमकाने वाला जौहरी रामप्यारे पनिका उनकी चमक के आगे खुद ब खुद गुमनामी के अंधेरे में समाते चले गये। आज वो हमारे बीच नही रहे, लेकिन उनकी कृतियां, क्षेत्र व आदिवासियों के लिए किये गये समर्पण की यादें इतिहास के सुनहरे पन्नो में आज भी दर्ज हैं।
वर्ष 1996 के चुनाव में जब सपा प्रत्याशी विजय सिंह गोंड़ ने अपने खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे गुरु रामप्यारे पनिका को पटखनी देकर तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। तब उनसे नाराज विजय के इस अजेय अभियान को न रोक पाने वाले गुरु स्व. पनिका जी बुरी तरह से टूट गये और क्षेत्र की राजनीति को अलविदा कह दिया। फिर विजय के इस विजय अभियान को पहली बार 2017 के चुनाव में भाजपा-अपनादल गठबंधन के प्रत्याशी व निवर्तमान विधायक हरीराम चेरो ने रोका। उन्होंने बसपा प्रत्याशी विजय सिंह गोंड़ को मोदी-योगी लहर के बीच 1085 मतों के अंतर से पराजित कर, पहली बार भाजपा अपनादल गठबंधन का परचम लहराया। सपा ने 2022 में दुद्धी विधानसभा सीट से पुन: विजय सिंह गोंड़ को अपना प्रत्याशी बनाया है।
इसके पूर्व का इतिहास देखें तो सात बार लगातार जीत दर्ज करने वाले विजय सिंह गोंड़ के राजनीतिक जीवन की शुरूआत वर्ष 1980 में हुई थी।तब कांग्रेस के तत्कालीन विधायक व पूर्व सांसद स्व.रामप्यारे पनिका ने स्वयं संसदीय चुनाव लड़ने के उद्देश्य से आदिवासी समाज के होनहार युवा विजय सिंह गोंड़ को कांग्रेस के टिकट पर प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था। विजय सिंह ने अपने जीवन के पहले ही चुनाव में भाजपा के ईश्वर प्रसाद को हराकर, विजय अभियान की शुरुआत की।
पुन: कांग्रेस के टिकट पर 1985 में भाजपा के ही रुक्मिणी देवी को हराया। वर्ष 1989 में कांग्रेस से अनबन हुई तो निर्दल चुनाव लड़कर भाजपा के ही चतुर बिहारी को हराया, 1991में जनता दल से पुन: चतुर बिहारी को हराया, 1993 में जनता दल से व 1996 में सपा से भाजपा के रामनरेश पासवान को हराया। वर्ष 2002 में भी समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की। जातिगत आंकड़ा के आधार पर लगातार सात बार की जीत से उन्होंने साबित कर दिया कि वो जिधर रहेंगे जीत उनके साथ रहेगी। जनमत का यह अनोखा गणित उनके अनुसूचित जनजाति में जाने के बाद फेल हो गया।अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर 2007 व 2012 का चुनाव लड़ने से वे वंचित हो गये। उधर लंबी लड़ाई व मांग के बाद चुनाव आयोग ने दुद्धी व ओबरा विधानसभा सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया।
फिर दस वर्ष के बाद बसपा के टिकट पर 2017 के चुनाव में पूरे दमखम के साथ एक बार फिर मैदान में आये। लेकिन इस बार इन्हें भाजपा अपनादल गठबंधन प्रत्याशी ने हराकर, प्रत्यक्ष रूप से इनके विजयरथ को रोक दिया। पहली बार इनका सीधा सामना हार से हुआ और इनका अजेय क्रम टूट गया। खैर पिछला इतिहास जो भी रहा हो अपने जीत के प्रति पूरी तरह आशान्वित श्री गोंड़ ने प्रचार प्रसार में पूरी ताकत झोंक दी है।जबकि प्रमुख प्रतिद्वंद्वी व पिछले चुनाव की विनर पार्टी भाजपा ने नये प्रत्याशी रामदुलार गोंड़ पर दांव खेला है। वहीं बसपा ने वर्तमान विधायक हरीराम चेरो पर दांव लगाकर सबकी चिंता बढ़ा दी है। श्री चेरो ने नामांकन के ठीक पहले अपनादल से नाता तोड़कर, बसपा की सदस्यता ग्रहण कर सबको चौंका दिया है।अब तो वक्त का इंतजार है।किसके सिर सजेगी ताज,किसे मिलेगी मात ! सब जनताको तय करना है।
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