यूपी में बुलडोजर वाले एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा सरकार से हलफनामा, कहा- कानून के हिसाब से हो कार्रवाई


उत्तर प्रदेश में हाल में ही हुए हिंसा की घटनाओं के बाद बुलडोजर की कार्रवाई देखने को मिली। हिंसा में शामिल उपद्रवियों के अवैध निर्माण पर जबरदस्त तरीके से उत्तर प्रदेश में बुलडोजर चलाया गया था। हालांकि, यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से हलफनामा मांगा है। उत्तर प्रदेश सरकार को हलफनामा दाखिल करने के लिए 3 दिनों का वक्त मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि हम यह नहीं कह रहे है कि हर कार्रवाई रोकी जाए लेकिन कानून के हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि वह विध्वंस पर रोक नहीं लगा सकता है लेकिन कथित अनधिकृत संरचनाओं के विध्वंस के लिए कानून की प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा याचिका डाली गई थी जिसमें उत्तर प्रदेश में हालिया हिंसा के आरोपियों की सम्पत्तियों पर की जा रही अतिक्रमण-रोधी कार्रवाई रोकने का राज्य सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। मुस्लिम संगठन ने अपनी याचिका में कहा है कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना संपत्तियों को ढहाया नहीं जाना चाहिए और इस तरह की कवायद पर्याप्त नोटिस के बाद ही की जाती है। पत्र याचिका पर शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी, न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति ए के गांगुली, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह, मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के चंद्रू और कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मोहम्मद अनवर ने हस्ताक्षर किए हैं। पत्र याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले वरिष्ठ वकीलों में शांति भूषण, इंदिरा जयसिंह, सीयू सिंह, श्रीराम पंचू, प्रशांत भूषण और आनंद ग्रोवर शामिल हैं। 

याचिका में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों का पक्ष सुनने के बजाय, उत्तर प्रदेश प्रशासन ने ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने की मंजूरी दी है। मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर अधिकारियों से दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने का आह्वान किया है कि यह एक मिसाल बने और भविष्य में कोई भी अपराध न करे या कानून अपने हाथ में न ले।’’ जमीयत उलमा-ए-हिंद संगठन ने पहले राष्ट्रीय राजधानी के जहांगीरपुरी इलाके में इमारतों को गिराने के मुद्दे पर याचिका दायर की थी। लंबित याचिका की ताजा अर्जी में कहा गया है कि मामले में पिछली सुनवाई के बाद कुछ नए घटनाक्रम हुए हैं जिन पर इस न्यायालय को ध्यान देने की आवश्यकता है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के अतिरिक्त कानूनी उपायों को अपनाना स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, खासकर जब शीर्ष अदालत वर्तमान मामले की सुनवाई कर रही हो।