(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणसी(काशीवार्ता)। पिछली सरकारों में जनहित के खिलाफ किये गए पापों के मामले अब धीरे धीरे सामने आ रहे है। पता चला है कि ऐतिहासिक सोनिया तालाब के पुनरुद्धार के कार्य को कोर्ट का स्टे दिखा कर रुकवाने की साजिशें शुरू हो गयी हैं। इसके लिये बाकायदा नगर निगम को एक पत्र लिखा गया है, जिसमें कोर्ट के स्टे का हवाला दिया गया है। जबकि नगर निगम और तहसील के पिछले 70 सालों के रिकार्ड में यह सम्पति नगर निगम के नाम से तालाब के रूप में दर्ज है। अपर नगर आयुक्त अमित शुक्ला ने काशीवार्ता को बताया कि सोनिया तालाब के पुनरुद्धार की एक बृहद योजना बनायी गयी है। इसके तहत मलबा हटा कर पोकलेन मशीन द्वारा तालाब को एक मीटर और गहरा किया जाना है ताकि बरसात का ज्यादा से ज्यादा पानी इसमें इकट्ठा हो सके। यह तालाब सिगरा की आधा दर्जन कॉलोनियों की एक तरह से लाइफलाइन है। तालाब के पानी से भूजल स्तर बनाये रखने में बहुत मदद मिलती है। इस तालाब का ऐतिहासिक महत्व भी है। इसके किनारे ही आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों का नमक का कानून तोड़ा था। प्रदेश सरकार ने साथ लगी सड़क का नामकरण सत्याग्रह मार्ग किया, जिसका शिलापट्ट आज भी मौजूद है, लेकिन दुर्भाग्य से भूमाफियाओं की नजर इस ऐतिहासिक तालाब पर पड़ गयी। धीरे धीरे इस पर कब्जा होने लगा। सामने कुछ दुकानें भी खुल गयीं, जिसमे एक शराब की दुकान भी है। यह सारा गोरखधंधा मुलायम सरकार में हुआ, जिसकी परतें अब धीरे धीरे उघड़ रही हैं।
काशीवार्ता ने तालाब की दुर्दशा का मुद्दा कई बार उठाया। यहां तक कि नगर विकास मंत्री अरविंद शर्मा के संज्ञान में भी यह मामला लाया गया। नगर विकास मंत्री ने मामले को गंभीरता से लेते हुए नगर निगम को तालाब के पुनरुद्धार और सुंदरीकरण का आदेश दिया। नगर निगम ने तीन चार दिन में ही जेसीबी और ट्रैक्टर लगा कर पचासों ट्रैक्टर मलबा उठवा दिया। इसके अलावा सड़क पर इकट्ठा होने वाले वर्षा जल के तालाब में जाने के लिये मेनहोल और नालियां भी बनवा दीं। नगर निगम ने कार्य की अधिकता और बरसात को देखते हुए पोकलेन मशीन से तालाब की सफाई का भी निर्णय लिया। इस कार्य से क्षेत्र की जनता काफी प्रसन्न थी। सभी लोग नगर विकास मंत्री को धन्यवाद दे रहे थे। परन्तु कुछ लोगों को जनहित का यह पुनीत कार्य पसंद नहीं आया। इसी दौरान वे लोग तालाब पर अपने स्वामित्व का दावा करते हुए नगर निगम पहुंच गए और काम रुकवाने का अनुरोध किया। बताते हैं कि इस नए घटनाक्रम से नगर निगम के अधिकारी भी भौचक्के रह गए। निगम अधिकारियों ने जब तहसील से राजस्व का रिकार्ड निकलवाया तो पता चला कि आजादी के समय से ही तालाब की सम्पूर्ण संपत्ति नगर निगम के नाम से दर्ज है। यह राज्यसरकार की संपत्ति है। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार किसी भी तालाब का स्वरूप नहीं बदला जा सकता।
नगर निगम को गुमराह करने वाले बख्शे नही जाएंगे
अपर नगर आयुक्त अमित शुक्ला ने काशीवार्ता को बताया कि जिस कोर्ट स्टे का हवाला दिया जा रहा है, उसमें नगर निगम पक्षकार भी नहीं है। बल्कि कुछ लोगों ने एक दूसरे के खिलाफ स्टे ले रखा है और उसके आधार पर नगर निगम को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। खैर, नगर निगम इन हथकंडों में फंसने वाला नहीं है। तालाब का काम नहीं रुकेगा। दूसरी तरफ यह नवीन घटनाक्रम नगर विकास मंत्री अरविंद शर्मा के संज्ञान में भी पहुंच गया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस मामले में अतिक्रमणकारियों और भूमाफियाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई की तैयारी चल रही है।