अध्यात्म के बल पर वैज्ञानिक पद्धति से बने अघोरेश्वर आश्रम को नहीं लांघी गंगा


वाराणसी(काशीवार्ता)। तटीय बस्तियों के लिए वर्तमान में दुश्वारियों का सबब बनी गंगा के बाढ़ का पानी इस बार भी तल्ख तेवर के बावजूद गंगा के आंचल पर बने अघोरेश्वर आश्रम को लांघ नहीं सका। वह भी तब जब आसपास के क्षेत्र जलमग्न है। इसे आध्यात्मिक शक्ति कहे या निर्माण में अपनाई गई वैज्ञानिक पद्धति, जिसे लेकर क्षेत्र में चर्चाएं चल पड़ी है। मालवीय पुल (राजघाट) से उतरते समय बार्इं ओर 15 एकड़ 73 डिसमिल क्षेत्रफल में फैले अघोरेश्वर भगवान राम महाविभूति स्थल में यही वजह है कि सभी आध्यात्मिक व सामाजिक गतिविधियां पूर्ववत निर्बाध संचालित हो रही हैं। बताते हैं कि श्री सर्वेश्वरी समूह के संस्थापक अवधूत भगवान राम ने 29 नवंबर 1992 को इसी स्थान पर अग्नि समाधि ली थी। बाद में इस स्थान को महाविभूति स्थल के रूप में विकसित किया गया। स्थल के 60 प्रतिशत क्षेत्र को हरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया है, जहां कुष्ठ रोगियों के उपचार के लिए जड़ी-बूटियों के पौधों के साथ ही अन्य उपयोगी वृक्ष लगाए गए हैं। विभूति स्थल के शिखर पर अष्टधातु से निर्मित 2 टन वजन का त्रिशूल स्थल के धर्म क्षेत्र होने की पताका के रूप में प्रतिष्ठापित है। परिसर में वृद्धा आश्रम, गौशाला व अन्य गतिविधियां संचालित होती हैं। वाराणसी के डोमरी गांव क्षेत्र में स्थित महाविभूति स्थल में उच्चतम जल स्तर के दौरान 2013 में भी बाढ़ का पानी प्रवेश नहीं कर सका था। सिर्फ परिसर की उत्तरी दीवार को स्पर्श कर गंगा लौट गर्इं थीं।