(डा.के.के.शर्मा)
वाराणसी(काशीवार्ता)। नगर निगम की ध्वस्त कार्यशैली को अब अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में सुधारने में जुटी महापौर मृदुला जायसवाल जाते जाते इस व्यवस्था को कितना सुधार पायेंगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा,पर आश्चर्य इस बात को लेकर है कि अपने पूरे कार्यकाल उन्होंने कभी इस तरह का प्रयास क्यूँ नहीं किया? यह नगर निगम में चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया जाता है कि महापौर विगत 3 दिनों से लगातार अधिकारियों पर बैठक करने के लिए दबाव बना रही थी।जिसमें पार्षद भी शामिल हो रहे थे। मगर कल जब उनकी बैठक में नगर आयुक्त नही आए तो वह स्वयं उनके बंगले पहुँच गई। यह घटना नगर निगम के इतिहास में पहली बार हुई, जब कोई महापौर प्रोटोकाल तोड़कर नगर आयुक्त के आवास पर जा पहुँचा। प्रोटोकॉल के मुताबिक महापौर का दर्जा राज्यमंत्री का होता है और उन्हें जब भी नगर आयुक्त से बात करनी होती है, वे उन्हें बुला सकती हैं। पर इन दिनो उनकी बैठक में आने से निगम अधिकारी न जाने क्यों कतरा रहे थे ? जिसको लेकर महापौर खासा नाराज हैं। अब उनकी नाराजगी दूर हुई या नही ये तो कोई नही जानता पर इतना तो जरूर है कि कुछ तो है जिससे अधिकारी बचना चाहते हैं। नगर निगम सूत्रों की माने तो पिछले कुछ दिनो से नगर निगम में बैठक के दौरान माहौल काफी तनावपूर्ण हो जा रहा था। यहाँ तक की कप-प्लेट तोड़ने की नौबत आ जा रही थी। एक बार तो मोबाइल तोड़ने तक की घटना घट गयी। जिसके बाद तीन वरिष्ठ अधिकारी छुट्टी पर चले गए। बस ऐसी घटनाओं से ही बचने को अधिकारी बैठक में आने से कतरा रहे हैं। पर यह बात संज्ञान में नही आयी कि आखिर तोड़ फोड़ की नौबत क्यों आयी। नगर निगम के पूर्व का इतिहास को देखा जाए तो यही बात सामने आती है कि जो भी महापौर थे अपनी बात को निगम एक्ट का हवाला देते हुए मिनी सदन की बैठक में रखते थे। जिसका जवाब देने में अधिकारियों के पसीने छूट जाते थे। साथ ही इससे एक स्वस्थ वातावरण नगर निगम में दिखाई देता था। उस समय कई ऐसे अधिकारी भी थे। पूर्व महापौर स्व. सरोज सिंह , स्व. अमरनाथ यादव के कार्यकाल में नगर निगम में इस तरह का माहौल नहीं बना, जो आज दिखाई देता है। दरअसल, वर्तमान महापौर का शपथ ग्रहण समारोह ही विवादों में रहा। एक साल पूर्व 23 सितंबर को हुई बैठक में सदन में भोजन की थाली, माइक, कुर्सी तक फेंकी गई। यही नही राष्ट्रगान के दौरान भी तमाम तरह की हरकतें सदन में दिखाई दी।
मेरा हाल जानने आई थी महापौर-नगर आयुक्त
महापौर ने एक बैठक 3 सितम्बर को नगर निगम कार्यकारिणी कक्ष में आहूत की थी, जिसमें नगर आयुक्त की उपस्थिति के लिए दूरभाष पर वार्ता के दौरान उन्हें ज्ञात हुआ कि नगर आयुक्त की तबियत ठीक नहीं है। जिसपर महापौर ने स्वयं नगर आयुक्त के आवास पर आकर उनका कुशलक्षेम जाना। नगर आयुक्त द्वारा अवगत कराया गया कि सुबह देवेश चतुर्वेदी, अपर मुख्य सचिव/नोडल अधिकारी-वाराणसी की बैठक में वे स्वयं उपस्थित हुए लेकिन उसी समय उनकी तबियत भारी होने लगी। बैठक के उपरान्त दवा लेकर वे आराम करने आवास पर चले गए। हालाँकि महापौर के साथ वे तबियत में थोड़ा सुधार होने के बाद नगर निगम पहुँचे और बैठक को सम्पन्न किया।
कहीं परिसीमन को लेकर तो नहीं है विवाद?
नगर निगम गलियारे में इस बात की जोरदार चर्चा है कि महापौर के गुस्से के पीछे उनके चहते पार्षदों के वार्डों का परिसीमन है। जिसमें परिवर्तन के लिए बार-बार अधिकारियों पर दबाव बनाया जा रहा हैं, लेकिन अधिकारी इससे अपना पल्ला झाड़ना चाहते है।