वाराणसी(काशीवार्ता)। श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में नौवें दिन जैन मंदिरो में चौबीसों तीर्थंकरों का प्रक्षालन एवं पूजन किया गया। मंदिरों में रत्नत्रय स्थापना, नन्दीशवर दीप पूजन, दशलक्षण बिधान पूजन, सोलह कारण व्रत पूजन, स्वयंभू स्त्रोत पूजा प्रारंभ हुई। प्रात: भगवान पार्श्वनाथ की जन्म भूमि भेलूपुर मे ब्रह्मचारी आकाश जैन के निर्देशन में संगीतमय क्षमावाणी महामंडल विधान मे भक्तो ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेकर पूरी श्रद्धा के साथ भाग लिया। जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर की जन्म स्थली चन्द्रवती, चौबेपुर भगवान के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणक भूमि मे चन्द्रप्रभु स्वामी का प्रक्षाल पूजन किया गया। पर्युषण पर्व के नौवे अध्याय “उत्तम आकिंचन धर्म “पर ग्वाल दास साहू लेन स्थित जैन मन्दिर मे सायंकाल पं सुरेंद्र शास्त्री ने व्याख्यान देते हुए कहा-आकिंचन का अर्थ है-मेरा कुछ भी, किंचित भी नहीं है। ‘मै का अर्थ है-आत्मा और मेरा अर्थात आत्मा का क्या? कुछ भी तो नहीं । आत्मा तो शरीर को छोड़कर चली जाती है। शरीर ही जब मेरा नहीं है, तो कुछ मेरा कैसे हो सकता है। यदि आप उत्तम आकिंचन धर्म अपनाना चाहते है, तो धन के लिए धर्म को नहीं ,धर्म के लिए धन को छोडना प्रारंभ कर दो। बाहरी परिग्रह को त्याग कर आत्म-स्वभाव में रमण करना सीख जाओ। खोजंवा स्थित जैन मंदिर में डा: मुन्नी पुष्पा जैन ने कहां-:आकिंचन धर्म आत्मा की उस दशा का नाम है जहां पर बाहरी सब छूट जाता है किंतु आंतरिक संकल्प विकल्पों की परिणति को भी विश्राम मिल जाता है। जहां पर किंचित मात्र भी अंतरंग और बहिरंग परिग्रह न हो उसे कहते है आकिंचन धर्म। सायंकाल सभी जैन मंदिरो में-भजन, जिनवाणी पूजन, शास्त्र प्रवचन, तीर्थंकरो की आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। आयोजन मे प्रमुख रूप से अध्यक्ष दीपक जैन, उपाध्यक्ष राजेश जैन, विनोद जैन, अरूण जैन, तरूण जैन, सुधीर पोद्दार, अजित जैन, राज कुमार बागड़ा उपस्थित थे।