छोटे कारोबारियों को बंधी आस


(युगल किशोर जालान)
वाराणसी (काशीवार्ता)। आर्थिक पैकेज की चौतरफा सराहना के साथ कुछ लोग आशंकित भी हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत में बचत आधारित अर्थव्यवस्था मानी जाती है। अब इसमें तेजी से बदलाव आ रहा। बीस लाख के आर्थिक पैकेज पर प्रतिक्रिया में कहा जा रहा है कि अब ऋण आधारित अर्थव्यवस्था में विकास का प्रयास करना होगा। इसके बावजूद व्यापारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि फुटपाथ, ठेलों और प्रवासी मजदूरों पर ध्यान देके वित्तमंत्री ने लाखों परिवारों की निराशा को आशा में बदल दिया है। कंफेक्शनरी उद्यमी कुलवंत सिंह बग्गा ने कहा कि स्ट्रीट वेंडर और ठेले वालों का उपभोक्ताओं से निकट का संबंध होता है। देश में सामान्य उपभोक्ता सामानों की कुल बिक्री में इस वर्ग की बहुत बड़ी हिस्सेदारी होती है। इनका विकास सीधे थोक व्यापारियों को लाभान्वित करेगा। ठेले पर फल बेचने वाले श्याम ने बताया कि लॉकडाउन एक में सारे फल सड़-गल जाने से काफी नुकसान हुआ। एक महीना ठेला न लगने से पाकेट एकदम खाली हो गया। अब वित्तमंत्री की घोषणा से काफी उम्मीद जगी है। दस हजार मिलने पर हमलोगों का रोजगार फिर पटरी पर आ जाएगा। एक व्यापार समूह से जुड़े निधिदेव अग्रवाल ने कहा कि पटरी, फेरी और ठेला व्यापारी उत्पादन और बिक्री चेन की सशक्त कड़ी होती है। अनेक ऐसे प्रॉडक्ट हैं जो दुकानों से अधिक ठेलों पर बिकते हैं। रिटेल स्पेश काफी महंगा हो जाने से भी स्ट्रीट वेंडरों और ठेलों वालों का संख्या बढ़ी है। अब मजदूरों की वापसी से भी ठेलों की संख्या बढेंÞगी। ठेले पर डाब बेचने वाला जुगनू ऋण मिलने की उम्मीद से काफी खुश दिखा। उसने बताया कि लॉकडाउन में पूरी पूंजी पेट में चली गयी। अब 11 मई से डाब उधार खरीद कर ठेला लगा रहा। उधार खरीदने पर महंगा और छटा हुआ माल मिलता है। यदि दस हजार का ऋण मिल गया तो मेरे व्यापार में जान आ जाएगी। एक व्यापार समूह में कार्यरत प्रियंका सिंह ने कहा कि इतना बड़ा आर्थिक पैकेज समय की मांग थी, लेकिन इसके सही इस्तेमाल पर नजर रखना भी जरूरी होगा। सरकार ने अपना फर्ज निभा दिया, अब ऋण लाभार्थियों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ऋण आधारित अर्थव्यवस्था हो चुकी है। अब बचत करने से पहले ईएमआई (ऋण की किश्त) चुकाने पर अधिक ध्यान देना होगा। पहाड़ से नीचे की ओर पत्थर लुढ़काने जैसा आसान है ऋण लेना। उस पत्थर को लेकर पहाड़ पर चढ़ने जैसा ही होता है ऋण चुकाना।