वाराणसी (काशीवार्ता)। फाइलेरिया एक घातक बीमारी है, जो साइलेंट रहकर शरीर को खराब करती है। यही कारण है कि इस बीमारी की जानकारी समय पर नहीं हो पाती। हालांकि सजगता से फाइलेरिया की बीमारी से बचा जा सकता है। उक्त बातें एमडी फिजिशियन डॉ. श्रीतेश मिश्रा ने काशीवार्ता प्रतिनिधि से कही। डॉ.मिश्रा ने कहा कि आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते। हालांकि बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या होती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाइड्रोसिल में सूजन फाइलेरिया के लक्षण होते हैं। इस बीमारी में हाथ और पैरों में हाथी के पांव जैसी सूजन आ जाती है, इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव भी कहा जाता है। फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है, लेकिन कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
लक्षण
फाइलेरिया कई गोल, कुंडलित और धागे की तरह परजीवी कीड़े के कारण होता है। ये त्वचा में या तो अपने आप प्रवेश करते हैं या मच्छर के काटने से। जो आमतौर पर निचले छोरों को प्रभावित करता है। जिसके कारण हाथ, योनी, स्तन और अंडकोश प्रभावित हो सकते हैं। यह अवस्था महीनों तक रह सकती है। जब एक संक्रमित मच्छर एक स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो लार्वा जिसे माइक्रोफिलारिया कहा जाता है, लसीका और लिम्फ नोड्स में चला जाता है। जो वयस्क कीड़े में विकसित होते हैं और वर्षों तक बने रह सकते हैं। वयस्क परजीवी अधिक माइक्रोफिलारिया पैदा करता है। ये माइक्रोफाइलेरिया रक्त में आमतौर पर रात में फैलते हैं।
बचाव
फाइलेरिया चूंकि मच्छर के काटने से फैलता है, इसलिए बेहतर है कि मच्छरों से बचाव किया जाए। इसके लिए घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखें। पानी जमा न होने दें और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करें। फुल आस्तीन के कपड़े पहनकर रहें। सोते वक्त हाथों, पैर व अन्य खुले भागों पर सरसों या नीम का तेल लगाएं। हाथ या पैर में कही चोट लगी हो या घाव हो तो उसे साफ रखें।
यह एक शारीरिक रूप से अक्षम करने वाली बीमारी है, जो आमतौर पर बचपन में होती है।