बाबा मधोक ने काशी की सेहत व शिक्षा दोनों को सुधारा


वाराणसी (काशीवार्ता)। डॉ.प्रदीप मधोक ‘बाबा मधोक’ एक ऐसा नाम है, जो शायद सबकी जुबान पर है। शिक्षा का क्षेत्र हो या बॉडी बिल्डिंग का। दोनों में ही बाबा अपना लोहा मनवा चुके हैं। जब कोई जिम के बारे में जानता भी नहीं था, तब बाबा ने 11 सितंबर 1995 को बॉब जिम नाम से वाराणसी में एक नयी चीज शुरू की। बाबा खुद भी जीमिंग करते हैं। यही नहीं वे बॉडी बिल्डर रह चुके हैं। कई बार बड़े स्तर पर प्रतियोगितायें आयोजित करायी हैं।युवाओं को हेल्थ के प्रति सजग रहने की सलाह देना वे आज भी नहीं भूलते।दरअसल, बाबा को बचपन से ही जीमिंग का शौक था। भले ही शहर में आज खचिया भर जिम खुल गये हों, पर जो पहल बाबा ने की उसे भुलाया नहीं जा सकता। आज भी बॉब जिम शहर के कई क्षेत्रों में अपनी बुलंदियों का झंडा गाड़े है। बाबा ने शहर को एक नया नाम दिया डॉलिम्स। मतलब डा. अमृतलाल इशरत मेमोरियल सनबीम स्कूल। डा. अमृतलाल इशरत उनके पिता का नाम है। जिस दौर में ये स्कूल शुरू हुआ, वह सरकारी स्कूलों का दौर था। अधिकांश घरों के बच्चे उसी में पढ़ा करते थे, लेकिन इस स्कूल ने सरकारी और मिशनरी स्कूलों को मात दे दी। धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया और सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या घटती गई।डॉलिम्स में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चे आज देश और विदेश में अपनी प्रतिभा का झंडा गाड़ रहे हैं। स्कूल में बाबा की पत्नी पूजा मधोक उनका पूरा साथ देती हैं। और अब तो दोनों के बच्चे भी जिÞम्मेदारियां सम्भालने लगे हैं। काशीवार्ता से एक साक्षात्कार में बाबा ने बताया कि जब शिक्षा का आधुनिकीकरण नहीं हुआ था तब मेरी माँ डी इशरत रविवार के दिन गरीब व कमजोर बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देती थीं। उनके यही कर्म आज हमे इस मुकाम तक ले आए हैं। हालांकि आज आधुनिकीकरण के चलते गुरु-शिष्य परंपरा खत्म हो गई है। पर इसे बचाये रखना बहुत जरुरी है। बाबा ने बताया पिता डॉ.अमृत लाल इशरत की मृत्यु के पश्चात माँ के अथक प्रयास से 1993 में शिक्षा के क्षेत्र में मैंने कदम रखा और लहुराबीर पर पहला विद्यालय खुला, जिसका संचालन सनबीम सोसाइटी द्वारा किया जाता था। 1997 में सनबीम डालिम्स (डॉ.अमृत लाल इशरत मेमोरियल सनबीम स्कूल) रामकटोरा शुरू किया। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के चलते छात्र-छात्राओं का दबाव बढ़ने लगा तो हमें स्कूल की शाखायें बढ़ानी पड़ी। आज विभिन्न क्षेत्रों में हमारे 8 विद्यालय व 16 एसोसिएट स्कूलो का संचालन हो रहा है।


कैम्ब्रिज पद्धत्ति से बच्चों को स्थापित करना उद्देश्य
बाबा मधोक ने कहा, सनबीम डालिम्स में सीबीएसई व कैम्ब्रिज पद्धत्ति से छात्र-छात्राओं को शिक्षा दी जाती है।कैम्ब्रिज 8 सौ वर्ष पुरानी संस्था है, इसका अपना एक अलग ही इतिहास है। कई देशों में तो कैम्ब्रिज वहां के शिक्षा मंत्रालय को चलाता है। कैम्ब्रिज पद्धत्ति से पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को उनकी प्रतिभा का आंकलन करते हुए विषयों का सुझाव देना व उनकी कमजोरियों तथा अच्छाइयों को शिक्षा प्रणाली में बैलेंस करने के साथ ही उनकी प्रतिभा के साथ स्थापित किया जाता है।


अध्यापकों की चयन प्रक्रिया बहुत कठिन है
बाबा ने बताया विद्यालय में अध्यापक/अध्यापिकाओं का क्वालिटी टीम द्वारा चयन करने के उपरांत उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। साक्षात्कार में चयनित अभ्यर्थियों को क्वालिटी टीम, बोर्ड आॅफ मेम्बर्स व पुराने अध्यापक/ अध्यापिकाओं को पढ़ाना पड़ता है। उसमें पास होने के उपरांत ही उनका चयन होता है।
पिता थे उर्दू के प्रख्यात शायर
मेरे पिता भारतीय कवि, प्रोफेसर व इतिहासकार डॉ.अमृत लाल इशरत ने ईरानी इतिहास, साहित्यिक आलोचनाओं और उर्दू शायरी के इतिहास के विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए लगभग एक दर्जन पुस्तकें लिखीं हैं। अकादमिक कार्यों के अलावा, उन्होंने भारतीय साहित्यिक पत्रिकाओं में कई गजलें लिखी, जो उनके देहांत के पश्चात यादगार-ए-इशरत (इशरत की यादें) नाम से प्रकाशित हुई।