सत्या फाउंडेशन ने शहर को शोर-शराबे से दिलाई निजात


वाराणसी (काशीवार्ता)। मनुष्य के पास इच्छा शक्ति हो तो वह कुछ भी कर सकता है। जीवन में सफलता के लिए आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। यह आत्मविश्वास केवल दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति से ही प्राप्त होती है। यदि ये दोनों गुण आपके पास है तो आपको लक्ष्य हासिल करने से कोई शक्ति रोक नहीं सकती। ऐसे ही कठिन लक्ष्य को पाने के लिए चौबेपुर भगतुआ के चेतन उपाध्याय ने सत्या फाउंडेशन की स्थापना की। चेतन के पिता डॉ.आदिनाथ उपाध्याय बीएलडब्ल्यू से सेवानिवृत्त होने के उपरांत परिवार संग महमूरगंज में रहते हैं। चेतन ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने के उपरांत आईआईएम दिल्ली से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर का डिप्लोमा वर्ष 1996-97 में लिया। इसके उपरांत दूरदर्शन दिल्ली में एक वर्ष तक नौकरी भी की। निजी चैनल में भी काम किया। पर यहां भी वे एक वर्ष से ज्यादा नहीं रहे।वे मुम्बई चले गए, जहां मीडिया सलाहकार के रूप में डेढ़ वर्षों तक कार्य किया। साल 2000 में वे बनारस वापस आ गए और जो काम उनकी नियति में था वे उसी में रम गए। दरअसल, आपके जीवन का असली उद्देश्य समाज सेवा था। जिसकी ओर कदम बढ़ाते हुए आपने सत्या फाउंडेशन की स्थापना की। शुरूआती दौर में सत्या फाउंडेशन ने संगीत, पर्यावरण संरक्षण, योग व प्राकृतिक जीवन शैली का कार्य शुरू किया। धीरे धीरे संस्था आगे बढ़ती गई और आज इस संस्था से हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोग जुड़ने लगे हैं।


गेस्ट लेक्चरर के रूप में कई संस्थाओं से जुड़े
चेतन को लोगों ने गेस्ट लेक्चरर के रूप में बुलाना शुरू कर दिया।वे आज भी सचिवालय प्रशिक्षण एवं प्रबंधन संस्थान नई दिल्ली, मोरार जी देशाई राष्ट्रीय योग संस्थान (आयुष मंत्रालय) नई दिल्ली व रक्षा मुख्यालय प्रशिक्षण संस्थान नई दिल्ली के साथ ही कई ऐसे संस्थानों में गेस्ट लेक्चरर के रूप में प्रशिक्षण देने जाता हैं। इसके अलावा कजाकिस्तान के अल्माइ सिटी में तीन दिनों के लिए प्रशिक्षण दे चुके हैं। चेतन ने कहा, मेरे कार्यों को देखते हुए तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह मुझे दो बार बुला चुके हैं। जिनसे 2015 में जनसंख्या नियंत्रण कानून व ध्वनि प्रदूषण कानून को प्रमुखता से लागू किये जाने हेतु विस्तृत चर्चा हुई।
पहली बार डीजे

का विरोध कर बनारस मेें छा गये चेतन उपाध्याय
सत्या फाउंडेशन के सचिव चेतन उपाध्याय ने बताया, फरवरी-2008 में पिता को हर्निया के आॅपरेशन के पश्चात घर लाये। बगल में तेज आवाज के साथ डीजे बज रहा था, जिससे पिताजी को परेशानी हो रही थी। मैंने कहा कि पुलिस सूचित कर देता हूं, लेकिन उन्होंने माना किया। बावजूद इसके मैंने पुलिस बुलाई और डीजे को बंद करा दिया। इस बात को सभी अखबारो ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। जिसके उपरांत मेरे पास लोगों के फोन आने शुरू हो गये। उन्होंने मेरे इस कार्य की सराहना की। फिर क्या था, धीरे-धीरे चेतन इस शहर की आवाज बन गये। किसी को भी डीजे, आरकेस्ट्रा, लाउडस्पीकर की तेज आवाज से दिक्कत होती तो वो झट से सत्या फाउंडेशन के नंबर पर फोन कर देता। चेतन भी कहां पीछे रहने वाले, फोन आ जाये तो बस उन्हें शोर शराबा बंद कराना ही है, अब चाहे जो हो जाये। क्यों न रात 12 बजे ही किसी का फोन आ जाए। वे अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते। यह पूछे जाने पर की क्या देर रात घर से निकलने के बाद पिता की डॉट नहीं पड़ती। उन्होंने कहा, एक पर्ची पर लिख कर जाता हूँ, जिसे पढ़कर पिताजी निसचिंत हो जाते हैं। चेतन ने शादी नहीं की है। उनका मानना है यदि वे इस बंधन में बंधे होते तो शायद आज ये सब न कर पाते। उनका यह काम अब एक मुहिम बन चुका है। उन्हें काशी रत्न सहित अनेकों सम्मान मिल चुके है।