मंदिर मोक्ष व चित्त सिद्धि का स्थल


वाराणसी (काशीवार्ता)। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में शनिवार को 32 देशों के 450 मंदिरों के व्यवस्थापकों के महासम्मेलन का शुभारंभ किया। भागवत ने कहा, हमें गली की छोटी-छोटी मंदिरों की सूची बनानी चाहिए। वहां रोज पूजा हो, सफाई रखी जाए। मिलकर सभी आयोजन करें। संगठित बल साधनों से संपूर्ण करें। मंदिरों को अपना-उनका छोड़कर एक साथ आगे आएं। जिसको धर्म का पालन करना है वो धर्म के लिए सजग रहेगा। निष्ठा और श्रद्धा को जागृत करना है। छोटे स्थान पर छोटे से छोटे मंदिर को समृद्ध बनाना है। समय आ गया है, अब देश और संस्कृति के लिए त्याग करें। मंदिर हमारी परंपरा का अभिन्न अंग हैं। पूरे समाज को एक लक्ष्य लेकर चलाने के लिए मठ-मंदिर चाहिए। कभी हम गिरे, कभी दूसरों ने धक्का मारा… लेकिन हमारे मूल्य नहीं गिरे। हमारे जीवन का लक्ष्य एक ही है… हमारा कर्म और धर्म। यह लोक भी ठीक करेगा और परलोक भी। हमारे मंदिर, आचार्य, देवस्थान, यति साथ चलते हैं, तभी सृजन के लिए हैं। मोहन भागवत ने कहा, मंदिर को नई पीढ़ी को संभालना है तो उन्हें ट्रेनिंग दें। अपने साधन और संसाधन को एक करके अपनी कला और कारीगरी को सशक्त करें। समाज के कारीगर को प्रोत्साहन मिले तो वह अपने को मजबूत करेगा। मंदिर सत्यम-शिवम-सुंदरम की प्रेरणा देते हैं। मंदिर की कारीगरी हमारी पद्धति को दिखाते हैं। मंदिर को चलाने वाले धर्म होना चाहिए। अपने यहां कुछ मंदिर सरकार और कुछ समाज के हाथ में हैं। काशी विश्वनाथ का स्वरूप बदला, ये भक्ति की शक्ति है। परिवर्तन करने वाले लोग भक्त हैं और इसके लिए भाव चाहिए। मोहन भागवत ने बताया, मंदिर पवित्रता के आधार हैं। स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए। गुरुद्वारा जाना है तो पानी में होकर जाना होता है। लेकिन, ऐसा सभी मंदिरों में नहीं है। ऐसी ही स्वच्छता का ध्यान रखना है। ये सब मंदिरों में होना चाहिए। भागवत ने बताया, समाज में धर्म चक्र परिवर्तन के आधार पर सृष्टि चलती है। शरीर मन और बुद्धि को पवित्र करके ही आराधना होती है। मंदिर हमारी प्रगति का सामाजिक उपकरण हैं। मंदिर में आराधना के समय आराध्य का पूर्ण स्वरूप होना चाहिए। शिव के मंदिर में भस्म और विष्णु के मंदिर में चंदन मिलता है। यह उनकी ओर से समाज को प्रेरणा है। मोहन भागवत ने कहा, मंदिर केवल पूजा नहीं मोक्ष और चित्त सिद्धि का स्थल है। सत्य को प्राप्त करना… अपना आनंद सबका आनंद हो, इसके लिए धर्म ही समाज को तैयार करता है। मोहन भागवत ने कहा, मंदिर में शिक्षा मिले, संस्कार मिले, सेवा भाव हो और प्रेरणा मिले। मंदिर में लोगों के दुख दूर करने की व्यवस्था हो। सभी समाज की चिंता करने वाला मंदिर होना चाहिए। देश के सभी मंदिर का एकत्रीकरण समाज को जोड़ेगा, ऊपर उठाएगा, राष्ट्र को समृद्ध बनाएगा।